'बैगर फ्री सिटी' अभियान पर लगा ब्रेक, NGO की मांगे बनी बैरियर
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'बैगर फ्री सिटी' अभियान पर लगा ब्रेक, NGO की मांगे बनी बैरियर

जयपुर को भिखारी मुक्त सिटी बनाने का अभियान अधर में लटकता हुआ दिखाई दे रहा है. क्योंकि एनजीओ के पदाधिकारियों ने अफसरों से एडवांस भुगतान सहित अन्य मांग की हैं जिसके कारण जिला प्रशासन के अधिकारी पशोपेश में हैं.

'बैगर फ्री सिटी'  अभियान पर लगा ब्रेक, NGO की मांगे बनी बैरियर

Jaipur News: स्मार्ट सिटी जयपुर में भिखारियों की बढ़ती संख्या से हर कोई परेशान है. इसलिए पिंकसिटी को 'भिखारी मुक्त' सिटी बनाने के लिए जयपुर जिला प्रशासन की ओर से अभियान चलाया जा रहा हैं. इस अभियान में जिन चार स्वयंसेवी संस्थाओं (एनजीओ) को जोड़ा गया हैं,  उन एनजीओ के पदाधिकारियों ने अफसरों से एडवांस भुगतान सहित अन्य मांग की हैं जिसके कारण जिला प्रशासन के अधिकारी पशोपेश में हैं.

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 NGO बना  रूकावट 
जयपुर शहर को भिखारी मुक्त बनाने के लिए जयपुर जिला प्रशासन की ओर से शुरू किए अभियान में अब NGO रूकावट बन के खड़ा हुआ हैं. प्रशासन की ओर से एनजीओ के माध्यम से भिखारियों का जीवन स्तर सुधारने का प्रयास करने करने की शुरूआत की गई हैं. लेकिन शहर को भिखारी मुक्त करने की जिन चार एनजीओ को जिम्मेदारी दी गई. उन्होंने पांच बिंदु का एक लेटर अफसरों को सौंपकर भुगतान, रेस्क्यू वाहन सहित कई मांगे की है. जिसकी फाइल अब अफसरों की टेबलों पर घूम रही है. जिसके बाद अब इस अभियान को लेकर सवाल खडे़ हो गए हैं. क्या जिला प्रशासन ने बैगर फ्री सिटी बनाने के लिए कैंपेनिंग आधीअधूरी तैयारी के साथ शुरू की ? .क्या प्रशासन ने अभियान शुरू करने से पहले एनजीओ के इश्यू को सुलझाने की कोशिश नहीं की?

ये है अभियान 
 अभियान को लेकर जब कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित ने सवाल किया तो उन्होंने इस मामले में बोलने से इंकार कर दिया. उधर अतिरिक्त जिला कलक्टर साउथ अबू ब्रक ने कहा की पहले चरण में समझाइश का काम चल रहा हैं. कुछ एनजीओ के इश्यू है जिनका समाधान निकाला जा रहा हैं.  पहले स्तर पर इन भिखारियों को समझाइश कर भिक्षावृत्ति छोड़कर दूसरे कार्य या रिहैबिलिटी सेंटर (पुनर्वास केंद्र) में जाने के प्रयास किए जा रहे है. उसके बाद दूसरे चरण में रेस्क्यू कर रिहैबिलिटी सेंटर (पुनर्वास केंद्र) में ले जाया जाएगा.

दरअसल, राजधानी जयपुर में मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, दरगाह के आसपास के क्षेत्रों में भिखारी राहगीरों के पीछे पड़ जाते हैं. हालात यह हैं कि ये उनका पीछा   तब तक करते है जब तक उन्हें कुछ मिल नहीं जाता. जब मिल जाता है तब  जाकर वह  पीछा छोड़ते है. इससे महिलाएं और राहगीर शर्मिन्दा होते हैं. निरंतर फैलती भिक्षावृत्ति स्मार्टसिटी जयपुर की छवि से यह सहीं नहीं है. ऐतिहासिक, धार्मिक, पौराणिक महत्व के कराण जयपुर में विभिन्न प्रांतों के ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटकों की भी वर्षभर आवाजाही रहती है.परिवार के साथ शहर के धार्मिक, पर्यटन स्थलों को देखने व दर्शन करने के दौरान सर्वाधिक परेशानी इन्हें भिखारियों से हो रही है.

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एनजीओ ने ये प्रशासन से की ये मांगे, लेटर में पांच बिंदु बने अभियान के लिए बैरियर

1. स्वयंसेवी संस्थाओं को पुर्नवास केंद्र के लिए नगर निगम की ओर से जो राजकीय भवन की व्यवस्था की गई हैं, उसमें महिलाओं और पुरूषों की अलग अलग ठहराने की व्यवस्था नही हैं और उसकी क्षमता भी 25 लोगों से ज्यादा की नहीं हैं. जबकि नियमो में पुर्नवास केंद्र की क्षमता 100 लोगों के ठहरने के साथ महिलाओं और पुरूषों का अलगअलग व्यवस्था करना हैं. ऐसे में सभी चयनित एनजीओ को अपने स्तर पर स्वयं का भवन किराए पर लिया जाना उचित होगा, जो निर्धारित क्षमता के अनुसार है.

2. कलेक्टर जयपुर की मीटिंग के अनुसार रेस्क्यू वाहन विभाग के जरिए उपलब्ध करवाया जाना तय था. ऐसे में मीटिंग में जो निर्णय लिया गया उसके अनुसार वाहन मय चालक विभाग के जरिए एनजीओ को रेस्क्यू के लिए उपलब्ध करवाया जाए.

3. विभिन्न रोगों से ग्रसित व्यक्तियों को चयनित एनजीओ संबंधित जगह पहुंचाएंगी. इस दौरान होने वाला खर्चा विभाग द्वारा देय होगा. कौशल प्रशिक्षण प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्तियों को प्रत्येकप्रत्येक चयनित संस्था अपने स्तर पर रोजगार प्रशिक्षण प्रदान करने में सक्षम हैं.ऐसे में ट्रेनिंग देने की अनुमति चारों चयनित संस्थाओं को दी जाए. साथ ही अनुदान एनजीओ को दिया जाए.

4 पुनर्वास गृह संचालित करने वाली संस्थाओं को स्टॉफ के वेतन और रेस्क्यू टीम का वेतन असमंजस में हैं.किस प्रकार देय होगा इसकी स्थित स्पष्ट करें.

5 चयनित एनजीओ को परिचय पत्रड्रेसयूनिफार्म विभाग के स्तर पर दी जाए.

भिखारी मुक्त सिटी के लिए सरकार एनजीओं को देती ये अनुदान

समान राशि
भोजन, वस्त्र,चिकित्सा, तेलसाबुन  2500 रूपए प्रति व्यक्ति
एनजीओ को पांच साल के लिए चेयरटेबल 6 लाख रूपए
रोजगार की प्रकृति के अनुसार अलग अलग सेक्टर में प्रशिक्षण दिलवाने 36 रूपए 30 पैसे प्रति घंटे प्रति प्रशिक्षाणार्थी (90 दिन के प्रशिक्षण के लिए 19 हजार 602 रूपए का खर्चा)
पुनर्वास गृह का किराया 100 लोगों की क्षमता 96 हजार रूपए प्रतिमाह

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बैगर फ्री सिटी बनाने के लिए ओर भिखारियों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए ये निर्देश

पुनर्वास गृहों की साफ - सफाई करवाकर आधारभूत सुविधाओं की पुख्ता व्यवस्था
इन्दिरा रसोई योजना से लिंक करवाया जाने के निर्देश जिससे भिखारियोंनिर्धन व्यक्तियों को भोजन के लिये इधरउधर भटकना ना पड़े.
भिखारियों, निर्धन व्यक्तियों को इन्दिरा गांधी शहरी रोजगार गारन्टी योजना में पंजीकृत करवाएं जिससे भिखारियोंनिर्धन व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध करवाया जा सके. 
भिक्षावृत्ति में लिप्त बच्चों को बाल निराश्रित गृहों में प्रवेश दिलाया जाए.
आरटीई एक्ट के तहत स्थानीय विद्यालयों में प्रवेश दिलवाया जाना सुनिश्चित करें.
स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से भिक्षावृत्ति में लिप्त व्यक्तियों का आधार कार्ड, जनआधार कार्ड तैयार करवाकर सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ दिलवाएं.
पुनर्वास गृहों में चिन्हित किये गये व्यक्तियों का ऑनलाइन डेटाबेस तैयार करें.
भिक्षावृत्ति में लिप्त रहे ऐसे 25 व्यक्तियों का एक बैच बनाया जाए.
राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम से आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित हो.
ऐसे प्रशिक्षित व्यक्तियों को विभागों द्वारा संचालित और बैंको द्वारा उपलब्ध ऋण,सब्सिडी और अन्य योजनाओं से जोड़ा जाए.

भीख मांगने वाले बच्चों का बचपन भी सुधरेगा 

शहर के चौराहों पर भीख मांगने वाले बच्चों का बचपन..जिस उम्र में बच्चों के हाथ में कॉपीकिताब होना चाहिए.उस उम्र में बच्चों के हाथ भीख मांगने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. .जब मातापिता के हाथ बच्चों का हाथ पकड़कर उन्हें सही राह दिखाने के लिए आगे बढ़ना चाहिए उस समय वे भीख मांगने का रास्ता दिखा रहे हैं..बच्चों से भिक्षावृत्ति करवाने की प्रवृत्ति कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रही है.और प्रशासन के इसे रोकने के तमाम दावे फेल होते दिख रहे हैं.जिला प्रशासन ने कई बार भिक्षावृत्ति निषेध कानून के तहत बाल भिक्षुकों को रेस्क्यू करने के आदेश दिए लेकिन सिस्टम की लापरवाही के चलते हमेशा अभियान कमजोर पड़ गए.

शहर में मोतीडूंगरी गणेश मंदिर, रामबाग चौराहा, जेडीए सर्किल, गोविंददेवजी मंदिर, ओटीएस चौराहा, हवामहल, जंतर मंतर, काले हनुमानजी मंदिर, ऐसे स्थान हैं जहां बड़ी संख्या में बच्चे भीख मांगते दिखते हैं. इन स्थानों से हर अफसर दिन में कई बार निकलते हैं.इधर जब भी भगवान के विशेष दिन, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति और दानपुण्य के त्योहार होते हैं? तो मंदिरों के बाहर बाल भिखारियों की भी कतार लग जाती है..

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विडंबना हैं कि खुलेआम बच्चों का भविष्य बिगाड़ने और कानून का मजाक उड़ाने का खेल चल रहा हैं लेकिन जिम्मेदार चुप्पी साधे बैठे हैं..प्रशासनिक स्तर पर तमाम योजना बन रही हैं लेकिन वह सिर्फ कागजों में बंद होकर रह गई है.मंगलवार और शनिवार हनुमानजी मंदिर, बुधवार गणेश मंदिर, शनिवार को शनि मंदिरों के बाहर भीड़ देखी जा सकती है..रविवार या छुट्टी वाले दिन पिकनिक स्पॉट, पर्यटक स्थलों पर देखे जा सकते हैं.धार्मिक स्थलों के बाहर तो हालत ये हैं? की भीख मांगने वाले भिखारी आए दिन श्रद्धालुओं भीख देने के नाम पर परेशान करते हैं..

साथ ही मंदिर से दर्शन करके निकलते ही श्रद्धालुओं के पीछे पीछे दूर तक उनकी गाड़ियों के पीछे पीछे दौड़ लगाते हैं..इस दौरान कई बार श्रद्धालुओं की गाड़ियों में अंदर घुस जाते हैं, जिससे हादसे की आशंका बनी रहती है.

बहरहाल, भिक्षावृत्ति समाप्त हो, इस धंधे में लगे लोगों का पुनर्वास कर उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोडने के लिए कई कार्यक्रम चलाए गए है लेकिन स्थिति में अधिक सुधार नजर नहीं आता दिखा. .भिखारियों के लिए पुनर्वास की योजनाएं हैं.नियमकानून और संसाधन भी हैं.नहीं है तो इच्छाशक्ति, अधिकारियों ने जैसे कभी इन्हें देखा ही न हो.प्रशासन के सामने 26 जनवरी तक शहर को भिक्षावृत्ति और भिखारियों से मुक्त करना बडी चुनौती हैं.

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