कोरोना (Coronavirus) की दूसरी लहर के बीच चल रहे राहत कार्यों में भी एक दूसरे से आगे बढ़ने और राहत कार्यों के जरिए जनता को अपने से जोड़ने की पुरजोर कोशिश बीजेपी के अलग-अलग धड़े कर रहे हैं.
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Manoj Mathur, Executive Editor, Jaipur: कांग्रेस पार्टी प्रदेश में सत्ता पर काबिज है, लेकिन एक मंत्री नाराज है. दो मंत्री आपस में मंत्री परिषद की बैठक में उलझ गए और दो मंत्री अपने यहां के अधिकारियों की कार्यशैली से खुश नहीं है. यह तो सत्ताधारी पार्टी का आलम है, लेकिन विपक्ष में बैठी बीजेपी में भी गुटबाजी कम नहीं है. आपसी होड़ यहां भी काफी दिख रही है. कोरोना (Coronavirus) की दूसरी लहर के बीच चल रहे राहत कार्यों में भी एक दूसरे से आगे बढ़ने और राहत कार्यों के जरिए जनता को अपने से जोड़ने की पुरजोर कोशिश बीजेपी के अलग-अलग धड़े कर रहे हैं. यहां सतीश पूनिया 'संगठन ही सेवा है अभियान' के जरिए पार्टी पदाधिकारियों को लोगों के बीच भेज रहे हैं तो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) के समर्थक उनके नाम से वसुंधरा जन रसोई चला रहे हैं.
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इतना ही नहीं ट्विटर के जरिए भी लोगों तक राहत पहुंचाने में अघोषित होड़ दिख रही है. इसका एकमात्र सकारात्मक पहलू यह है कि किसी भी बीमार या पीड़ित व्यक्ति को जल्दी मदद मिल रही है, लेकिन संगठन के नजरिए से देखा जाए तो इसमें गुटबाजी और आपसी प्रतिस्पर्द्धा को हवा देने के अलावा ज्यादा कुछ नजर नहीं आ रहा.
आलम ऐसा है कि वसुंधरा और पूनिया के खेमों की यह गुटबाजी ना तो स्थानीय निकाय चुनाव में रुकी, ना ही पंचायती राज चुनाव में थमी. पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष के कैंप में विधानसभा की तीन सीटों पर उपचुनाव से लेकर कोरोना के आपदा काल में भी द्वंद्व दिख रहा है.
कोरोना की दूसरी लहर के बीच किए गए सेवा कार्य में तो पूर्व मुख्यमंत्री के नाम पर चली वसुंधरा जन रसोई को लेकर तो पार्टी के नेता बोलने तक से बचते दिखाई दिए. सतीश पूनिया (Satish Poonia) भी इस पर कोई प्रतिक्रिया देने की बजाय यह कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश ही करते दिखे कि व्यक्तिगत कार्यों को उन्होंने संगठन के कामों की गिनती में शामिल नहीं किया और ना ही उन्हें व्यक्तिगत कार्यों की पूरी जानकारी है.
बीजेपी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री के कैंप के बीच चल रही गुटबाजी के दौर में कई बार पार्टी के पदाधिकारियों, विधायकों और कार्यकर्ताओं की निष्ठा की परख भी होती रही. सतीश पूनिया अपना कैंप मजबूत करने की जुगत कर रहे थे तो वसुंधरा राजे ने भी भरतपुर (Bharatpur) के बद्री धाम में अपने जन्मदिन के जरिए शक्ति प्रदर्शन किया. विधानसभा सत्र के बीच कई विधायकों ने भरतपुर जाकर पूर्व मुख्यमंत्री को बधाई दी. इतना ही नहीं सतीश पूनिया के समर्थन में भावी मुख्यमंत्री के नारे भी लगने लगे हैं. सतीश पूनिया और वसुंधरा राजे (former Rajasthan Chief Minister Vasundhara Raje) के समर्थक तो पोर्च से गाड़ी नहीं हटाने के मुद्दे को भी ताकत साबित करने का तरीका बताते दिखे हैं.
इतना ही नहीं पिछले साल राजस्थान में हुए राजनीतिक घटनाक्रम के दौरान कांग्रेस दो कैंपों में बंटी दिखाई दी. इस दौरान बीजेपी ने भी कोशिश तो की, लेकिन तब कुछ विधायकों ने बीजेपी के बारड़े में जाने से ही इनकार कर दिया. बीजेपी (Rajasthan BJP News) की गुटबाजी उस वक्त भी उजागर हुई जब विश्वास मत पर वोटिंग से पहले ही चार विधायक सदन से गायब हो गए.
अन्य नेताओं के भी आपसी विवाद
विपक्ष में होते हुए भी बीजेपी में मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री के बीच के धड़ों के बीच कशमकश दिखाई देती है.
इसके साथ ही राजेंद्र राठौड़ (Rajendra Rathore) और सतीश पूनिया के रिश्तो को लेकर भी इन दिनों पार्टी में चर्चा चल रही है. दो दिन पहले सतीश पूनिया के टि्वटर हैंडल से एक ट्वीट किया गया. इसमें अखबार की खबर में से राजेंद्र राठौड़ की फोटो को कंप्यूटर के जरिए हटाया गया था.
इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और कभी मंत्री के रूप में उनके मजबूत सिपहसालार रहे राजेंद्र राठौड़ के बदलते रिश्ते भी पार्टी में गुटबाजी का संकेत देते हैं.
(मनोज माथुर, एग्जीक्यूटिव एडिटर, ज़ी राजस्थान)
किरोड़ी लाल मीणा और वसुंधरा राजे के रिश्ते भी पल-पल बदलते रहे हैं और खट्टे मीठे अनुभव पार्टी कार्यकर्ताओं को कराते रहे हैं. साल 2008 के चुनाव से ठीक पहले जब किरोड़ी ने बीजेपी (Rajasthan BJP Inside News) छोड़ी थी तो उसके लिए वसुंधरा राजे को जिम्मेदार बताया और 9 साल बाद पार्टी में लौटे तो भी वसुंधरा राजे की अगुवाई में ही लौटे. इसके थोड़े ही दिनों बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में दौसा से किरोड़ी की पत्नी गोलमा को टिकट नहीं मिला, तो इसके लिए भी किरोड़ी वसुंधरा को तोहमत देने से नहीं चूके.
केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के खिलाफ भी पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी बीकानेर में यदा-कदा मोर्चा खोलते रहते हैं.
हाड़ौती के धुरंधर भी आपस में प्रतिस्पर्धा करते बीजेपी में देखे जा सकते हैं.
मारवाड़ में पार्टी को मजबूत करने वाले नेता के खिलाफ भी पिछले दिनों विधानसभा में सरकार की तरफ से आरोप लगाए जाने के बावजूद, बीजेपी विधायक दल की चुप्पी भी पार्टी में चल रही गुटबाजी की चुगली करती दिखी है.
पार्टी में कार्यकर्ता मानते हैं कि साल 2023 के चुनाव में बीजेपी सत्ता में आएगी. ऐसे में सात से ज्यादा 'सीएम इन वेटिंग' के बीच में भी आपसी होड़ कई बार कार्यकर्ता महसूस कर रहे हैं.
राजस्थान बीजेपी (Political Factionalism in Rajasthan BJP) में चल रहे आपसी शह-मात के खेल के बीच अलग-अलग कैंप ने केंद्रीय नेतृत्व को इसकी शिकायतें भी की. दिल्ली दरबार में सुनवाई भी हुई, लेकिन अभी तक गुटबाजी का कोई अचूक तोड़ बीजेपी नहीं निकाल सकी है. कार्यकर्ताओं के मन में सवाल यह है कि क्या राजनीतिक गुटबाजी (Political Factionalism) को खत्म करने का जादू किसी के पास है? लेकिन जादू की बात आते ही कांग्रेसी कार्यकर्ता कहते हैं कि बीजेपी में गुटबाजी खत्म करने का जादू कोई नहीं कर सकता क्योंकि असली जादूगर तो उनकी पार्टी में है.