International Nurses Day 2022: आज इंटरनेशनल नर्सेज डे है. नर सेवा से जुड़े इस पेशे को वैसे तो हर कोई सलाम करता है, लेकिन कोरोना संक्रमण के समय जिस जज्बे के साथ राजस्थान में नर्सेज ने काम किया वो सैल्यूट करने वाला था.
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Jaipur: आज इंटरनेशनल नर्सेज डे है. नर सेवा से जुड़े इस पेशे को वैसे तो हर कोई सलाम करता है, लेकिन कोरोना संक्रमण के समय जिस जज्बे के साथ राजस्थान में नर्सेज ने काम किया वो सैल्यूट करने वाला था. इंटरनेशनल नर्सेज डे पर आज एक ऐसे नर्स के बारे में जानते हैं जो अपनी ड्यूटी के साथ-साथ प्रदेश के सबसे बड़े एसएमएस अस्पताल में निराश्रित और असहाय मरीजों की तन-मन-धन से ना सिर्फ सेवा करते हैं बल्की परिजनों की तरह खयाल भी रखते हैं.
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राजस्थान में सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल एसएमएस, जहां हर दिन हजारों मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं. ज्यादातर मरीज अपने परिजनों के साथ इलाज के लिए पहुंचते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जिनका इस दुनिया में कोई नहीं हैं. इनमें निराश्रित-असहाय के अलावा ऐसे भी मरीज होते हैं जिनकों उनके ही परिजनों ने अपने हाल पर छोड़ दिया है. हालांकि अस्पताल में सभी मरीजों को समान रुप से इलाज किया जाता है, लेकिन जिन मरीजों का कोई अपना नहीं होता है....उनकी देखभाल का जिम्मा एसएमएस अस्पताल के कुछ नर्सिंग वॉरियर्स उठाते हैं.
नर्सिंगकर्मी बलदेव चौधरी और उनके साथी ऐसे मरीजों के इलाज के दौरान कपड़े बदलने, खाने खिलाने से लेकर सभी काम खुद करते हैं. नर्सिंगकर्मी बलदेव चौधरी ने बताया कि निराश्रित मरीजों के बारे में वार्ड से ही जानकारी मिल जाती है, जिसके बाद उनके साथी मरीज के ठीक होने तक उसका पूरा खयाल रखते हैं. इन मरीजों में ज्यादातर भिखारी, नशे के आदि और ऐसे मरीज होते हैं जिनका या तो कोई अपना नहीं होता है या फिर अपने ही उन्हें छोड़ देते हैं. ऐसे मरीजों को निहलाना, खाना खिलाना, बाल बनाना, कपड़े पहनाने समेत सभी काम नर्सेज करते हैं.
नर्सिंग कर्मी बलदेव चौधरी और उनके साथी पिछले आठ सालों में हजारों मरीजों की मदद कर चुके हैं. इन नर्सिंग कर्मियों की मरिजों की मदद अस्पताल में सिर्फ इलाज तक सीमित नहीं हैं. जो मरीज दूसरे राज्यों के होते हैं उन्हें उनके राज्य नर्सिंगकर्मी अपने पैसों से भेजते हैं. जिनका कोई नहीं होता है उन्हें ये नर्सिंग कर्मी मदर टेरेसा आश्रम, अपना घर, सेवा शंकर आश्रम और अन्य संस्थानों में भेज देते हैं ताकी वहां पर उनका खयाल रखा जा सकें. नर्सिंगकर्मी बदलेव चौधरी बताते हैं कि कुछ मरीजों से तो लगाव भी हो जाता हैं. जिन बच्चों का कोई अपना नहीं होता हैं उन्हें परिवार की तरह संभालते हैं.
उम्मीद है बलदेव चौधरी जैसे नर्सिंग कर्मी और उनके साथियों की सेवा देश के दूसरे नर्सिंग कर्मियों को भी ड्यूटी के साथ-साथ नर सेवा के लिए प्रेरित करेगी और किसी भी अस्पताल में असहाय और निराश्रितों को इलाज और देखभाल के लिए भटकना नहीं पड़ेगा.