जलकुंभी ने रोकी कानोता बांध की सांसें, जलीय जीव-जंतु तोड़ रहे दम, घुट रहा रोजगार का गला
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जलकुंभी ने रोकी कानोता बांध की सांसें, जलीय जीव-जंतु तोड़ रहे दम, घुट रहा रोजगार का गला

Kanota Dam, Jaipur News: राजधानी जयपुर के दूसरे सबसे बड़े कानोता बांध में खरपतवार जलकुंभी ने बांध की सांसें रोक दी है, जिसके चलते बांध में रोजाना औसतन छह से सात टन मछलियां दम तोड़ रही है. 

 

जलकुंभी ने रोकी कानोता बांध की सांसें, जलीय जीव-जंतु तोड़ रहे दम, घुट रहा रोजगार का गला

Kanota Dam, Jaipur News: राजधानी जयपुर के दूसरे सबसे बड़े कानोता बांध के पानी की पुकार कोई सुनने वाला नहीं है. हर रोज इसके पानी को जलकुंभी नामक राक्षस निगल रहा है और बांध मर रहा है. जयपुर के सबसे बड़े बांध रामगढ़ को लेकर सरकार से लेकर न्यायालय तक चिंता जता चुके हैं, कई कमेटियां तक बन चुकी है, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात होते नजर आ रहा है. 

वहीं इसी लापरवाही ने राजधानी के दूसरे बड़े कानोता बांध को भी जीते जी मरने के लिए छोड़ दिया है. जल संरचनाओं के रख-रखाव को लेकर शासन और प्रशासन की चिंताएं गायब होती दिखाई दे रही है, जितनी चिंता सूखे रामगढ़ बांध को लेकर सरकार, न्यायपालिका और जिला प्रशासन कर रहा है, उसकी अंशभर चिंता की जाए, तो बस्सी के कानोता बांध में मछली उद्योग और पर्यटन उद्योग के साथ-साथ बड़ी मात्रा में आस-पास के गांवों में खेती योग्य भूमि को सिंचित किया जा सकता है. 

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जलीय जीव-जंतु तोड़ रहे दम
अब हालात ऐसे है कि कई महीनों से कानोता बांध में बिछी खरपतवार जलकुंभी ने बांध की सांसें बंद कर दी है, जिसके चलते बांध में रोजाना औसतन छह से सात टन मछलियां दम तोड़ रही है. जलकुंभी के कारण पानी में आक्सीजन नहीं मिलने पर जलीय जीव-जंतु बांध में लगातार दम तोड़ रहे हैं. मछली पालन से जुड़े लगभग पांच सौ से ज्यादा लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है. हरी-भरी घास दिखने के चलते आस-पास के मवेशी भी बांध में फंस जाते है. जलकुंभी खरपतवार के कारण बांध में न तो नावे चल सकती हैं और न ही मोटर, जिस कारण बांध अपना अस्थित्व खोता नजर आ रहा है.

कोई नहीं है सुनने वाला
पिछले कई महीनों से कानोता बांध के पानी में बिछी खरपतवार जलकुंभी के कारण रोजाना औसतन 6-7 टन मछलियां दम तोड़ रही हैं. इसके बावजूद खुली आंखों से अनदेखी करने वाले जिम्मेदार अफसर एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर मन ही मन में हंस रहे हैं और लोग रो रहे हैं, क्योंकि लोगों का रोजगार जो छिन रहा है, लेकिन उनकी व्यथा सुनने वाला कोई नहीं है. किसी विभाग को कुछ नहीं दिख रहा और ऐसे में मछलीपालन से जुड़े 500 से ज्यादा लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है.

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विशेषज्ञों की मानें तो कानोता बांध में फैल रही खरपतवार की रफ्तार इतनी है कि इसका एक पौधा एक बार में करीब 17 पौधों को जन्म देता है, जिसके कारण पूरे बांध पर इसका अतिक्रमण हो चुका है. जलकुंभी की भयानकता के कारण ना तो नावें इसमें चल सकती हैं और ना ही मोटर. इसके बावजूद मत्स्य विभाग, जल संसाधन विभाग और सिंचाई विभाग के अफसर एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर मजबूरी बता रहे हैं. वहीं अधिकारी कैमरे के सामने बोलने के लिए साफ भी मना कर रहे हैं.

खेती के लिए सिंचाई का जरिया
वर्ष 2000 में 17 फिट गहरे 2.59 किलोमीटर लंबाई और 402 वर्गमीटर कैचमेंट एरिया में 14.15- MCM भराव क्षमता वाले इस बांध का निर्माण आस-पास के क्षेत्र में पीने के पानी और सिंचाई की आपूर्ति के लिए करवाया गया, लेकिन ये इन दोनों ही उद्देश्यों में यह विफल हो रहा है. जानकारों का मानना है कि यदि बांध का पानी ढूंढ नदी में छोड़ा जाए तो कानोता-बस्सी क्षेत्र के सांभरिया, बराला, अचलपुरा, सिंडोली सहित सांख से लेकर कोटखावदा तक की खेती के लिए सिंचाई का जरिया बन सकता है, लेकिन जलकुंभी के फैलाव के कारण इस पर भी कोई काम नहीं हो रहा है.

ना कोई अधिकारी सुनता है ना कोई मंत्री
सुमेल सरपंच अजय सिंह राजावत ने बताया कि यहां के लोगों की मांग है कि कानोता बांध में जलकुंभी का जाल भयंकर बिछा हुआ है. कानोता बांध पूरी तरह से भर चुका है. कई बार मवेशी भी हरा चारा समझकर अंदर चले जाते है और बड़ी मुश्किल से मवेशियों को बाहर निकालना पड़ता है. इतना ही नही जिम्मेदार अधिकारियों सहित मंत्री को पत्र लिखकर भी अवगत करवाया है, लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं. ना कोई अधिकारी सुनता है ना कोई मंत्री. यहां पर मछलियां मरने से क्षेत्र में बदबू भी आने लग गई है. साथ ही आने-जाने वाले रास्ते भी पूरी तरह से बंद है. यहां के निवासियों की यही मांग है कि इस जलकुंभी को साफ कराया जाए और इस पानी को ढूंढ नदी में छोड़ा जाए जिससे इन मछुआरों का रोजगार मिल सके और इसके साथ ही क्षेत्र में बदबू ना फैले.

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खेती नसीब नहीं हो रही 
हमने तो सोचा था कि कानोता बांध का पानी ढुड़ नदी में छोड़ा जाएगा, क्योंकि 1 साल पहले क्षेत्रीय विधायक ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अवगत भी करवाया हैं. इस वजह से हमने तो खेती के लिए सरसों, चना के बीज ऊरा दिए है, लेकिन हमें क्या पता यह पत्र दिखावे का ही रह जाएगा, लेकिन अब पानी नहीं होने की वजह से फसल सूख रही है. ग्रामीणों का कहना है कि हमारी तो यही मांग है कि बस्सी क्षेत्र में इतना बड़ा बांध होने की वजह से उसके बाद भी हमें खेती नसीब नहीं हो रही है. इतना ही नहीं यदि हमारे ढूंढ नदी में पानी को छोड़ा जाए, आस-पास के 2 दर्जन से अधिक ग्राम पंचायत में सिंचाई के लिए पानी की समस्या का समाधान हो सकेगा. हम तो क्षेत्रीय विधायक और सरकार से यही मांग करते हैं कि जल्द से जल्द इस पानी को ढूंढ नदी में छोड़ा जाए जिससे हम लोग फसल कर अपना जीवन यापन कर सके.

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जलकुंभी पौधा निकाला जाएगा या नहीं?
क्षेत्र में पानी होने के बावजूद भी अधिकारी क्षेत्रीय विधायक मंत्री की कमी होने की वजह से आज विधानसभा के 2 दर्जन से अधिक ग्रांम पंचायत में खेती के लिए तरसना पड़ रहा है और इतना ही नहीं अधिकारी अपना राजस्व कमाने के लिए मछली पालन को ठेका तो दे दिया लेकिन उनकी समस्या जलकुंभी नाम के पौधे आने  से बनी हुई है. अब देखना यह होगा कि क्या जलकुंभी पौधा निकाला जाएगा या नहीं. इस पूरे मामले में अधिकारी चुप्पी साधे हुए है, आखिर यह कब तक चलेगा, लेकिन सरकारी कारिन्दे यहां के किसानों और मछली पालकों के लिए ना कोई व्यवस्था करना अति आवश्यकता समझ रहे है और ना आगे सरकार तक मैसेज कर रहे है. अब देखना यह होगा कि किसानों के लिए ढूंढ नदी में पानी को कब छोड़ा जाएगा और किसानों को अपनी खेती के लिए पानी कब मिल पायेगा.

Reporter: Amit Yadav

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