राजस्थान में 1000 करोड़ के पोषाहार आंगनबाड़ी बच्चों और गर्भवती महिलाओं के गले से नहीं उतर रहा. ज़ी मीडिया ने आंगनबाड़ी केंद्रों पर पड़ताल की, जिसमें हकीकत सामने आई है कि पोषाहार बच्चे या गर्भवती महिलाएं नहीं, बल्कि जानवर खा रहे हैं.
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Jaipur News: राजस्थान में 1000 करोड़ के पोषाहार आंगनबाड़ी बच्चों और गर्भवती महिलाओं के गले से नहीं उतर रहा. ज़ी मीडिया ने आंगनबाड़ी केंद्रों पर पड़ताल की, जिसमें हकीकत सामने आई है कि पोषाहार बच्चे या गर्भवती महिलाएं नहीं, बल्कि जानवर खा रहे हैं.
आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषाहार इसलिए दिया जाता है कि ताकि केंद्रों पर पढ़ने वाले गरीब बच्चों को पूरे पोषक तत्व मिल सकें और बच्चे कुपोषित ना हों. इसी व्यवस्था के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषाहार मिल रहा है. महिला बाल विकास विभाग की पोषाहार योजना में इस साल बदलाव किया गया. अब पोषाहार को सहकारिता विभाग की उपक्रम कॉनफैड के जरिए वितरित किया जा रहा है.
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जयपुर के सेंटर्स, लाभार्थी नहीं ले जा रहे पोषाहार
सबसे पहले जयपुर के एक आंगनबाड़ी सेंटर्स पर पहुंचे तो वहां बच्चे भी थे, पोषाहार का भंडार भी था. पोषाहार के पैकेट्स भी थे. वहां पहुंचे तो लाभार्थियों का कहना था कि ये पोषाहार बिल्कुल ठीक नहीं है, ना ही इसमें टेस्ट है और ना ही खाने योग्य. बच्चे पुराना पोषाहार तो खा लेते थे, लेकिन अब नया पैकेज वाला पोषाहार नहीं खा रहे हैं.
सेंटर्स का पोषाहार तो गौशालाओं में गाय खा रही
टीम ने देखा कि सेंटर्स का पोषाहार तो जानवर खा रहे हैं. पोषाहार आंगनबाड़ी सेंटर्स पर आता तो है, लेकिन बच्चों और गर्भवती महिलाओं को बंटता नहीं है क्योंकि लाभार्थी इस पोषाहार को पसंद ही नहीं कर रहे, जिस कारण ये पोषाहार गौशालाओं में गायों का डाला जा रहा है.
तंग गलियों का भी यही हाल
अब टीम जयपुर की तंग गलियों में गई तो वहां भी कुछ इसी तरह से हालात दिखाई देते हैं. अबकी बार टीम आंगनबाड़ी सेंटर या गोशाला नहीं बल्कि लाभार्थियों के घर पहुंची, जहां उन्होंने पोषाहार को लेने से साफ इंकार कर दिया.
वहीं दूसरी तरफ धौलपुर में आगंनबाडी केंद्रों पर पोषाहार की सामग्री कम पहुंच रही थी.जिसके बाद विभाग के तत्कालीन सचिव समित शर्मा ने कार्रवाई के लिए विभाग की मंत्री ममता भूपेश को लिखा था.हालांकि बाद में समित शर्मा को महिला बाल विकास विभाग के सचिव पद के चार्ज से हटा दिया गया.
जानें पुराना और नया पोषाहार-
आंगनबाड़ी केंद्र पर पहले गेहूं, चावल, दाल और पंजीरी जैसी सूखी सामग्रियों पर दी जाती थी. बच्चों को कुपोषण से छुटकारा दिलाने के लिए आईसीडीएस ने पोषाहार वितरण में बदलाव कर सभी आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों, गर्भवती, धात्री महिलाओं और किशोरियों को पोसेस्ड पूरक पोषाहार वितरण किया जा रहा है. केंद्रों से जुड़े लाभार्थियों को बंद पैकेट में सामग्री का वितरण हो रहा है लेकिन ये पैकेट बिल्कुल पंसद नहीं किया जा रहा है.
कैटेगरी वाइज पैकेटों में लाभार्थियों को सामग्री का वितरण-
6 माह से 3 वर्ष के बालकों को फोर्टीफाइड न्यूट्री मीठा दलिया 480 ग्राम, फोर्टीफाइड मूंग दाल, चावल खिचड़ी 480 ग्राम, फोर्टीफाइड सादा गेहूं का दलिया 540 ग्राम, फोर्टीफाइड बालाहार प्रीमिक्स 1375 ग्राम के पैकेट में दिया जाएगा. गर्भवती और धात्री महिलाओं को फोर्टीफाइड न्यूट्री मीठा दलिया 1400 ग्राम, मूंग दाल, चावल खिचड़ी 1400 ग्राम, फोर्टीफाइड सादा दलिया 700 ग्राम, 6 माह से 3 वर्ष के अति कुपोषित बच्चों को सामान्य बच्चों के अलावा 500 ग्राम फोर्टीफाइड मूंग दाल, चावल खिचड़ी 500, सादा गेहूं दलिया 1500 ग्राम, बालाहार प्रीमिक्स 1125 ग्राम के दो पैकेट में दिया जाएगा। वहीं 3 से 6 वर्ष के अति कुपोषित बच्चों को फोर्टीफाइड बालाहार प्रीमिक्स 1550 ग्राम के पैकेट में दिया जा रहा है.
कॉनफैड ने इन तीन कंपनियों को दिया कॉन्ट्रैक्ट
आईसीडीएस ने अबकी बार पोषाहार का कॉन्ट्रैक्ट सहकारिता विभाग की उपक्रम कॉनफैड से किया है, जो तीन कंपनियां जिसमें कोटा दाल मील, सांई ट्रेडिंग जयपुर और जेवीएस फूड प्राईवेट लिमिटेड के जरिए पूरे राजस्थान में पोषाहार बांट रही हैं. करीब 14 हजार मीट्रिक टन हर महीने प्रदेश के 62 हजार आंगनबाड़ी सेंटर्स पर वितरित किया जा रहा है, जिसका खर्च हर महीने करीब 80 से 90 करोड़ तक आता है यानि करीब 1000 करोड़ का खर्च पोषाहार किया जा रहा है. कॉनफैड एमडी का कहना है कि हमने खुद खाकर ही पोषाहार का वितरण किया जा रहा है. क्वालिटी के साथ कोई समझौता नहीं है.
विधायक ने उठाए सवाल
विधायक राजकुमार रोत ने इस योजना पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने डूंगरपुर के आंगनबाड़ी केंद्रों पर मिलने वाले पोषाहार में कैल्शियम की जगह पत्थर मिलाए जाने का अंदेशा जताया है. इसको लेकर उन्होंने पूरे मामले की जांच के लिए कहा है. उन्होंने कहा है कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में बच्चे कुपोषित और अतिकुपोषित हैं. ऐसे में इस योजनाओं का लाभ सही ढंग से बच्चों को नहीं मिल रहा है. इस पोषाहार की दो से चार लैब में जांच करवाई जाए और इस पोषाहार को तुरंत प्रभाव से बंद किया जाए.
वहीं दूसरी तरफ बताया जा रहा है कि पोषाहार मामले में मंत्री ममता भूपेश और आईएएस समित शर्मा के बीच विवाद हुआ था, जिसके बाद में समित शर्मा को सचिव पद से हटना पड़ा.
जिम्मेदार अफसरों की खामोशी
इधर पोषाहार गले से नहीं उतरा रहा, उधर जिम्मेदार अफसरों की खामोशी टूटने का नाम नहीं ले रही. आईसीडीएस डायरेक्टर रामवतार मीणा से जी मीडिया ने बार बार संपर्क कर पूरे मामले में पूछने की कोशिश की. फोन किया, मैसेज किया. दफ्तर में जाकर मिलना चाहा. लेकिन पूरे मामले पर उनकी खामोशी टूटने का नाम ही नहीं ले रही. ऐसे में सवाल यही कि यदि पैकेट बंद पोषाहार गले से नहीं उतर रहा, इसमें टेस्ट नहीं तो फिर से पुराना पोषाहार बच्चों और महिलाओं को क्यों नहीं बांटा जा रहा?