निकाय सीमा में शामिल गांवों की सड़कों की स्थिति खराब है. बारिश में पूरा क्षेत्र कीचड़ से सराबोर हो जाता है.
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Jaipur: गांव के लोग शहरवासी तो बन गए लेकिन उन्हें सुविधाएं मुहैया नहीं हो पा रही हैं. इन लोगों को नगर पालिका में शामिल हुए साल गुजर गए लेकिन इन लोगों को नाली और सड़क सहित अन्य सुविधाएं अभी नहीं मिल सकीं. शहरवासी बनने पर इन ग्रामीणों को बहुत उम्मीद थी कि अब उनकी बस्ती में सड़क बनेगी और पानी निकासी के लिए नाली सहित अन्य सुविधाएं मिल सकेंगी लेकिन सुविधाओं का अभाव बना हुआ है.
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राज्य में पिछले वर्षों में 30 नए निकायों का गठन कर 98 से ज्यादा गांव शहरी निकायों (नगर निगम, नगर परिषद, नगर पालिका) की सीमा में शामिल तो कर लिए गए लेकिन ज्यादातर इलाके आज भी शहरी सुविधाओं से वंचित हैं. निकाय की सीमा में आते ही न केवल रजिस्ट्री कराना महंगा हो गया बल्कि नगरीय विकास कर (यूडी टैक्स) के दायरे में भी आ गए. डीएलसी दर को सरकारों ने तिजोरी भरने का जरिया बना लिया. सरकार ने ऐसे नवगठित निकायों में सुविधाओं का ब्लू प्रिंट तक नहीं दिया. ऐसे में सुविधाओं से ज्यादा जमीनों की रजिस्ट्री से लेकर टैक्स का बोझ जरूर बढ़ गया. इसमें स्थानीय राजनीति भी हावी रही. सत्तापक्ष से जुड़े नेताओं के दबाव और वोट बैंक के चलते ऐसे ग्रामीण इलकों को शहरी निकाय का दर्जा दे दिया, जहां अभी इसकी जरूरत नहीं थी हालांकि कलक्टर स्तर पर गठित कमेटी तय कर सकती है कि शहरी सुविधाएं विकसित न हों तब तक डीएलसी दर नहीं बढ़ाई जाए.
ये बने शहरी निकाय, 98 गांव किए शामिल
मण्डावरी, लालगढ़ जाटान, जावाल, बस्सी, पावटा, प्रागपुरा, कुनेड, भोपालगढ़, बासनीथेड़ा, बामनवास पट्टीकला, बामनवास पट्टीखुर्द, सीकरी, उच्चैन, गहलउ, खरैरा, मुढेरा, सपोटरा, सुल्तानपुर, नोताडा, सरमथुरा, बसेड़ी, तिमासिया, अटरू, खेड़लीगंज, रतनपुरा, रामगढ़, दोहली, पिपरोली, बानसूर, लक्ष्मणगढ़. इनमें 98 राजस्व ग्राम शामिल किए गए हैं.
ऐसे समझें मामला
पहले- ग्रामीण इलाके में कृषि, आवासीय, व्यावसायिक सम्पत्ति की निर्धारित डीएलसी दर से रजिस्ट्री होती है. मसलन, बगरू में कृषि भूमि के लिए डीएलसी दर 1500 रुपये प्रति वर्गगज है तो वहां सभी की रजिस्ट्री इसी दर पर होगी.
अब- नगरीय सीमा में शामिल होने के बाद 1000 वर्गगज तक कृषि भूमि की रजिस्ट्री पर डीएलसी की तीन गुना गणना की जाती है...जैसे कि कृषि भूमि की डीएलसी दर 1500 रुपये प्रति वर्गगज है और 990 वर्गगज कृषि भूमि की रजिस्ट्री करानी है तो तीन गुना 4500 रुपये प्रति वर्गगज के आधार पर गणना होगी.
डीएलसी दर
निकाय सीमा में शामिल जमीनों की डीएलसी दर अधिकतर मामलों में ज्यादा रहती है. भले ही सुविधाएं ज्यादा न हों. इसका निर्धारण जिला कलक्टर की अध्यक्षता में गठित कमेटी करती है. इससे रजिस्ट्री महंगी हो गई.
यूडी टैक्स (नगरीय विकास कर)
नगरीय सीमा में शामिल होते ही ग्रामीण इलाका नगरीय विकास के दायरे में आ जाता है. 300 वर्गगज से अधिक क्षेत्रफल का व्यक्तिगत मकान, 1500 वर्गफीट से अधिक फ्लैट, 100 वर्गगज से बड़ी कॉमर्शियल व औद्योगिक सम्पत्ति है तो उससे यूडी टैक्स वसूला जाता है.
क्या कहना है ग्रामीणों का
शहर में शामिल किए गए 98 गांव के लोग सड़क और पानी को लेकर परेशानी में हैं. इन्हें न तो समय पर पानी मिल पा रहा है और न ही उबड़खाबड़ सड़कों से निजात. सरकारी महकमे की दलीलों पर इनका विश्वास उठ गया है. नए वार्डों के ये ग्रामवासी कहने लगे हैं कि इससे अच्छा तो वो ही था कि पंचायत में जाकर कह देते थे तो काम हो जाता था. गांवों में पड़े खाली प्लाट कचराघर बन गए हैं. इन गांवों में कचरा फेंकने के लिए कोई कंटेनर नहीं रखा गया है. कर्मचारी कभी-कभार झाड़ू लगाने पहुंचते हैं. कचरे उठाया नहीं जाता है बल्कि उसमें आग लगा दी जाती है. कॉलोनियों में जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है. दूषित पानी से संक्रमण का खतरा है. सड़क पर पानी बहने से कीचड़ हो जाती है, लोगों को आवागमन में परेशानी होती है.
गांवों की सड़कों की स्थिति खराब
निकाय सीमा में शामिल गांवों की सड़कों की स्थिति खराब है. बारिश में पूरा क्षेत्र कीचड़ से सराबोर हो जाता है. कॉलोनियों में विद्युत व्यवस्था चरमरा गई है हालांकि कुछ स्थानीय निवासी खुश है. अब उन्हें नगर पालिका से पट्टा मिलेगा और उनके क्षेत्र के दिन फिरेंगे.
बहरहाल, गांव को भले ही शहरों में शामिल कर दिया हो. लेकिन यहां के हालात और तस्वीरें देखकर लगता है केवल अफसरों ने अपने कागजों पर कलम चला कर इन्हें शहर का तमगा दे दिया है और सुविधाओं के नाम पर ठेंगा दिखा दिया है.