प्रदेश के बड़े सरकारी अस्पताल में मेडिकल स्टॉफ की कमी, स्वास्थ्य मंत्री बोले- सरकार की RUHS में कोई दखलंदाजी नहीं
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प्रदेश के बड़े सरकारी अस्पताल में मेडिकल स्टॉफ की कमी, स्वास्थ्य मंत्री बोले- सरकार की RUHS में कोई दखलंदाजी नहीं

Jaipur : अस्पताल में करोड़ों ली लागत से मुहय्या कराए गए मेडिकल उपकरण और सामान अब कबाड़ में तब्दील हो रहे हैं.

प्रदेश के बड़े सरकारी अस्पताल में मेडिकल स्टॉफ की कमी, स्वास्थ्य मंत्री बोले- सरकार की RUHS में कोई दखलंदाजी नहीं

Jaipur : कोरोना काल में जो राजस्थान का सबसे बड़ा सरकारी डेडिकेटेड कोविड अस्पताल था. वहां अब मेडिकल स्टॉफ की कमी है. RUHS अस्पताल का इंफ्रास्ट्रक्चर इतना बड़ा है, कि एसएमएस अस्पताल पर पड़ने वाले बोझ को आसानी से कम किया जा सके, लेकिन अब तक ऐसा संभव नहीं हो सका है.

कई बार राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस की ओर से भर्तियों को लेकर प्रक्रिया शुरू की गई,  लेकिन किसी ना किसी कारण के भर्तियां रुक गई. ऐसे में आज भी आर यू एच एस अस्पताल में सिर्फ सर्दी और खांसी से पीड़ित मरीजों का इलाज हो रहा है. जबकि अस्पताल में एडवांस तकनीकी से युक्त हर संसाधन मौजूद है. 

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मामले को लेकर प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा का कहना है कि राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस एक इंडिपेंडेंट बॉडी है, सरकार की उसमें कोई दखलंदाजी नहीं है और आर यू एच एस में खाली पड़े पदों पर जल्द से जल्द भर्ती हो हमारी यही कोशिश है. हमने कुछ समय पहले खाली पड़े मेडिकल स्टॉफ के पदों पर भर्ती की प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिये थे, लेकिन राजभवन के एक पत्र के बाद इस भर्ती को रोकना पड़ा.

मंत्री ने कहा कि हमने राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस के वीसी खाली पड़े पदों को भरने के लिए कहा है और राजभवन के जिस पत्र के कारण भर्ती अटकी है उस कारण को दूर करने के निर्देश दिए हैं. आपको बता दें कि मरीजों के इलाज के लिए अस्पताल में चिकित्सकों की कमी लंबे समय से चली आ रही है

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मेडिकल कॉलेज के लिए 20 प्रोफेसर और 20 एसोसिएट प्रोफेसर की जरूरत है, इसके अलावा असिस्टेंट और सीनियर-जूनियर रेजिडेंट मिलाकर तकरीबन 100 चिकित्सकों की आवश्यकता है, जबकि इतनी ही संख्या में नर्सिंग और पैरामेडिकल स्टाफ की जरूरत है.

करोड़ों के संसाधन हो रहे खराब 
जब प्रदेश में कोविड-19 का कहर था तब करोड़ों रुपए की लागत से इंफ्रास्ट्रक्चर अस्पताल में तैयार किया गया था, लेकिन कोरोना खत्म होने के बाद, वहां लगे चिकित्सकों को उनके मूल पद पर भेज दिया गया. जिसके बाद अब धीरे-धीरे यह इंफ्रास्ट्रक्चर कबाड़ में तब्दील हो रहा है। मौजूदा समय में अस्पताल में 300 आईसीयू बेड मौजूद है जिनमें मुश्किल से 8 या 10 मरीज एडमिट है जबकि 1200 ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड अस्पताल में मौजूद हैं और इन बेड पर 100 मरीज भी भर्ती नहीं है, ऐसे में ये पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर कबाड़ में तब्दील हो रहा है. इसके अलावा आईसीयू के हर बेड पर वेंटिलेटर मौजूद है. जिनका उपयोग भी अस्पताल में नहीं हो पा रहा और अस्पताल में सिर्फ सर्दी खांसी और जुकाम से पीड़ित मरीजों का इलाज हो रहा है.

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