जयपुर: मेयर डॉ. सौम्या गुर्जर की कुर्सी फिर से खतरे में, गिर सकती है गाज
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जयपुर: मेयर डॉ. सौम्या गुर्जर की कुर्सी फिर से खतरे में, गिर सकती है गाज

सुप्रीम कोर्ट से स्टे लेने के बाद जयपुर नगर निगम ग्रेटर की मेयर कुर्सी पर दोबारा बैठी और एक बार फिर डॉक्टर सौम्या गुर्जर को बड़ा झटका लगा है. 

मेयर डॉ. सौम्या गुर्जर की कुर्सी फिर से खतरे में

Jaipur: सुप्रीम कोर्ट से स्टे लेने के बाद जयपुर नगर निगम ग्रेटर की मेयर कुर्सी पर दोबारा बैठी और एक बार फिर डॉक्टर सौम्या गुर्जर को बड़ा झटका लगा है. पिछले साल 6 जून को तत्कालीन आयुक्त से विवाद के बाद राज्य सरकार की ओर से करवाई गई न्यायिक जांच पूरी हो गई है. जिसमें मेहर के साथ ही अन्य तीनों पार्षदों पारस जैन, अजय सिंह और शंकर शर्मा को दोषी माना गया है. इस रिपोर्ट के बाद अब सौम्या गुर्जर के मेयर बने रहने पर खतरा बढ़ गया है.

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साथ ही 88 गवानों के बयान, 200 से अधिक पेशी और 430 दिन तक चली न्यायिक जांच में नगर निगम ग्रेटर महापौर डॉ. सौम्या गुर्जर की मुश्किलें बढ़ा दी है. तत्कालीन आयुक्त यज्ञ मित्र सिंह देव के साथ हुए विवाद के बाद राज्य सरकार की ओर से करवाई गई न्यायिक जांच आखिर 430 दिन बाद पूरी हो गई है, जिसमें मेयर डॉ. सौम्या और तीन पार्षद पारस जैन, अजय सिंह और शंकर शर्मा को दोषी माना गया है.

दरअसल तत्कालीन नगर निगम कमीश्नर यज्ञमित्र सिंह देव के साथ हुए विवाद के बाद सरकार ने सौम्या गुर्जर को 6 जून 2021 को मेयर पद से निलंबित कर दिया था और उनके खिलाफ न्यायिक जांच के आदेश दिए थे. ये जांच संयुक्त सचिव विधि प्रारूपण मुदिता भार्गव ने जांच कर रही थी. सौम्या गुर्जर को मेयर पद से निलंबित के आदेश पर इस साल एक फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने स्टे दिया था. सुप्रीम कोर्ट के स्टे के बाद सौम्या गुर्जर वापस मेयर की कुर्सी पर बैठी थी. निलंबन के दौरान 7 जून 2021 से 1 फरवरी 2022 तक कार्यवाहक के तौर पर भाजपा की शील धाभाई को मेयर की कुर्सी पर बैठाया था. दरअसल राज्य सरकार के निलंबन के आदेश पर स्टे के लिए सौम्या गुर्जर ने पिछले साल राजस्थान हाईकोर्ट में भी याचिका लगाई थी, लेकिन वहां से उन्हें कोई राहत नहीं मिली थी.

अब तक पूरा घटनाक्रम
4 जून को तत्कालीन आयुक्त यज्ञमित्र सिंह देव ने हाथापाई के आरोप लगा मामला दर्ज कराया
5 जून को यूडीएच मंत्री ने जांच उपनिदेशक डीएलबी आरएएस स्तर के अधिकारी को सौंपी

मेयर-कमिश्रर की जांच आरएएस स्तर पर कराने को उठे सवाल 
6 जून को जांच प्रभावित नहीं होने की बात कहकर मेयर और तीन पार्षदों को निलंबित किया गया
7 जून को कार्यवाहक मेयर शील धाभाई को बनाया गया
7 जून से 1 फरवरी तक कार्यवाहक के तौर पर शील धाभाई ने संभाली कुर्सी, हालांकि विवादों में रहीं
10 जून को सौम्या के पति राजाराम का पैसों का वीडियो वायरल हुआ
2 फरवरी 2022 को सुप्रीम कोर्ट से स्टे मिलने के बाद डॉ.सौम्या ने फिर से कुर्सी संभाली
10 अगस्त 2022 को शाम को न्यायिक जांच रिपोर्ट में मेयर डॉ.सौम्या और तीन पार्षद दोषी

एडवोकेट एडवोकेट विष्णु दयाल शर्मा ने बताया कि न्यायिक जांच में नगर पालिका अधिनियम की धारा 39(1)(d) सहित अन्य प्रावधानों के अनुसार, दुराचरण, कर्तव्यों के पालन में लापरवाही बरतने और अभद्र भाषा के आरोप में दोषी करार दिया है. करीब 430 दिन तक चली जांच के दौरान 200 पेशियां हुई, इसमें अभियोजन और बचाव पक्ष के 88 गवाहों के बयान दर्ज हुए हैं. जिसमें से 56 गवाह विभाग की ओर से हुए और 36 गवाह के बयान मेयर और पार्षदों की ओर से हुए.

जांच में सभी आरोपों को कोर्ट ने प्रूव माना. जांच रिपोर्ट बंद लिफाफे में स्वायत्त शासन विभाग को भेज दी गई है, जिसे राज्य सरकार को निर्णय लेना है. दरअसल नगर निगम ग्रेटर के तत्कालीन आयुक्त यज्ञमित्र सिंह देव ने ज्योति नगर पुलिस थाने में जून 2021 में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि पार्षदों ने नगर निगम की बैठक के दौरान उनके साथ मारपीट कर अभद्र भाषा का प्रयोग किया. साथ ही राजकार्य में रुकावट पहुंचाई, इसके चलते राज्य सरकार ने मेयर सौम्या को निलंबित कर दिया था. सौम्या के निलंबन मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने भी राज्य सरकार को मामले की न्यायिक जांच छह महीने में पूरी करने का निर्देश दिया था. घटना 4 जून 2021 की थी जिसे राज्य सरकार के ऑर्डर को महापौर की ओर से 8 जून 2021 को कोर्ट में चैलेंज किया गया. 28 जून 2021 को डबल बेंच हाईकोर्ट ने सौम्या गुर्जर की याचिका को खारिज किया, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने डे बाय डे न्यायिक जांच की मॉनिटरिंग की और हर 15 दिन में यहां की कार्रवाई को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया जाता रहा. 2 फरवरी 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने ऑर्डर दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि चूंकि जांच में समय लग रहा है. ऐसी स्थिति में सौम्या गुर्जर को कैप्ट इन एंबिएंस के तहत वापस बहाल किया जाता है, लेकिन आदेशों में ये स्पष्ट कहा गया था कि जब भी न्यायिक जांच पूरी हो उसकी कॉपी सुप्रीम कोर्ट में पेश की जाए. ऐसे में जांच पूरी होने के बाद सील पैक लिफाफे में एलएसजी सेक्रेटरी को भेजी गई है. एलएसजी सेक्रेटरी इसे पढ़कर आदेशों के लिए राज्य सरकार को भेजेंगे.

इस पर राज्य सरकार अंतिम फैसला लेकर महापौर को पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करेगा. ऐसे में अब सौम्या गुर्जर का ग्रेटर नगर निगम के महापौर पद से हटना तय है. बशर्ते वो रिट पिटीशन दायर करके हाईकोर्ट से कोई स्टे ऑर्डर न लाए. हालांकि इसकी संभावनाएं न के बराबर है क्योंकि न्यायिक जांच को प्यूरिफाई जजमेंट कहा जाता है. कारण साफ है इस केस की ट्रायल डेढ़ साल तक चली है और एक-एक गवाह और डॉक्यूमेंट का एग्जामिनेशन होने के बाद कोर्ट ने डिटेल ऑर्डर जारी किया है, इसके साथ ही पहले से निलंबित चल रहे तीनों पार्षदों पर भी आरोप सिद्ध हुए हैं. 

आपको बता दें कि डॉ. सौम्या के लिए लड़ाई अब केवल मेयर की कुर्सी बचाने की नहीं, बल्कि दबाव खुद के पॉलिटिकल कैरियर का भी है. न्यायिक जांच में सौम्या गुर्जर का दोष सिद्ध हो गया है. ऐसे में न केवल उनका निलंबन होगा, बल्कि एक्ट के सेक्शन 39 के तहत वो 6 साल तक कोई और चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगी.

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