जयपुर के एक सरकारी अस्पताल में जन्में दो मासूम कुछ इस तरह भटक रहे हैं कि अपनी मां का आंचल भी उन्हें नसीब नहीं हो रहा है. मामला जयपुर के सांगानेरी गेट महिला अस्पताल का है. जहां 72 घंटे से ज्यादा बीत जाने के बाद भी निशा और रेशमा को अपने बच्चों से दूर रहना पड़ रहा है.
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Jaipur: जयपुर के एक सरकारी अस्पताल में जन्में दो मासूम कुछ इस तरह भटक रहे हैं कि अपनी मां का आंचल भी उन्हें नसीब नहीं हो रहा है. मामला जयपुर के सांगानेरी गेट महिला अस्पताल का है. जहां 72 घंटे से ज्यादा बीत जाने के बाद भी निशा और रेशमा को अपने बच्चों से दूर रहना पड़ रहा है. परिवार बेटे को लेने पर आमादा है बेटी को कोई अपनाना नहीं चाहता. इस पूरे वाकिए ने ना सिर्फ अस्पताल की लापरवाही को एक्सपोज किया है बल्कि समाज की उस घिनौनी सोच को भी उजागर कर दिया जहां आज भी बेटियों को अपनाने से लोग बचते हैं. सुनने में इस खबर की कहानी किसी फिल्म की पटकथा जैसी लगती है लेकिन पूरी तरह सच है ,जिसमें दो मां हैं एक हिंदू और एक मुस्लिम.
रेशमा ने बेटी और निशा ने ऑपरेशन से बेटे को दिया जन्म
रेशमा और निशा ने ऑपरेशन से बेटे और बेटी को जन्म दिया. तीन दिन तक दोनों बच्चों को अपना-अपना दूध पिलाती रही. फिर बच्चों के जन्म के तीसरे दिन दोनों को अचानक अस्पताल प्रशासन से पता चला कि जिस बच्चे को वो पाल रही हैं उनके गर्भ का नहीं है. हिंदू मां के पास मुस्लिम बच्चा है और मुस्लिम मां के पास हिंदू बच्चा है. जब उन्हें बच्चों के बदल जाने का पता चला तो दोनों दंग रह गईं. मामला जयपुर के महिला चिकित्सालय का है. रेशमा और निशा दोनों को एक ही वक्त पर लेबर रूम में ले जाया गया. रेशमा ने बेटी और निशा ने ऑपरेशन से बेटे को जन्म दिया लेकिन अस्पताल स्टाफ की गलती की वजह से बच्चों की अदला बदली हो गई. अस्पताल स्टाफ गलती की वजह से रेशमा की गोद में बेटा आ गया और निशा के पास बेटी. बच्चों की अदला-बदला की बात सामने आई तो रेशमा के परिवार वालों ने अस्प्ताल में हंगामा कर दिया. जिसे बेटा थमाया गया था उसने 3 दिन बाद अपनी ही बेटी को लेने से मना कर दिया, जिसके बाद से अस्पताल में परिजनों का हंगामा जारी है.
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इस मामले में अस्पताल की लापरवाही साफ तौर पर सामने आई है और इस लापरवाही का खामियाजा दो मासूम नवजातों को उठाना पड़ रहा है. जिसके कारण नवजात बच्चों को पिछले 72 घंटे से भी ज्यादा समय से अपनी मां का आंचल नसीब नहीं हो पा रहा. इन नवजात बच्चों में एक लड़का और एक लड़की शामिल है. मामला 1 सितंबर का है जहां रेशमा और निशा की डिलीवरी जयपुर के सांगानेरी गेट महिला अस्पताल में हुई.
डिलीवरी के बाद रेशमा को बताया गया कि उनके लड़का पैदा हुआ है जबकि निशा को बताया गया कि उनको लड़की पैदा हुई है. इस दौरान निशा और रेशमा को अस्पताल में भर्ती रखा गया. 3 दिन बाद रेशमा और निशा को कहा गया कि उनके बच्चों की जांच करनी है. जिसके बाद जब दोनों ही अपने नवजात बच्चों को लेकर चिकित्सक के पास पहुंचे तो उन्होंने रेशमा से कहा कि आप को लड़की पैदा हुई थी और गलती से हमने आपको लड़का दे दिया जबकि निशा को कहा गया कि आपके लड़का पैदा हुआ था लेकिन आपको गलती से लड़की दे दी गई.
इस घटना के बाद अस्पताल में हंगामा हो गया, जिसके बाद दोनों ही बच्चों को पिछले 3 दिन से एन आई सी यू में भर्ती किया गया है और अभी तक यह तय नहीं हो पाया है कि निशा और रेशमा का बच्चा कौन सा है. मामले को लेकर रेशमा के पिता का कहना है कि जब रेशमा की डिलीवरी हुई तो हमें बताया गया था कि उसे लड़का पैदा हुआ है और कैमरे में भी यह दिखाई दे रहा है. जबकि निशा के परिजनों का कहना है कि हमें भी 3 दिन बाद बताया गया कि आपको लड़की नहीं बल्कि लड़का पैदा हुआ है.
अस्पताल की इस लापरवाही के बाद दोनों ही परिवारों के लोगों ने हंगामा शुरू कर दिया। निशा के परिजनों का कहना है कि अगर डॉक्टर कह रहे हैं कि निशा को लड़का पैदा हुआ है तो हम लड़का ही लेकर जाएंगे चाहे हमें कोर्ट तक क्यों न जाना पड़े जबकि रेशमा के परिजन भी कह रहे हैं कि हमें भी लड़का चाहिए.
मामला जब सामने आया तो दोनों ही परिवारों के लोग लड़की को अपनाने से मना कर रहे हैं निशा और रेशमा के परिजनों का कहना है कि हमें सिर्फ लड़का ही चाहिए इसके लिए हम अस्पताल में धरना तक दे देंगे. जबकि निशा का कहना है कि मुझे मेरा बच्चा चाहिए और पिछले 3 दिनों से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी मुझे यह नहीं बताया गया है कि मेरा बच्चा कौन सा है जबकि रेशमा का कहना है कि जब मेरी डिलीवरी हुई तो मुझे बताया गया था कि मेरे लड़का पैदा हुआ है और कागजों में भी लड़का ही बताया गया है तो ऐसे में मुझे लड़का ही चाहिए.
अस्पताल में हुई इस लापरवाही के बाद अस्पताल प्रशासन ने मामले की लीपापोती के लिए अस्पताल प्रशासन की ओर से जांच कमेटी बनाई गई है और अस्पताल प्रशासन की ओर से हुई इस लापरवाही कि जांच अभी तक पूरी नहीं हो पाई है. अस्पताल प्रशासन से हुई इस लापरवाही के बाद दोनों ही परिवार लड़की को अपनाने से इंकार कर रहे हैं हालांकि परिजनों का कहना है कि अस्पताल की ओर से डीएनए जांच की बात कही गई है.
जबकि अस्पताल प्रशासन से जब बातचीत करनी चाही तो उनका कहना था कि जब तक कमेटी अपनी जांच पूरी नहीं कर लेती तब तक कुछ कहना मुश्किल है. भले ही पूरे मामले में अभी तक यह पता नहीं लग पाया है कि लड़का और लड़की के असली माता पिता कौन है.