Rajasthan Election 2023: वसुंधरा राजे के चेहरे पर लड़ने वाली बीजेपी अभी तक चेहरे को लेकर चुप है. गहलोत ने इशारों ही इशारों में दो बातें कह दी, लेकिन इसमें भी उन्होंने भविष्य के बड़े संकेत दे दिए. चुनाव जीतने के बाद घोड़ी कौन चढ़ेगा, दूल्हा कौन होगा और सेहरा किसके सिर बंधेगा यह सवाल भी लोगों के जेहन में हैं.
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Rajasthan Election 2023: चुनाव लोकसभा का हो या विधानसभा का. एक को सरकार में लाने और दूसरे को सरकार से नकारने का चुनाव होता है, लेकिन चुनाव की इस विधा में वोट किस आधार पर मांगे जाते हैं. इसकी अपनी अलग अहमियत है.
अब वोट नीति पर मांगते हैं, नीयत पर मांगते हैं या फिर पार्टियां अपने नेताओं के चेहरों पर वोट मांगती हैं. हर पार्टी का अपना अलग तरीका होता है, लेकिन चेहरे की अहमियत को भी कम नहीं आंका जा सकता. यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी भले ही अब तक बिना चेहरे के चुनाव लड़ने की बात करती थी. वो कहती हैं कि किसी भी राज्य में जहां सरकार होती है वहां सीएम ही चेहरा होते हैं.
तो साल 2003 से लेकर पिछले चार चुनाव वसुंधरा राजे के चेहरे पर लड़ने वाली बीजेपी अभी तक चेहरे को लेकर चुप है. चेहरे के सवाल पर बीजेपी मोदी का नाम और कमल के फूल को ही आगे करती है, लेकिन अब तो सीएम अशोक गहलोत ने भी कह दिया है कि वसुंधरा राजे को उनके यानि अशोक गहलोत के कारण सजा नहीं मिलनी चाहिए.
ऐसे में सवाल यह उठता हैं कि क्या वाकई फेस पॉलिटिक्स समय की ज़रूरत हो गई है. सवाल यह भी कि, क्या चेहरे के बिना चुनाव परवान नहीं चढ़ता. सवाल यह भी कि क्या अशोक गहलोत खुद चाहते है कि बीजेपी की तरफ़ से वसुंंधरा राजे का चेहरा हो तो चुनाव रोचक हो या फिर वसुंधरा राजे का नाम लेकर गहलोत बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व और वसुंधरा राजे के बीच की दूरी बढ़ा रहे हैं. इस पर चर्चा करेंगे लेकिन इस मुद्दे पर व्यूज़ लें उससे पहले देखते हैं यह न्यूज़.
राजनीति में चेहरे की अहमियत होती है. कभी चेहरा चुनाव जिताता है तो कभी किसी के चेहरे पर चुनाव हार भी सकते है, लेकिन चुनाव में राजनीतिक पार्टियां किसी नेता का चेहरा तभी घोषित करती हैं जब वह पार्टी की बड़ी ज़रूरत हो या कभी-कभी मजबूरी भी. अब एक बार फिर चुनाव से पहले चेहरे की चर्चा हो रही है. कांग्रेस में चेहरा कौन होगा. चुनाव जीतने के बाद घोड़ी कौन चढ़ेगा, दूल्हा कौन होगा और सेहरा किसके सर बंधेगा यह सवाल भी लोगों के जेहन में हैं.
सीएम गहलोत से भी इसी तरह का सवाल हुआ तो उन्होंने दो बड़ी बात कही. पहली बात तो यह कि जो दावेदार होता है, वह सीएम नहीं बनता और दूसरी यह कि, वे तो सीएम की कुर्सी छोड़ना चाहते हैं लेकिन यह पद उन्हें नहीं छोड़ता.
उधर बीजेपी में इस बार अगुवाई करने वाले चेहरे की बात करें तो पिछले दिनों जयपुर की सभा में पीएम मोदी साफ कर चुके हैं कि ना कोई चेहरा है, ना शान. पीएम ने कहा था कि सिर्फ कमल का फूल ही बीजेपी की पहचान है.
गहलोत ने इशारों ही इशारों में दो बातें कह दी, लेकिन इसमें भी उन्होंने भविष्य के बड़े संकेत दे दिए. दिल्ली में वसुंधरा राजे को लेकर सवाल आया तो सीएम गहलोत के दो रिएक्शन थे. पहला तो उन्होेंने वसुंधरा राजे को इग्नोर करने को बीजेपी का अन्दरूनी मामला बताया, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि, 'मेरे कारण उनको सज़ा नहीं मिलनी चाहिए'. 'यह उनके साथ अन्याय होगा'.
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पिछले कुछ दिनों में यह दूसरा मौका है जब सीएम गहलोत ने वसुंधरा राजे को लेकर इस तरह की बात कही है. इससे पहले भी वे सीएम हाउस में मीडिया से बात करते हुए खुद कह चुके हैं कि बीजेपी में सीएम के कई दावेदार घूम रहे हैं. गहलोत ने यह भी कहा था कि जो असली दावेदार है और दो बार सीएम रही हैं, उनको तो कोई पूछ ही नहीं रहा. अब गहलोत की तरफ़ से वसुंधरा राजे को लेकर आ रहे इस तरह के बयानों का चर्चा इस बात को लेकर ज़ोर पकड़ रही है कि आखिर सीएम के दिमाग में चल क्या रहा है.
क्या वाकई वे खुद भी चाहते हैं कि वसुंधरा ही बीजेपी का चेहरा हों. या अपने बयानों के जरिये वे बीजेपी. नेतृत्व और वसुंधरा राजे के बीच दूरी इतनी बढ़ा देना चाहते हैं कि यह दूरी खत्म ही ना हो सके और सवाल यह भी कि, जब हर पार्टी अपनी सहूलियत चाहती है, तो गहलोत की सहूलियत क्या है.किसी चेहरे के साथ बीजेपी या बिना चेहरे की बीजेपी.