नेता प्रतिपक्ष ने कर्जमाफी के आदेश को ही लंगड़ा आदेश बता दिया. खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मोर्चा संभालते हुए कह दिया कि लंगड़ी सोच ही किसानों के लिए जारी आदेश को लंगड़ा आदेश बता सकती है.
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जयपुर: नई विधानसभा के पहले सत्र में शुरुआती तीन दिन रस्म-अदायगी के बाद शुक्रवार को विधायी कामकाज का पहला दिन था. पहले ही दिन विपक्ष ने अपने तेवर दिखाते हुए सरकार को घेरने की कोशिश की. इस दौरान विपक्ष ने किसानों की कर्जमाफी का मुद्दा उठाया तो नेता प्रतिपक्ष ने कर्जमाफी के आदेश को ही लंगड़ा आदेश बता दिया. सरकार की तरफ़ से खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मोर्चा संभालते हुए विपक्ष के हमलों का जबाव दिया तो कटारिया की शब्दावली पर ऐतराज जताते हुए कह दिया कि लंगड़ी सोच ही किसानों के लिए जारी आदेश को लंगड़ा आदेश बता सकती है.
विधानसभा में औपचारिक कामकाज शुक्रवार से शुरू हुआ. सदस्यों की शपथ, स्पीकर के चुनाव और राज्यपाल के अभिभाषण के बाद विधायी कामकाज हुए. शुक्रवार तो था लेकिन विधानसभा में 'शुक्र' जैसा कुछ नहीं था. शून्यकाल के दौरान सबसे पहले रालोपा विधायक हनुमान बेनीवाल ने किसानों की कर्ज माफी पर स्थगन प्रस्ताव के तहत अपनी बात रखी. बेनीवाल ने पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार को कोसा तो मौजूदा सरकार पर भी सवाल उठाए. केंद्र से मदद का सुझाव भी दिया. इसके बाद नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कर्जमाफी के मुद्दे पर अपनी बात रखी. इस दौरान
कटारिया ने सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए सदन के नेता से सवाल भी पूछे. कटारिया ने पूछा कि -
1. सरकार में आने से पहले 10 दिन में कर्ज माफी का वादा किया गया था तो फिर अब तक क्या किया?
2. पूछा कि सरकार की तरफ़ की जाने वाली कर्ज माफी के दायरे में कौन-कौन से किसान आएंगे?
3. जिनका 50 हज़ार कर्ज माफ कर चुके क्या उनका कर्ज दोबारा माफ़ होगा?
4. कर्ज माफी के लिए पैसे की व्यवस्था कहां से करोगे?
5. जिनका कर्ज माफ करेंगे उनको फिर से फसली ऋण देंगे या नहीं?
6. मन्त्रियों और अधिकारियों की कमेटी ने अब तक क्या किया?
7. कटारिया ने यह भी पूछा कि सरकार ने किसानों की कर्ज माफी के लिए जो आदेश जारी किया उस आदेश के मायने क्या हैं?
8. नेता प्रतिपक्ष ने पूछा कि सरकार सहकारी कर्जे के अलावा भूमि विकास बैंकों और दूसरे कर्ज की स्थिति पर क्या स्टैण्ड लेगी?
अपने तल्ख सवालों से सरकार को घेरते हुए कटारिया ने सरकार के आदेश को ही लंगड़ा आदेश बता दिया. उन्होंने कहा कि सरकार ने अपने आदेश में कुछ भी साफ़ नहीं किया है और यह सिर्फ किसानों के साथ धोखा है. कटारिया के बाद राजेन्द्र राठौड़ ने भी सरकार को इस मुद्दे पर घेरने की कोशिश की.
कटारिया के आरोपों के दौरान उनका निशाना सीधे तौर पर सरकार और सदन के नेता की तरफ़ था, लिहाजा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी किसी तरह ढिलाई के मूड में नहीं दिखे. उन्होंने कर्ज माफी में अब तक सरकार की तरफ़ से किए काम पर अपनी बात रखी. साथ ही पिछली सरकार द्वारा 8 हज़ार करोड़ के भार के मुकाबले केवल 2 हज़ार करोड़ की व्यवस्था करने को लेकर पूर्ववर्ती सरकार पर निशाना साधा. गहलोत ने अपने वक्तव्य में खुद की तरफ़ से प्रधानमन्त्री को लिखी चिठ्ठी का भी ज़िक्र किया.
अपनी बात कहने के साथ ही गहलोत ने कटारिया की भाषा शैली पर भी सवाल उठाए. उन्होंने सदन में सरकारी आदेश को लंगड़ा आदेश बताने पर ऐतराज जताते हुए इस शब्द को वापस लेने की मांग की. गहलोत यहीं नहीं रूके, उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि किसानों के लिए जारी सरकारी आदेश पर इस तरह की टिप्पणी कोई 'लंगड़ी सोच' ही कर सकती है.