Jhunjhunu: 104 साल के स्वतंत्रता सैनानी सेडूराम के दिल में जिंदा हैं सुभाषचंद्र बोस
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Jhunjhunu: 104 साल के स्वतंत्रता सैनानी सेडूराम के दिल में जिंदा हैं सुभाषचंद्र बोस

सेडूराम के परिवार के लोग उन दिनों के किस्से याद करते हुए बताते है कि उन्होंने जेल में काफी समय बिताया. उनका पांच साल तक तो यह तक पता नहीं चला था कि वो जिंदा है या फिर शहीद हो गए. उनकी कोई सूचना नहीं थी तब सभी ने मान भी लिया था कि वे देश के लिए शहीद हो गए लेकिन जब 5 साल बाद अचानक घर लौटे तो आजादी की खुशियां लेकर आए.

सुभाषचंद्र बोस जयंती.

Jhunjhunu: हजारों लाखों लोगों ने कुर्बानी दी तब जाकर आजादी हासिल हुई. आजादी के परवानों ने प्राणों की परवाह किए बिना आजादी की जंग लड़ी. उसी के कारण आज हम हिंदुस्तान की खुली आबो हवा में स्वतंत्रता की हवा ले रहे है. आज आजादी की लड़ाई के महापुरुषों में से एक सुभाष चंद्र बोस की जयंती है. इस लड़ाई में बोस की आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे झुंझुनूं के बुडाना गांव के 104 साल के सेडूराम कृष्णियां से आपकी मुलाकात कराते है. वृद्ध हो जाने से सेडूराम की याददाश्यत पहले जैसी नहीं है लेकिन आज भी उनके जेहन में आजादी के वो संघर्ष के दिन याद है, जिन्हें बताते-बताते वह भावुक हो जाते हैं. 

इन्होंने अपने घर-परिवार को छोड़कर आजादी की जंग लड़ी और देश को आजाद करवाने में अपना योगदान देकर ही वापिस लौटे. पांच साल तक वापस नहीं आने पर परिजनों ने मान लिया था कि वे देश के लिए शहीद हो गए लेकिन जब वह आए तो देश की आजादी की खुशियां लेकर लौटे. आज सेडूराम 104 साल ऊपर के हो चुके हैं, जब वे 21 साल के थे तब आजादी के आंदोलन में कूद थे. सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के सिपाही के तौर पर वे विभिन्न देशों में गए और जेल भी रहे लेकिन आजादी दिलाकर ही दम लिया. आज  सेडूराम ने पुराने किस्से याद करते हुए बताया कि 1940 में वे आजादी की लड़ाई में कूद गए और उनके जेल में बंद के दौरान सुभाषचंद्र बोस से मुलाकात हुई. उन्होंने उन्हें अपनी फौज में शामिल किया और फिर नेताजी के नेतृत्व में लड़ाई लड़ी. उन्होंने बताया कि तीन-तीन दिन तक उन्हें खाना नहीं मिलता था और बिना खाने के दिन गुजारना पड़ता है. 

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सेडूराम के परिवार के लोग उन दिनों के किस्से याद करते हुए बताते है कि उन्होंने जेल में काफी समय बिताया. उनका पांच साल तक तो यह तक पता नहीं चला था कि वो जिंदा है या फिर शहीद हो गए. उनकी कोई सूचना नहीं थी तब सभी ने मान भी लिया था कि वे देश के लिए शहीद हो गए लेकिन जब 5 साल बाद अचानक घर लौटे तो आजादी की खुशियां लेकर आए. उस वक्त रेल में बैठकर सेडूराम रतनशहर के स्टेशन आए तो ना केवल परिजन, बल्कि ग्रामीण पहुंचे और उनका जोरदार स्वागत किया. गांव आने पर भी गांव के लोगों ने सत्कार किया और आज परिजन उनकी पूरा ख्याल रखते हैं. 

वहीं, रिश्ते में लगने वाले पौत्र-पौत्री भी उनसे आजादी के कहानी किस्से सुनते हैं. शुभम और पौत्री स्नेहा ने भी बताया कि कि दादाजी के जीवन से हमने प्रेरणा ली है और गांव के लोग भी प्रेरित होते हैं. दादाजी ने आजादी की लड़ाई लड़ी तो देश सेवा का जज्बा हमारे अंदर भी है. उनका भाई फौज में है और वो भी फौज में जाकर देश की सुरक्षा और सेवा के लिए अपना जीवन अर्पित करना चाहता हैं. इसके अलावा दादाजी नशे के सख्त खिलाफ है. इसी कारण हमारे परिवार में भी कोई नशा नहीं करता. 

साथ हीं, उनकी पौत्री स्नेहा ने कहा कि विडंबना है कि आजादी के इन दीवानों के नाम से गांव में कुछ नहीं है ताकि उनकी याद चिरस्थायी बन सके और उनके नाम और जीवन से लोग प्रेरणा ले सके. सरकार शहीदों और स्वतंत्रता सैनानियों के नाम से स्कूल और कॉलेजों का नामकरण करती रही है ताकि उनकी याद चिरस्थाई रहे और आने वाली पीढ़ी इन स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन से प्रेरणा ले. यही ख्वाहिश परिजनों की है कि स्वतंत्रता सेनानी सेडुराम के जीते जी नामकरण हो ताकि उनका यांदे चिरस्थाई और प्रेरणादायक रह सके. 

Reporter- Sandeep Kedia 

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