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Success Story: गली-गली गुब्बारे बेचने वाला बना इस तरह बना करोड़ों का मालिक

K. M. Mammen Mappillai Sucess Story: टायर हो तो सिर्फ MRF का. देश में बड़ी संख्या में लोग टायर के मामले में MRF को ही बेस्ट मानते है. MRF शेयर प्राइस को लेकर भी काफी सुर्खियों में रहता है. 

Success Story: गली-गली गुब्बारे बेचने वाला बना इस तरह बना करोड़ों का मालिक

MRF Tyre Sucess Story: टायर हो तो सिर्फ MRF का. देश में बड़ी संख्या में लोग टायर के मामले में MRF को ही बेस्ट मानते है. MRF शेयर प्राइस को लेकर भी काफी सुर्खियों में रहता है. आपको जान कर हैरानी होगी की MRF शेयर 1 लाख रुपये को भी पार कर गया है. लेकिन क्या आपको पता है इस कंपनी के अस्तित्व में आने की  K. M. Mammen Mappillai की कहानी बड़ी दिलचस्प है. इस को खड़ा करने वाला मालिक एक समय पहले गुब्बारे बेचा करता था.

गुब्बारे बेचे थे सड़कों पर

1946 में केरल के एक ईसाई परिवार में जनमें K. M. Mammen Mappillai चेन्नई की सड़कों पर गुब्बारे बेचा करते थे. दरअसल मैम्मेन के 10 भाई-बहन थे, और वे परिवार का पालन पौषण करने के गुब्बारे लेकर गली-गली में बेचा करते थे. लेकिन उस टाइम किसी को अंदाजा नहीं था की कभी गुब्बारे बेचने वाला एक दिन 46,341 करोड़ के मार्केट कैप वाली कंपनी बना खड़ा कर देगा. साल 1952 में केएम मैम्मेन मप्पिलाई की जिंदगी का टर्निंग पॉइंट था, जब देखा कि एक विदेशी कंपनी टायर रिट्रेडिंग प्लांट को ट्रेड रबर की सप्लाई कर रही है. तबही उनके दिमाग बात खटकी और सोचा की हमारे देश में ही ट्रेड रबर बनाने के लिए फ्रैक्ट्री क्यों नहीं लगाई जा सकती है. 

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मद्रास में रबर फैक्ट्री की शुरुआत

मैम्मेन को यह एक यही मौका अच्छा लगा, जिसके बाद उन्होंने अपनी सारी बचत के साथ ट्रेड रबर बनाने के बिजनस में उतरने का फैसला कर लिया. फिर जाकर मद्रास रबर फैक्ट्री यानी एमआरएफ का जन्म हुआ. ट्रेड रबर बनाने वाली भारत की पहली कंपनी बन गई थी. ऐसे में मैम्मेन का कंपटीशन विदेशी कंपनियों से था. देखते ही देखते कुछ समय बाद ये बिजनस पॉपुलर हो गया. इस तरीके से 4 साल के अंदर में ही कंपनी ने अपनी उच्च क्वालिटी के चलते 50 फीसदी बाजार हिस्सेदारी हासिल कर ली. हालत ऐसे हो गए की कई विदेशी मैन्यूफैक्चरर देश छोड़कर चले गए.  

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K. M. Mammen Mappillai के ऊपर तीन विदेशी कंपनियों का था दबदबा

एक समय पर इंडियन टायर मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री पर डनलप, फायरस्टोन और गुडइयर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दबदबा बन गया था. MRF ने भारत की सड़कों के अनुरूप टायर बनाना शुरू किया.  तिरुवोट्टियूर में बनाए गए रबड़ रिसर्च सेंटर ने कंपनी की मदद की, जिसके बाद से एमआरएफ रुकी नहीं और अच्छी मार्केटिंग से कंपनी टायर मार्केट में छाने लग गई(K. M. Mammen Mappillai net worth).  1964 में MRF मसलमैन का जन्म हुआ जो टायर कंपनी के मजबूती को दर्शाता है. कुछ सम. बाद मसलमैन का इस्तेमाल टीवी विज्ञापनों और होर्डिंग में किया जना लगा. 1967 में यूएसए को टायर एक्सपोर्ट करने वाली भारत की पहली कंपनी बन गई, और 973 में MRF व्यावसायिक रूप से नायलॉन ट्रेवल कार टायरों की मैन्यूफैक्चरिंग और मार्केटिंग करने वाली पहली भारतीय कंपनी बनी गई.

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