जैसलमेर में भारत-पाक सीमा पर बने तनोट माता के मंदिर की खास मान्यता है.
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Jaisalmer: 33 करोड़ देवी-देवता और इनमें इतनी ही अगाध श्रद्धा कि भक्त अपने भगवान पर इतना भरोसा करते हैं कि उनके लिये कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. जी हां ये है हिन्दुस्तान (India) की धार्मिक संस्कृति जो देश भर के अलग-अलग कोनों में अपने अलग-अलग रंग लिये हुए हैं और आज धर्म और श्रद्धा के इन्हीं रंगों से रूबरू होने के लिए हम चल रहे हैं.
जैसलमेर में भारत-पाक सीमा पर बने तनोट माता के मंदिर जहां पर भारत-पाकिस्तान युद्ध (Indo Pak war) से जुड़ी कई अजीबोगरीब यादें हैं जो देशभर के श्रद्धालुओं को नहीं बल्कि सेना को भी अपने आप से जोड़े हुए है. भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के लिए भी यह आस्था का केन्द्र बना हुआ है.
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देश की पश्चिमी सीमा के निगेहबान जैसलमेर जिले की पाकिस्तान से सटी सीमा बना यह तनोट माता (Tanot Mata) का मंदिर अपने आप में अद्भुत मंदिर है. सीमा पर बना यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था के केन्द्र के साथ-साथ भारत-पाक के 65 व 71 के युद्ध का मूक गवाह भी है. ये माता का चमत्कार ही है, जो आज इसे श्रद्धालुओं और सेना के दिलों में विशेष स्थान दिलाये हुए है. जी हां यह कोई दंत कथा नहीं है और न ही कोई मनगढंत कहानी है, 1965 के भारत पाक युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों और सीमा सुरक्षा बल के जवानों की तनोट माता है जो मां बनकर ही रक्षा करती हैं.
जैसलमेर से थार रेगिस्तान में 120 किमी. दूर सीमा के पास स्थित है तनोट माता का सिद्ध मंदिर. जैसलमेर में भारत-पाक सीमा पर बने तनोट माता के मंदिर से भारत-पाकिस्तान युद्ध की कई अजीबोगरीब यादें जुडी हुई हैं. यह मंदिर भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के फौजियों के लिये भी आस्था का केन्द्र रहा है. राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना को परास्त करने में तनोट माता की भूमिका बड़ी अहम मानी जाती है. यहां तक मान्यता है कि माता ने सैनिकों की मदद की और पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा.
इस घटना की याद में तनोट माता मंदिर के संग्रहालय में आज भी पाकिस्तान द्वारा दागे गये जीवित बम रखे हुए हैं. शत्रु ने तीन अलग-अलग दिशाओं से तनोट पर भारी आक्रमण किया. दुश्मन के तोपखाने जबरदस्त आग उगलते रहे. तनोटकी रक्षा के लिए मेजर जय सिंह की कमांड में ग्रेनेडियर की एक कंपनी और सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियां दुश्मन की पूरी ब्रिगेड का सामना कर रही थी. 1972 की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना कि तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर पर खरोच तक नहीं ला सके, यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 450 बम तो फटे तक नहीं.
तनोट पर आक्रमण से पहले शत्रु सेनाओं ने तीनों दिशाओं से भारतीय सेना को घेर लिया था और उनकी मंशा तनोट पर कब्जा करने की थी क्योंकि अगर पाक सेना तनोट पर कब्जा कर लेती तो वह इस क्षेत्र पर अपना दावा कर कर सकती थी. इसलिए दोनों ही सेनाओं के लिए तनोट महत्वपूर्ण स्थान बन गया था. बात है 17 से 19 नवंबर के बीच की जब दुश्मन की जबरदस्त आग उगलती तोपों ने तनोट को तीनों ओर से घेर लिया था और तनोट की रक्षा के लिये भारतीय सेना की कमान संभाले मेजर जयसिंह के पास सीमित संख्या में सैनिक और असला था.
शत्रु सेना ने इस क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए तनोट से जैसलमेर की ओर आने वाले मार्ग में स्थित घंटियाली के आस पास तक एंटी टैंक माईन्स लगा दिये थे ताकि भारतीय सेना की मदद के लिये जैसलमेर के सड़क मार्ग से कोई वाहन या टैंक इस ओर न आ सके. इतनी तैयारी के साथ आई पाक सेना का भारतीय सेना के पास मुकाबला करने के लिये अगर कुछ था तो वह था हौसला और तनोतमाता पर विश्वास, और यह उसे विश्वास का ही चमत्कार था कि दुश्मन ने तनोट माता मंदिर के आस पास के क्षेत्र में करीब तीन हजार गोले बरसाये लेकिन इनमें से अधिकांश अपना लक्ष्य चूक गये. इतना ही नहीं पाक सेना द्वारा मंदिर को निशाना बना कर करीब 450 गोले बरसाये गये लेकिर माता के चमत्कार से एक भी बम फटा नहीं और मंदिर को खंरोंच तक नहीं आई और फिर माता के इन चमत्कारों से बढ़े भारतीय सेना के हौंसलों ने पाक सैनिकों वापिस लौटने पर मजबूर कर दिया.
माता के बारे में कहा जाता है कि युद्ध के समय माता के प्रभाव ने पाकिस्तानी सेना को इस कदर उलझा दिया था कि रात के अंधेरे में पाक सेना अपने ही सैनिकों को भारतीय सैनिक समझ कर उन पर गोलाबारी करने लगे और परिणाम स्वरूप स्वयं पाक सेना द्वारा अपनी सेना का सफाया हो गया. इस घटना के गवाह के तौर पर आज भी मंदिर परिसर में 450 तोप के गोले रखे हुए हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये भी ये आकर्षण का केन्द्र है.
लगभग 1200 साल पुराने तनोट माता के मंदिर के महत्व को देखते हुए बीएसएफ ने यहां अपनी चौकी बनाई है. इतना ही नहीं बीएसएफ के जवानों द्वारा अब मंदिर की पूरी देखरेख की जाती है, मंदिर की सफाई से लेकर पूजा अर्चना और यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये सुविधाएं जुटाने तक का सारा काम अब बीएसएफ बखूबी निभा रही है. वर्ष भर यहां आने वाले श्रद्धालुओं की जिनती आस्था इस मंदिर के प्रति है उतनी ही आस्था देश के इन जवानों के प्रति भी है, जो यहां देश की सीमाओं के साथ मंदिर की व्यवस्थाओं को भी संभाले हुए है.
बीएसएफ ने यहां दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालुओं के लिये विशेष सुविधांए भी जुटा रखी है और मंदिर और श्रद्धालुओं की सेवा का जज्बा यहां जवानों में साफ तौर से देखने को मिलता है. सेना द्वारा यहां पर कई धर्मशालाएं, स्वास्थ्य कैम्प और दर्शनार्थियों के लिये वर्ष निशुल्क भोजन की व्यवस्था की जाती है. नवरात्रों के दौरान जब दर्शनार्थियों की भीड़ बढ़ जाती है तब सेना अपने संसाधन लगा कर यहां आने वाले लोगों को व्यवस्थाएं प्रदान करती है. देशभर की विभिन्न शक्ति पीठों के बीच अपनी खास पहचान स्थापित करने वाला यह मंदिर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने के साथ ही सदियों से सीमा का प्रहरी बना हुआ है. यहां पर आने वाला श्रद्धालु मन्नत मांगने के साथ ही एक रूमाल यहां बांधता है. मन्नत पूरी होने के बाद वे ये रूमाल खोलने और मां का धन्यवाद करने आते हैं.
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1965 के युद्ध के बाद सीमा सुरक्षा बल ने यहां अपनी चौकी स्थापित कर इस मंदिर की पूजा-अर्चना व व्यवस्था का कार्यभार संभाला और वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन और संचालन सीसुब की एक ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है. मंदिर में एक छोटा संग्रहालय भी है जहां पाकिस्तान सेना द्वारा मंदिर परिसर में गिराए गए वे बम रखे हैं जो नहीं फटे थे. पुराने मंदिर के स्थान पर अब एक भव्य मंदिर निर्माण करा रही है. आश्विन और चैत्र नवरात्र में यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. पुजारी भी सैनिक ही है. सुबह-शाम आरती होती है. मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर एक रक्षक तैनात रहता है, लेकिन प्रवेश करने से किसी को रोका नहीं जाता. फोटो खींचने पर भी कोई पाबंदी नहीं है, इस मंदिर की ख्याति को हिंदी फिल्म 'बॉर्डर' (Border) की पटकथा में भी शामिल किया गया था. दरअसल, यह फिल्म ही 1965 युद्ध में लोंगोवाल पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना के हमले पर बनी थी.
Report-Shankar Dan