जानिए मेवाड़ की नौ आराध्य देवियों के बारे में, हर शक्तिपीठ की है खास मान्यता
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जानिए मेवाड़ की नौ आराध्य देवियों के बारे में, हर शक्तिपीठ की है खास मान्यता

उदयपुर संभाग की अगर बात करें तो संभाग के चित्तौड़गढ़ जिले में मेवाड़ आंचल की नौ देवियां हैं.

मेवाड़ आंचल की नो देवियां

Chittorgarh: उदयपुर संभाग की अगर बात करें तो संभाग के चित्तौड़गढ़ जिले में मेवाड़ आंचल की नौ देवियां हैं. नवरात्र के चलते मेवाड़़ के इन शक्तिपीठों पर श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है. जिले में आराध्य देवी जोगणिया माता, झांतला माता, आवरी माता, कालिका माता, सकरा माता, लाल बाई फुल बाई माता, मरमी माता और जिले के पास भंवर माता, भादवा माता, सहित मेवाड़़ की आराध्य देवीयां बिराजमान हैं. जिनका प्रताप देश-विदेश में नहीं छिपा हुआ है.

दूर-दूर से श्रद्धालु इन शक्तिपीठों पर अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और मेवाड़ की यह देवीयां श्रद्धालुओं का अपना आर्शीवाद देकर मनोकामना पूर्ण करती है. हर देवी की अलग-अलग मान्यता है.

1. आवरी माता
चित्तौड़गढ से 40 किमी. से दूर भदेसर गांव से आगे यह आवरी माता का स्थान है, जहां जिले के अलावा राजसमंद, प्रतापगढ, भीलवाडा, उदयपुर, मालवा, गुजरात, मध्यप्रदेश, से श्रद्धालु आते हैं. मेवाड़ की आराध्य देवी आवरी माता में अधिकतर ऐसे लकवे के मरीज आते है., जिनका इलाज कई बड़े अस्पतालों में जाने पर भी नहीं होता है, वह मरीज आवरी माता की शरण लेते हैं. लकवा पीड़ित दूसरों के सहारे कंधे पर बैठकर या झोले में आकर आवरी माता की शरण लेते हैं. वह माता की आर्शीवाद से खुद चलकर जाता है. जिस किसी की  बोली पूरी तरह बंद हो जाती है, आवरी माता के आर्शीवाद से माता के जयकारे लगाते हुए जाता है. यहां की मान्यता है किसी के जीब में लकवा, हाथ या पैर में लकवा या पूरे शरीर में लकवा हो जाता है तो वह उसी प्रकार के अंग सोने व चांदी के बनाकर मां को अर्पण करता है. आवरी माता को असावरा माता के नाम से भी जाना जाता है. मां की माया अपरंमपार है.

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2. जोगणिया माता
चित्तौड़गढ़ से  70 किमी. दूर अरावली पर्वत माला की श्रृंखला में स्थित जोगणियां माता का मंदिर, जोगणियां माता को चोरों की देवी भी कहा जाता है. जोगणियां माता के दर्शनों के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु जिले के अलावा दूरदराज क्षेत्रों से वाहनों के अलावा सैकड़ों पदयात्री नंगे पैर माता के जयकारे लगाते हुए जत्थो के रूप मे पहुंच रहे हैं. वहीं कहीं श्रद्धालु पहाड़ी पर बनी पगडंडी से भी पहुंच रहै है. माता के दरबार में श्रद्धालु श्रीफल प्रसाद माता की चुनरी आदी भेंट सामग्री अर्पित कर शीश झुकाकर और हाथ जोड़कर अपनी मनाकामना पुर्ण करने की कामना कर रहे हैं.

मंदिर में श्रद्धालु महिलायें ढोल-नगाडों की थाप पर माता के गीत गाकर नृत्य का आनंद ले रही है. वहीं श्रद्धालुजन आखापाती भी ले रहे हैं, मंदिर में शहनाई वादक अपनी स्वर लहरियां बिखेर रहे है. कहा जाता है कि जोगणियां माता के दर्शनों से श्रद्धालु के मन की सभी मुरादे पूरी होती है. जिससें सामान्य दिनों के अलावा नवरात्रा मे श्रद्धालुओं का भारी तांता लगा रहता है. जोगणियां माता को चोरों की देवी भी कहा जाता है. जिसके चलते चोर भी मनोकामना पूर्ण होने पर यहां आकर माता को चढ़ावा अर्पित करते हैं.

इसी के चलते यहां चोर डाकुओं की हथकड़ियां और जंजीरे मंदिर के सामने एक पुराने पेड़ पर लटकी हुई है. मंदिर परिसर में कई दिन-दुखी और पीड़ित व्यक्ति माता के आर्शीवाद से ठीक होने की कामना को लेकर माता के दरबार  में डेरा डाले हुए हैं. जोगणिया माता में प्रतिदिन धार्मिक अनुष्ठान होने के साथ नवरात्रि मेले की रेलमपेल लगी हुई है. जहां प्रसाद माता की चुनर खिलोने आदि सामानों तथा खान-पान की कई दुकानें लगी हुई है. जहां श्रद्धालु माता के दर्शनों के साथ खरीददारी और खानपान का भी आनंद ले रहे हैं. मेले में ग्रामीणों की संख्या अधिक देखने को मिल रही है. जोगणिया माता के दर्शनों के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर कमेटी की ओर से पानी बिजली और छाया के साथ सुरक्षा व्यवस्था की पुख्ता व्यवस्था की गई है.

3. झांतला माता
मेवाड़ का तीसरा शक्तिपीठ मेवाड़ आराध्य देवी झांतला माता है. चित्तौड़ से 15 किमी. दूर कपासन मार्ग पर स्थित यह शक्तिपीठ झांतला माता किसी पहचान की मौहताज नहीं. झांतला माता के दरबार में शरीर के किसी भी परेशानी के बाद माता की शरण में आने के बाद स्वस्थ होकर ही जाना है. यहीं झांतला माता में श्रद्धालुओं का अटूट विश्वास है. नवरात्र में माता के दरबार में पांव रखने की जगह नहीं रहती है. दूर-दूर से इतने श्रद्धालु आते हैं. झांतला माता के इस दरबार में आप देख सकते है. मंदिर परिसर में शरीर से पीड़ित मरीज लेटे हुए हैं. यहां की मान्यता है कि लकवा ब्लड प्रेशर शुगर के मरीज माता के दरबार में आने के बाद स्वस्थ होकर माता के जयकारे के साथ जायेंगे. माता के दरबार में एक बड़ा वटवृक्ष है. श्रद्धालुओं का मानना है कि इस वृक्ष में से निकलने से मनोकामना पूर्ण होती है. कितना भी मोटा व्यक्ति होगा इस वृक्ष में से निकल ही जायेगा. माता के दरबार में मनोकामना पूर्ण होने के बाद श्रद्धालुओ द्वारा मुर्गे छोड़े जाना प्रमुख है. इसके अलावा श्रद्धालुओं की मन्नत पुरी होने पर वृक्ष पर महिलायें अपनी चुड़ी व लच्छा बांधकर अपनी मनोकामना पूरी करती है.

4. कालिका माता
ऐतिहासिक दूर्ग स्थित कालिका माता का मंदिर. शौर्य एवं प्रताप की देवी कालिका माता मंदिर में हजारों देशी-विदेशी पर्यटक दूर्ग भ्रमण के पश्चात मां काली के दर्शन भी करते है. कालिका माता का मंदिर हजारों वर्ष पुराना है, जहां मां कालिका की मूर्ति के साथ मां दूर्गा की मूर्ति भी है. यहां श्रद्धालु द्वारा घर मे क्लेश, जमीन जायदाद विवाद, कोर्ट कचहरी में चल रहे मुकदमें, सटोरियों द्वारा माता के दरबार से आका लेना प्रमुख है. कहा जाता है कि युद्ध की यह देवी श्रद्धालुओं द्वारा मांगी गई मनोकमना पूरी करती है. नवरात्रा में सप्तमी और अष्टमी पर कहीं दूर-दूर तक श्रद्धालुओं लाइन लगी रहती है. मनोकामा पूर्ण होने पर श्रद्धालुओं द्वारा शराब की धार लगाई जाती है. वहां बकरे की बलि भी दी जाती है, मंदिर परिसर में कैमरे के साथ पुलिस नजर रखी जाती है. मान्यता है कि मंदिर के पीछे श्रद्धालुओं द्वारा सिक्का चिपकाया जाता है, सिक्का चिपकने पर श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है.

5. सगरा माता
चित्तौड़गढ़ से 20 किमी. दूर आजोलिया का खेडा स्थित 1300 फीट की ऊंचाई पर बिराजित सगरा माता का मंदिर है जो काफी मुश्किल भरा रास्ता है. सकरा माता में किसानों की भारी श्रद्धा है, नवरात्रा के दिनों में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रहती है. सगरा माता की मान्यता है कि किसानों के खेतों में पानी नहीं होने पर खेत मालिक को पाती देने पर फसल के लिए पानी की कोई नहीं रहती है. वहीं श्रद्धालुओं द्वारा माता की गोद में नारियल चढ़ाया जाता है, तो किसी के संतान न होने पर 12 महिनों में उस श्रद्धालु को संतान की प्राप्ति होती है. दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना पुर्ण करने सकरा माता के दरबार में आते है और मनोकामना पूर्ण होने के बाद दाल-बाटी, चुरमा की प्रसादी रखते है.

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6. लाल बाई फुल बाई माता
चित्तौड़गढ़ से 15 किमी. दूर राजपुताना में अजमेर से चित्तौड़ को जाने वाली लाईन पर चन्देरिया स्टैशन के निकट पुठौली गांव में लाल बाई फुल बाई माता का मंदिर है. लाल बाई फुल बाई सहित पांच बहिनों और थी इन सातों बहनों में लाल बाई फुल बाई सबसे बड़ी बहन थी. जहां दोनों बहनों का पूजन एक साथ होता है. मालवा में इनका स्थान उज्जैन में 64 जोगनियों के मंदिर के पास है. जिस प्रकार श्री करनी जी की मान्यता हाडौती, मेवाड़ और मालवा में है अंतर केवली इतना ही है कि यहां मंदिर की सेवा पुठौली के राजपुत जागीरदार द्वार की जाती है. इस माता के मंदिर की मान्यता है. इसी गांव में लाल बुखार आने व शरीर पर बड़ी गांठे बंध जाती थी जिससें किसी का बचना मुमकिन नहीं था. यहां श्रद्धालु द्वारा यहां का लच्छा बांधने पर बिमारी दूर हो जाती है. नवरात्रा में दूर-दूर से श्रद्धालु यहां दर्शनों के लिए आते हैं और मनोकामना पूर्ण होने पर प्रसादी रखते हैं.

Report- Deepak Vyas

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