Kota News : उज्जवला योजना फेल, महंगे सिलेंडर के चलते महिलाएं लकड़ी पर बना रही खाना
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Kota News : उज्जवला योजना फेल, महंगे सिलेंडर के चलते महिलाएं लकड़ी पर बना रही खाना

Kota News : महंगे हो चुके सिलेंडर के चलते अब कोटा में उज्जवला योजना का असर नहीं दिख रहा, मजबूरी में महिलाएं लकड़ी जलाकर खाना बना रही हैं.

 

Kota News : उज्जवला योजना फेल, महंगे सिलेंडर के चलते महिलाएं लकड़ी पर बना रही खाना

Kota News : राजस्थान के कोटा के सुल्तानपुर में एक तरह जहां बढ़ती महंगाई ने आम लोगों का जीवन मुश्किल कर रखा है, वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण महिलाओं पर भी महंगाई की मार का असर साफ देखा जा सकता है. सरकार में गैस सिलेंडर तीन सौ रुपए का मिलता था. उस समय ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं अपना अधिकांश रसोई का काम गैस से ही करती थी. लेकिन जब से इसकी कीमत एक हजार रुपये से ज्यादा हुई है. तब से ग्रामीण महिलाएं खाना बनाने के प्राचीन तरीकों पर लौट आईं हैं.

देश को आजाद हुए सात दशक से अधिक का समय हो गया है, आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में आशा के अनुरूप प्रगति देखने को नहीं मिलती है. आज भी ग्रामीण महिलाएं मेहनत और मजदूरी करती हैं और एक-एक पाई जोड़ कर घर चला रहीं हैं. घरेलू गैंस के दाम बढ़ने से उनके लिए बहुत मुश्किल हो गया है. बढ़ती महंगाई ने उनका सारा बजट बिगाड़ दिया है.

वहीं सरकार की उज्जवला योजना से भी गरीब का नाता टूटने लगा है. गैस का सिलेण्डर करीब एक हजार 74 रुपए के आसपास पहुंचने से उज्जवला योजना के लाभार्थी चूल्हे का इस्तेमाल करने लगे हैं. इस योजना से लोगों के मुंह मोड़ने से सरकार को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है. दीगोद तहसील क्षेत्र में उज्जवला योजना के करीब 8 हजार 435 गैस कनेक्शन जारी किए गए थे. जिनमें से गत अप्रेल माह से ऐसे साढे 3 हजार लोग हैं जिन्होंने गैस सिलेण्डर महंगा होने से रिफिलकराना बंद कर दिया है.

गैस एजेन्सी से मिली जानकारी के अनुसार एचपी ने उज्जवला योजना में 8 हजार 435 लोगों को चूल्हा, गैस सिलेण्डर, नली, रेग्युलेटर उपलब्ध कराया था, लेकिन एक अप्रेल 2022 से अभी तक डेढ़ हजार से अभी अधिक लोगों ने सिलेण्डर रिफिल नहीं कराए हैं. अनेक ऐसे लोग हैं जो एक साल में दो व चार सिलेण्डर ही गैस के भरवाते हैं. गैस सिलेण्डर पर दो सौ रुपए की सब्सिडी भी दी जाती है, लेकिन इसके बाद भी लोग गैस सिलेण्डर रिफिल नहीं करा रहे हैं.

फिर मिट्टी के चूल्हों ने पकड़ी आग 
जानकारी के अनुसार गरीबों के घरों से एक बार फिर चूल्हे का धुआं उठने लगा है. बढ़ती महंगाई से परेशान महिलाओं ने उज्ज्वला गैस चूल्हों को एक तरफ करके मिट्टी के चूल्हों पर ही भोजन बनाना शुरू कर दिया है. लगातार महंगे होते सिलेंडर के कारण अधिकतर उपभोक्ता दोबारा गैस रिफिल नहीं करवा रहे हैं. वे लकड़ी, कंडे के इस्तेमाल की ओर बढ़ गए हैं. सरकार ने महिलाओं को चूल्हे के धुएं से मुक्ति दिलाने गैस कनेक्शन दिए थे, लेकिन बढ़ती महंगाई और उज्जवाल योजना के तहत दिए जाने वाले मुफ्त के सिलेंडर नहीं देने के कारण फिर से उसी धुएं में धकेल दिया है.

नरेगा से महिलाओं को संबल 
सेवानिवृत्त शिक्षक पन्नालाल मेहरा ने बताया कि मनरेगा के कारण जरूर ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक संबल मिला है. मनरेगा से नियमित रूप से होने वाली आय से महिलाओं में एक आत्मविश्वास देखने को मिल रहा है, यदि मनरेगा जैसी रोजगारपरक और क्रांतिकारी योजना नहीं होती तो महंगाई के फलस्वरूप ग्रामीण महिलाओं की स्थिति बद से बदतर हो जाती. प्रत्येक चीजों के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं, इसका सर्वाधिक असर ग्रामीण गरीब परिवारों की महिलाओं और बच्चों पर देखने को मिल रहा है.

सब्सिडी बंद तो भारी पड़ा सिलेंडर भरवाना
गैस एजेंसी संचालकों का कहना है कि पिछले कुछ माह से गैस सिलेंडरों की बिक्री में बड़ी गिरावट आई है. जितने लोगों ने उज्ज्वला के तहत कनेक्शन लिए थे उनमें से कुछ ही लोग साल में एक या दो बार ही सिलेंडर ले रहे हैं. पहले तक सभी गैस सिलेंण्डर पर सब्सिडी मिल जाती थी, तब तक सिलेंडर भरवा रहे थे, लेकिन अब वह भी बंद हो गई. वहीं सिलेंडर 1 हजार 74 रुपए के ऊपर पहुंच गया है. इसलिए गरीब तबका सिलेंडर से दूरी बना रहा है. 

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