Kargil Vijay Diwas: बॉर्डर पर हालात गंभीर थे तो चिंतित मां ने पूछा बेटा वापस कब लोटोगे तो प्रहलाद सिंह ने जवाब दिया था कि मां कुछ पता नहीं मैं जिंदा लोटूंगा या तिरंगे में लिपटकर.
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Ladun: लाडनूं तहसील के गांव दताऊ निवासी प्रहलाद सिंह अपनी छुट्टियां काटकर ड्यूटी पर जा रहे थे. बॉर्डर पर हालात गंभीर थे तो चिंतित मां ने पूछा बेटा वापस कब लोटोगे तो प्रहलाद सिंह ने जवाब दिया था कि मां कुछ पता नहीं मैं जिंदा लोटूंगा या तिरंगे में लिपटकर. ऐसे ही थे ऑपरेशन विजय में दुश्मनों को नाकों चने चबाने के बाद ऑपरेशन रक्षक में शहीद हुए नायक प्रह्लाद सिंह.
नागौर जिले के लाडनूं उपखंड क्षेत्र के एक छोटे से गांव दताऊ निवासी सूबेदार बेरिसाल सिंह जो 1965, 1971, 1975 की लड़ाई में भाग लेकर सेवानिवृत्त होकर लौटे ही थे. उनका लाडला बेटा भी देश सेवा में जाने की जिद्द करने लगा.
पिता बेरिसाल सिंह ने फौज में देश सेवा की कठोर तपस्या को देखकर बेटे को मना करने लगे लेकिन बेटे प्रह्लाद सिंह की बस एक ही धुन थी कि मुझे देश सेवा में जाना है. आखिर पिता खुद बेटे को अपनी ही यूनिट में भर्ती करवाकर लौटे और गांव में सेवानिवृत्त होकर अपना गृहस्थ जीवन जीने लगें.
बेटे प्रह्लाद सिंह की नौकरी भी अब सेवानिवृत्त होने के करीब थी और सेवा निवर्ती से महज तीन महीने ही बचे थे. दूसरी तरफ दुश्मन देश पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था और करगिल में अपनी घुसपैठ बढ़ाकर पहाड़ियों पर बंकर बनाकर भारतीय सीमा में कब्जे की कोशिश की.
इसी दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तान परस्त आतंकवाद और घुसपैठ को खदेड़ने के लिए अपनी कमान संभाल ली और भारतीय सेना को अलर्ट कर दिया और अपनी सेना करगिल की उन चोटियों पर तैनात करना शुरू कर दी. सेना की अलग-अलग बटालियन को अलग-अलग टास्क दिया गया और इसी दौरान सेना की तरफ से ऑपरेशन विजय चलाया गया. ऑपरेशन विजय में प्रहलाद सिंह तैनात थे और मातृभूमि के लिए अपनी लड़ाई लड़ रहे थे.
ऑपरेशन विजय के कुछ दिन बाद प्रहलाद सिंह कुछ दिन अपने परिवार के साथ छुट्टियां मनाने गांव आए और बीच में ही फौज से बुलावा आ गया तो प्रहलाद सिंह ने अपनी मां और पत्नी को कहा कि मां मुझे बीच में ही जाना होगा वापस तीन महीने बाद सेवानिवृत्त होकर आऊंगा या फिर में मातृभूमि की सेवा करते हुए शहादत मिली तो तिरंगे में लिपटा आऊंगा. परिवार में यह बात सुनकर सबकी आंखे भर आई लेकिन देश सेवा और मातृभूमि पर मरमिटने का जज्बा उन्हें करगिल खींच लाया.
ऑपरेशन विजय में अदम्य साहस दिखाने और दुश्मन के दांत खट्टे करने के बाद उनका तबादला करगिल से अखनूर सेक्टर में हो गया. सेना ने ऑपरेशन विजय के बाद ऑपरेशन रक्षक शुरू किया गया, तो भी नायक प्रहलाद सिंह का चयन हुआ और ऑपरेशन रक्षक के दौरान एक आतंकी मुठभेड़ में देश सेवा करते हुए प्रहलाद सिंह 17 दिसंबर 1999 को वीरगति को प्राप्त हो गए.
वहीं, उनकी मां और उनकी पत्नी उनके घर आने की प्रतीक्षा करती रही, जब प्रहलाद सिंह की शहादत हुई तो उनका बड़ा बेटा डूंगरसिंह महज 12 साल का था और छोटा बेटा मात्र 6 साल का ही था.
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आज शहीद की वीरांगना ओमकंवर, पुत्र डूंगरसिंह सहित पूरे गांव को शहादत पर फक्र है. डूंगरसिंह कहते है कि मेरे पिता अपना नाम अमर कर गए हम उनके नाम को मिटने नही देंगे. राज्य सरकार द्वारा शहीद के पुत्र डूंगरसिंह को नौकरी देने के साथ-साथ कोलायत में जमीन भी दी है.
वीरांगना ओमकांवर को सेना द्वारा विशेष पेंशन दी जा रही है. वहीं, प्रहलाद सिंह को सेना की तरफ से विशिष्ट सेवा मेडल और सेना मेडल से नवाजा गया, तो उन्हें सेवा कार्य के दौरान ग्लेशियर में पांच साल की सेवा देने के लिए भी मेडल दिया गया था.
Reporter- Hanuman Tanwar
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