राजस्थान में टिकट कटने के विरोध के पीछे क्या हो रहा कोई बड़ा 'खेला', जानें इस रिपोर्ट में
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राजस्थान में टिकट कटने के विरोध के पीछे क्या हो रहा कोई बड़ा 'खेला', जानें इस रिपोर्ट में

लोकतंत्र में सोशल इन्जीनियरिंग की बड़ी अहमियत मानी जाती है. पिछले कुछ चुनावों में राजनीतिक पार्टियों ने लगातार सोशल इन्जीनियरिंग के अपने समीकरण बिठाने की कोशिश करते हुए टिकिट तय किये हैं.

राजस्थान में टिकट कटने के विरोध के पीछे क्या हो रहा कोई बड़ा 'खेला', जानें इस रिपोर्ट में

Rajasthan Politics: लोकतंत्र में सोशल इन्जीनियरिंग की बड़ी अहमियत मानी जाती है. पिछले कुछ चुनावों में राजनीतिक पार्टियों ने लगातार सोशल इन्जीनियरिंग के अपने समीकरण बिठाने की कोशिश करते हुए टिकिट तय किये हैं. और कई बार इसका असर भी दिखा है. लेकिन सोशल इन्जीनियरिंग की यह इक्वेशन विरोध के मामले में कुछ अलग रुख दिखा रही है. . दरअसल बीजेपी की लिस्ट आने के बाद विरोध की सोशल इंजीनियरिंग की चर्चा हो रही है. कई जगह पार्टी कार्यकर्ता खुद इस पर चुटकी लेते दिखते हैं. तो कई इसे गम्भीर चिन्ता का विषय बताते हैं. इस बीच सवाल यह आ रहा है कि क्या यह जातियों द्वारा विरोध है, क्या संगठन के लोग विरोध कर रहे हैं. या फिर कुछ पूर्व विधायक और उनके समर्थकों तक यह विरोध प्रदर्शन सीमित है?

विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी की पहली लिस्ट के बाद से ही कुछ जगहों पर विरोध दिख रहा है. जयपुर में पार्टी के प्रदेश कार्यालय पर विरोध जताने कार्यकर्ता पहुंच गए तो विद्याधर नगर में तो खुद पूर्व मन्त्री और विधायक ही कभी आगे और कभी पीछे गियर बदलते दिखे. इस बीच बीजेपी के ही कार्यकर्ताओं में चर्चा अलग दिखी. पार्टी कार्यालय के पास कार्यकर्ताओं की चर्चा में अलग बात आई. . सवाल यह आया कि यह विरोध नेताओं द्वारा है, समाज द्वारा है या संगठन द्वारा है?

सवाल: विरोध किस बात का है?

एक कार्यकर्ता ने कहा कि यह विरोध आखिर किस बात का है? बात आई कि, क्या खुद का टिकट कटने का विरोध है? क्या सांसद को विधानसभा टिकट का विरोध? क्या बड़े नामों का है विरोध? क्या गैर वसुंधरा राजे गुट का है विरोध? क्या खुद का टिकट कटने का विरोध? क्या सांसद को विधानसभा टिकट का विरोध? क्या बड़े नामों का है विरोध? क्या गैर वसुंधरा राजे गुट का है विरोध? 

 

दरअसल विरोध हो रहा है और इस विरोध का एक रोचक पहलू यह भी है कि विरोध के मामले वहीं दिख रहे हैं. जहां किसी नेता का टिकिट काटकर उसी जाति से आने वाले नेता को ही टिकिट दिया गया. ऐसे में फिर सवाल विरोध पर आया. कहा गया कि क्या यह विरोध भी लोकतन्त्र का संकेत है. जिस तरह लोकतन्त्र को जनता का, जनता के लिए जनता के द्वारा शासन कहा जाता है. क्या उसी तर्ज पर यह विरोध भी लोकतन्त्रात्मक है? कहा गया कि झोटवाड़ा और विद्याधर नगर में तो ' राजपूतों का, राजपूतों के लिए, राजपूतों द्वारा विरोध हुआ. . इतना होते ही बात किशनगढ़ और फतेहपुर की भी आई. जहां जाट नेताओं को टिकिट मिलने का विरोध पार्टी के ही जाट चेहरों द्वारा हो रहा है. तो देवली–उनियारा, नगर, तिजारा और सांचौर में हुए विरोध का भी ज़िक्र पार्टी कार्यकर्ताओं में हो रहा है. देवली और नगर में विजय बैंसला का विरोध राजेन्द्र गुर्जर के समर्थकों ने किया तो तिजारा में बाबा बालकनाथ का विरोध मामनसिंह यादव और उनके समर्थकों ने किया. उधर तिज़ारा में जवाहर सिंह बेढ़म का विरोध पूर्व विधायक अनिता गुर्जर ने किया.

राजनीति में समर्थन और विरोध कई बार साथ चलते हैं. हो सकता है, कुछ समय बाद विरोध करने वाले लोग ही अपनी पार्टी और समाज के अधिकृत प्रत्याशी का साथ देते दिखें. . . ऐसा इसलिए भी, क्योंकि जिन नेताओं में दम होगा वे विरोध करने की बजाय चुनाव मैदान में उतरने पर फोकस करेंगे.

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