PM Modi America visit : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त राज्य अमेरिका की ऐतिहासिक यात्रा जैसे –जैसे आगे बढ़ रही है, यह देखना दिलचस्प होता जा रहा है कि दुनिया के दो सबसे बड़े और पुराने लोकतांत्रिक देश भारत और अमेरिका अपने संबंधों के नए दौर में कैसे आगे बढ़ते हैं.
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केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की कलम से: 1952 के दौर में अमेरिका में एक मुहावरा प्रचलित हुआ, "It takes two to tango". हालांकि, इसे लोकप्रियता हासिल करने में तीन दशक का समय लगा. 1982 में अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के रूस और अमेरिका के बीच राजनयिक मामलों के संदर्भ में इस मुहावरे का उल्लेख करने के बाद इसकी लोकप्रियता बढ़ गई. इसके बाद से ही इस मुहावरे का इस्तेमाल किसी भी रिश्ते, चाहे वह राजनयिक हो या गैर-राजनयिक, में पारस्परिक रूप से लाभकारी कदम उठाने की जरूरत पर जोर देने के लिए किया जाता रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त राज्य अमेरिका की ऐतिहासिक यात्रा जैसे –जैसे आगे बढ़ रही है, यह देखना दिलचस्प होता जा रहा है कि दुनिया के दो सबसे बड़े और पुराने लोकतांत्रिक देश भारत और अमेरिका अपने संबंधों के नए दौर में कैसे आगे बढ़ते हैं. दोनों देशों के बीच का रिश्ता टैंगो नृत्य की भांति रहा है. दोनों साझेदारों के लिए इस रिश्ते को आगे बढ़ाना बहुत आसान नहीं रहा है, क्योंकि दोनों की क्षमताएं, प्राथमिकताएं और रुचियां अलग-अलग हैं. फिर भी पिछले 60 वर्षों में दोनों ने इस नृत्य की तरह कुछ मुद्दों पर गहरी सहमति रखी, तो कुछ पर विरोध के बावजूद वैश्विक पटल पर मजबूत साझेदार के रूप में उभरे हैं.
प्रधानमंत्री की यह यात्रा अमेरिका जाने वाले भारत के अन्य प्रधानमंत्रियों से बिल्कुल अलग है. वह कांग्रेस के संयुक्त सत्र को दो बार संबोधित करने वाले दुनिया के सिर्फ चौथे नेता हैं. प्रधानमंत्री को जो सम्मान मिला है, उनसे पहले अमेरिका के दो सबसे अच्छे दोस्तों, नेल्सन मंडेला और विंस्टन चर्चिल को ही इस प्रकार का सम्मान दिया गया था. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ भारत के लोगों के लिए भी बहुत बड़ा सम्मान है.
भारत के रहने वाले ने दुनिया को भारत की बात ही सुनाई!
परिणाम देखिए, अमेरिका से इतने अच्छे और बराबरी के संबंध इतिहास में कभी नहीं थे!#ModiInAmerica pic.twitter.com/m5ezfc3PUv
— Gajendra Singh Shekhawat (@gssjodhpur) June 24, 2023
अमेरिका का भारत के प्रति प्यार और उसकी पसंद जगजाहिर है. 70 प्रतिशत से अधिक अमेरिकी जनता भारतीयों के पक्ष में खड़ी दिखती है, जबकि चीन को महज 15 प्रतिशत लोगों का ही समर्थन प्राप्त है. दुनिया भर में मौजूद भारतीय प्रवासियों की मेहनत और सफलता के बल-बूते देश ने यह सम्मान हासिल किया है. अमेरिका की तीन दिग्गज कंपनियां आईबीएम, अल्फाबेट और माइक्रोसॉफ्ट के बॉस भारतीय हैं. साथ ही शीर्ष पांच बिजनेस स्कूलों में से तीन के शीर्ष पद पर भारतीय हैं. भारत और अमेरिकी जनता के बीच गहरे संबंध के बावजूद, किसी भी अन्य रिश्तों की तरह ही दोनों देशों के कुछ मुद्दों पर मतभेद हैं. लेकिन दोनों साझेदारों की खास बात है कि वे अपने मतभेदों को सुलझाने के लिए बात करने, पूर्वाग्रहों को समाप्त करने और समय के साथ रिश्तों में नया अध्याय जोड़ने का प्रयास करने के लिए इच्छुक दिखते हैं.
भारत की विदेश नीति रणनीतिक स्वायत्तता और देश के हितों के आधार पर कई साझेदारों के साथ रणनीतिक जोड़ और बहुध्रुवीयता के पालन पर आधारित है. यह एक ऐसा कदम है जिस लेकर अमेरिका ही नहीं देश में भी विचारकों और नीति विश्लेषकों का एक मुखर लेकिन छोटा समूह अक्सर मजाक उड़ाता है. लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह नीति व्यावहारिक है. इस नीति की प्रशंसा अमेरिकी विदेश नीति के दिग्गज हेनरी किसिंजर तक ने की है. उनका कहना था कि "मैं इस बात का बहुत सम्मान करता हूं कि भारत अपनी विदेश नीति का संचालन कैसे करता है". इस दौरान उन्होंने डॉ. जयशंकर की जमकर प्रशंसा की. आलोचकों के समूह की सबसे कठोर आलोचनाओं में सबसे अधिक रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के मुद्दे पर भारत के रुख को लेकर रही. इस मसले पर कई पश्चिमी विचारक चाहते थे कि भारत स्पष्ट रूप से पश्चिम के साथ खड़ा हो, जबकि भारत की नीति शुरू से स्पष्ट रही और हम दुनिया को अलग-अलग नजरिए से नहीं देखते, खासकर 2014 के बाद से. यह ऐसा रुख है जिससे दुनिया को काफी फायदा हुआ है.
युद्ध को लेकर जब रूस पर प्रतिबंध लगाए गए, भारत ने पश्चिमी देशों की नाराजगी के बाद भी रिकॉर्ड स्तर पर कच्चे तेल की खरीदी जारी रखी. रूस प्रतिदिन करीब 8 मिलियन बैरल कच्चे तेल का निर्यात करता है. प्रतिबंधों के कारण इतने बड़े स्तर पर तेल का निर्यात रोके जाने से विश्व अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट पड़ती और बाजार में तेल की इस कमी से उसकी कीमतें 200 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाती. भारत ने प्रतिदिन 1.96 बिलियन बैरल रूसी तेल रियायती दर पर खरीदा, उसे रिफाइन किया और कई देशों को निर्यात किया. इसी दौरान भारत से यूरोपीय संघ को रिफाइन पेट्रोल निर्यात के मामले में 70 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई. भारत के हस्तक्षेप से ही पेट्रोल की कीमतों को 70 डॉलर प्रति बैरल पर नियंत्रित करने में मदद मिली. भारत के इस कदम से अत्यधिक मुद्रास्फीति से जूझ रहे पश्चिमी देशों को राहत मिल सकती है. अमेरिकी प्रशासन इन जटिलताओं को भली-भांति समझता है. यही कारण है कि इन दोनों देशों के संबंधों को बिगाड़ने की मंशा रखने वाले लोगों की इच्छा पर चोट करते हुए अमेरिका ने भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी को गहराई देने और मजबूत करने पर जोर दिया. उसने रक्षा और प्रौद्योगिकी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में भारत के साथ अपने रिश्तों को नया आयाम दिया.
भारत आज दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाला देश बन गया है और इसका पूरा श्रेय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर लिए गए फैसलों और उन्हें जमीन पर लागू करने की प्रतिबद्धता को जाता है. उनकी अमेरिका यात्रा की पूर्व संध्या पर सूचकांक नई ऊंचाइयों पर पहुंचा और रिकॉर्ड बना. 2028 तक भारत सकल घरेलू उत्पाद में जर्मनी और जापान से आगे निकल जाएगा. गोल्डमैन सैक्स के मुताबिक भारत 2051 में यूरो क्षेत्र और 2075 तक अमेरिका से आगे निकल जाएगा.
मोदी जी ने कहा था " मैं देश नहीं झुकने दूंगा"
तिरंगा लहरा रहा है! उनका प्रण बता रहा है।#ModiInUSA pic.twitter.com/MG5HDSOJnH
— Gajendra Singh Shekhawat (@gssjodhpur) June 23, 2023
अमेरिकी कंपनिया भारतीय बाजार, उसके आकार और बेहतर जीवन के लिए भारतीय मध्य वर्ग की बढ़ती आकांक्षाओं को भली-भांति समझती हैं. भारतीय नीति की विशिष्टता है कि यह विदेशी कंपनियों को भारत में रोजगार और समृद्धि पैदा करने के लिए हमारे देश के कारोबारियों के साथ समझौता करने के लिए प्रेरित करती है. मसलन, मेटा ने रिलायंस के साथ और स्टारबक्स ने टाटा के साथ सौदा किया. देश में अमेरिकी सहायक कंपनियों की बिक्री लगभग एक चौथाई ट्रिलियन डॉलर की है और विभिन्न उद्योगों में उनका मुनाफा तेजी से बढ़ा है.
भारत की 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर की पीएलआई योजना दुनिया की सबसे अनोखी योजना है और प्रमुख क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित कर रही है. देश में बुनियादी ढांचा परियोजनाएं आश्चर्यजनक गति के साथ बढ़ रही हैं. हमारा डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर विश्व में धूम मचा रहा है. हमारी सेवाओं का निर्यात तेजी से बढ़ रहा है. मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक घटकों से जुड़े निर्यात में 63 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. एप्पल के सीईओ टिम कुक ने भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में ठीक ही कहा कि "भारत की विकास कहानी में जीवंतता और विश्वास अविश्वसनीय है". उनसे बेहतर भला इसके बारे में कौन जान सकता है. एप्पल अपने सात प्रतिशत फोन भारत में असेंबल करता है और इसमें भारी बढ़ोतरी करने की योजना पर काम जारी है. साथ ही वे भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन को भी देखते हैं. आईएमएफ ने पहले ही कह दिया है कि भारत को मंदी छू भी नहीं पाएगी. हमारी बैंकिंग प्रणाली को पारदर्शी और सुदृद्ध बनाया गया है, ताकि प्रतिकूल आर्थिक माहौल में भी हमारी अर्थव्यस्था के विकास की रफ्तार धीमी न पड़े. भारत अपनी बेहतरीन नीतियों से निवेश के लिए दुनिया का सबसे सुरक्षित और बेहतरीन देश बन गया है.
भारत और अमेरिकी साझेदारी का एक महत्वपूर्ण स्तंभ रक्षा क्षेत्र में दोनों देशों के मजबूत और सहयोगात्मक संबंध हैं. 2014 के बाद से अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते कई गुणा बेहतर और मजबूत हुए हैं. उसने वास्तव में हमें दिल से अपनाया और बाइडेन व ट्रंप प्रशासन ने BECA, COMCASA, LEMOA और GSOMIA जैसे कई रणनीतिक समझौतों पर हस्ताक्षर कर इसका सबूत पेश किया. दोनों पक्षों ने यह विश्वास एक-दूसरे के रणनीतिक और राष्ट्रीय हितों के मुद्दे पर भी दिखाया है.
भारत क्वाड का हिस्सा है और दोनों देश समय-समय पर मिलकर कई संयुक्त अभ्यास करते हैं. "मेक इन इंडिया" के तहत सरकार ने अब विदेशी घरानों की अधिकतम हिस्सेदारी 74% तक बढ़ा दी है और भारतीय कंपनियों में विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सशस्त्र बलों ने घरेलू उत्पादों के लिए पूंजीगत बजट का 75% हिस्सा निर्धारित किया है. दोनों देश अत्याधुनिक तकनीक के मुद्दे पर, चाहे वह एआई हो या युद्ध सामग्री व निगरानी उपरकरण बनाना, अपने संबंधों को और मजबूत करना चाहते हैं. अमेरिका इस बात को बखूबी समझता है कि रक्षा खरीद में रूस की ओर भारत का झुकाव शीत युद्ध के दौरान उसकी अपनी मूर्खता के कारण है, इसलिए वह पूर्वाग्रह मुक्त शर्तों के साथ भारत के साथ फिर से जुड़ने को तैयार है. इसका श्रेय भारत को जाता है कि हमने विश्व के किसी भी अन्य देश के साथ संबंध स्थापित करते समय रूस जैसे पुराने मित्रों को नजरअंदाज नहीं किया.
भारत के साथ सब कुछ ठीक-ठाक चलने के बावजूद, एक चीज जो सबकुछ एकसाथ जोड़ती है, वह है प्रधानमंत्री की दुनिया भर में लोकप्रियता और उनका करिश्मा (77% अनुमोदन रेटिंग, दुनिया में सबसे अधिक).
अमेरिका ने पाकिस्तान के अनुभव से सीखकर मित्रता के बदले मित्रता की नीति को प्रथमिकता देना समझ लिया है. वह बखूबी जान गया है कि भारत उसका सच्चा मित्र है और आने वाले वर्षों में दोनों देशों के बीच का संबंध सबसे महत्वपूर्ण होगा.
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