मोदी कैबिनेट में दुष्यंत सिंह को जगह नहीं मिलना और वसुंधरा राजे की खामोशी, राजस्थान बीजेपी में बड़े बदलाव की दस्तक
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मोदी कैबिनेट में दुष्यंत सिंह को जगह नहीं मिलना और वसुंधरा राजे की खामोशी, राजस्थान बीजेपी में बड़े बदलाव की दस्तक

Rajasthan Politics : मोदी कैबिनेट के गठन से पहले हुई NDA की बैठक में पीएम मोदी ने 5वीं बार सांसद बने दुष्यंत सिंह की पीठ थपथपाकर उन्हे आशीर्वाद दिया था. ऐसे में दुष्यंत सिंह की कैबिनेट में एंट्री के कयास लगने लगे. इधर राजस्थान में लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के बाद वसुंधरा राजे की सक्रिय राजनीति में आने की चर्चाएं तेज है, लेकिन फिर 9 जून 2024 को मोदी कैबिनेट बनी, लेकिन दुष्यंत सिंह को जगह नहीं मिली. क्या ये राजस्थान बीजेपी में बड़े बदलाव की दस्तक है ? चलिए समझते हैं.

Vasundhara Raje

Rajasthan Politics : मोदी कैबिनेट के गठन से पहले हुई NDA की बैठक में पीएम मोदी ने 5वीं बार सांसद बने दुष्यंत सिंह की पीठ थपथपाकर उन्हे आशीर्वाद दिया था. ऐसे में दुष्यंत सिंह की कैबिनेट में एंट्री के कयास लगने लगे. इधर राजस्थान में लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के बाद वसुंधरा राजे की सक्रिय राजनीति में आने की चर्चाएं तेज है, लेकिन फिर 9 जून 2024 को मोदी कैबिनेट बनी, लेकिन दुष्यंत सिंह को जगह नहीं मिली. क्या ये राजस्थान बीजेपी में बड़े बदलाव की दस्तक है ? चलिए समझते हैं.

साल 2024 के लोकसभा चुनाव राजस्थान में बीजेपी को बहुत सिखा गये हैं. क्योंकि 25 की 25 सीटों पर क्लीन स्वीप करने वाली पार्टी, महज 14 सीटों पर सिमट कर रह गयी और कांग्रेस ने 10 सीटों के साथ धुंआधार वापसी की. प्रदेश में बीजेपी के कमजोर प्रदर्शन के पीछे कई कारण गिनाएं गए हैं. जिसमें से एक है कई वरिष्ठ पार्टी नेताओं की अनदेखी और चुनाव प्रचार में सक्रियता ना होना.

जिसमें पहला नाम आता है, वसुंधरा राजे का. प्रदेश बीजेपी ने चुनावों में वसुंधरा राजे को चुनाव प्रचार प्रयोग नहीं किया. राजपूतों के बीच अच्छी पैठ रखने वाली राजे महज बारां-झालावाड़ में बेटे दुष्यंत सिंह के प्रचार में ही लगी रही. परिणाम ये रहा कि जहां दुष्यंत सिंह 5वीं बार सांसद बन गये.

राजनीतिक जानकारों को मानना है कि अगर वसुंधरा राजे को प्रचार अभियान का हिस्सा बनाया जाता, तो शायद पार्टी को इतनी बड़ी हार का सामना नहीं करना पड़ता. वैसे राजस्थान बीजेपी को सिर्फ वसुंधरा राजे ही नहीं बल्कि पार्टी में भूमिका की तलाश में जुटे सतीश पूनिया और राजेंद्र सिंह राठौड़ जैसे वरिष्ठ नेताओं के बारे में भी सोचने की जरूरत है. जिनकी अनदेखी पार्टी को आगे आने वाले वक्त में और भारी पड़ सकती है.

हालांकि इधर सतीश पूनिया की असली परीक्षा अब आने वाली है, क्योंकि हरियाणा में राज्यसभा सीट को लेकर चुनाव है और गणित भी बीजेपी के पक्ष में नहीं है. यहां भी अगर कांग्रेस ने बाजी मार ली तो ये विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी के लिए बड़ा झटका होगा.कुलमिलाकर राजस्थान बीजेपी में आने वाले वक्त में बड़े बदलाव होने के पूरे आसार है. लोकसभा चुनाव में मौजूदा प्रदर्शन को देखते हुए ऐसा होना भी चाहिए.

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