Special Story: यहां जानिए कौन थे अमरा भगत, जन्म के 9 दिन तक नहीं पिया था मां का दूध
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Special Story: यहां जानिए कौन थे अमरा भगत, जन्म के 9 दिन तक नहीं पिया था मां का दूध

अमरा भगत ने जन्म के 9 दिन तक मां का दूध नहीं पिया था. उनसे जुड़े चमत्कार के किससे पूरे चित्तौड़ में प्रसिद्ध हैं.
            

Special Story: यहां जानिए कौन थे अमरा भगत, जन्म के 9 दिन तक नहीं पिया था मां का दूध

Chittorgarh: राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के बड़ी सादड़ी विधानसभा इलाके में नरबदिया तहसील है. नरबदिया तहसील के भदेसर में संत शिरोमणि अमरा भगत (Amra Bhagat) का समाधि स्थल है.

संत अमरा भगत से जुड़े चमत्कार

जैसे ही संत अमरा भगत का जन्म हुआ तो जन्म के 9 दिन तक उन्होंने मां का दूध नहीं पिया. 9 दिन के बाद सूर्य पूजन की रस्म पूरी करने के बाद उन्होंने मां का दूध पिया. जिससे इस यशस्वी बालक की चर्चा पूरे इलाके में फैल गई. वहीं लगभग 102 साल पहले देश में प्लेग नाम की महामारी और (लाल ताव) के नाम की बीमारी फैली. लोगों को इस महामारी से बचाने के लिए अनगढ़ बावजी की धूनी पर अमरा भगत ने घोर तपस्या की और लोगों को बचाया.

अमरा भगत से जुड़ी पहली कहानी

भेरू लाल गाडरी (मंदिर ट्रस्ट से जुड़े हैं) के मुताबिक नरबदिया गांव के कुछ लोगों का समूह चार धाम की यात्रा के लिए गया. उसमें अमरा भगत भी थे. उसी समय रक्षाबंधन का त्योहार आया. त्योहार पर अमरा भगत के माता पिता कुछ भी पकवान नहीं बना रहे थे क्योंकि अमरा भगत चार धाम यात्रा पर थे. इस मनोदशा को यात्रा पर गए अमरा भगत ने महसूस किया और अपने साथियों को कहा कि मैं स्नान करके आ रहा हूं. उसी समय वह सीधे अपने गांव लौट आए और मंदिर में माला जपने लगे. घर पर अपने बेटे के ना होने के कारण अमरा भगत की मां ने पकवान नहीं बनाए थे. इसलिए वह भैरु देवाता को सिर्फ चावल का भोग लगाने मंदिर पहुंची. यहां उन्होंने अपने बेटे को जाप करते हुए देखा और वह बहुत खुश हुईं. जिसके बाद उनके घर पर पकवान बने.

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इसी दौरान अमरा भगत धूप (अगरबत्ति करना) के लिए लाई गई कटोरी को लेकर द्वारकाधीश (चारधाम यात्रा पर ) अपने साथियों के पास पहुंच जाते हैं. उस कटोरी को देखकर साथी लोग हैरान रह जाते हैं कि यह कटोरी तो उनके गांव नरबदिया के चारभुजा मंदिर की है. ये वहां कैसे आ गई. इस चमत्कार को समझने के बाद में यात्रा के साथी और आसपास के लोग अमरा भगत की इस दिव्य शक्ति को पहचान जाते हैं. उसी दिन से इनका भगवान के रूप में पूजा स्मरण करने लग जाते हैं.

अमरा भगत से जुड़ी दूसरी कहानी

भेरू लाल गाडरी (मंदिर ट्रस्ट से जुड़े हैं) के  मुताबिक समाधि लेने के पहले अमरा भगत ने अपने हाथों से समाधि लेने का गड्ढा कर दिया. साथ ही अपने चेलों और अनुयायियों को बता दिया कि, '' उस दिन मुझे यहां समाधि दे देना जिस दिन मैं समाधि लूं.''  इसकी सूचना प्रशासन को भी दे दी गई. जिस पर पुलिस महकमा नरबदिया गांव पहुंच गया. पुलिस ने समाधि का पत्थर हटवाने का आदेश दिया. आदेश पाकर जैसे ही कर्मचारी पत्थर हटाने लगे उनको उसमें एक दिखाई दिया. जिससे पुलिस विभाग इस चमत्कार से भयभीत हो गया और तुरंत समाधि को सभी लोगों के सहयोग से पुनः समाधि का आकार देने में सहयोग किया गया.

यात्रियों और श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोतरी

इसके साथ ही लोगों की यह मान्यता है कि अमरा भगत सांवलिया जी मंदिर परिषद में विराजमान आमलिया बावजी के स्थान पर भी तपस्या करते थे. यह स्थान भी उन्होंने स्थापित किया था. प्रख्यात मेवाड़ का कृष्ण धाम कहे जाने वाले सांवलिया जी से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर अमरा भगत की जन्मस्थली अनगढ़ बावजी और नरबदिया गांव में द्वारकाधीश का मंदिर स्थित है. 

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भेरू लाल गाडरी (मंदिर ट्रस्ट से जुड़े हैं) के मुताबिक अनगढ़ बावजी का नाम इस प्रकार रखा गया क्योंकि अभी जो मूर्ति है वह बिना किसी नक्काशी किए हुए है. एक बड़ी चट्टान है जहां पर अमरा भगत तपस्या किया करते थे. वर्तमान में यहां अमरा भगत सेवा संस्थान कमेटी की देखरेख में प्रत्येक कृष्ण जन्माष्टमी और अमरा भगत के जन्मदिन के अवसर पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. साथ ही प्रत्येक अमावस्या पर दान पत्र खोला जाता है जिसमें लाखों की संख्या में आमदनी होती है दिन प्रतिदिन यहा यात्रियों और श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है.

संत शिरोमणि अमरा भगत का जीवन परिचय

संत अमरा भगत का जन्म धनगर गायरी समाज में हुआ. उनके पिता का नाम रामलाल और माता का नाम दाखी बाई था. उनका जन्म सावन मास जन्माष्टमी संवत 1942, सन 1898 हुआ था. उन्होंने समाधि सावन सुदी 9, बुधवार संवत 2006 , सन 1951 में ली.

Report- Deepak Vyas

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