Satyendar Jain: जेल में फल, सब्जी की सत्येंद्र जैन की मांग खारिज, कोर्ट ने बताई यह वजह
Rouse Avenue Court: बिना जेल प्रशासन की अनुमति के सत्येंद्र जैन को यह चीजें खाने के लिए उपलब्ध कराना जेल नियमों का उल्लंघन होगा. साथ ही कैदियों के समानता के मूल अधिकार का भी हनन होगा. सरकार की ये जिम्मेदारी बनती है कि वो जेल में सभी कैदियों को बराबर माने.
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Satyendar Jain in Jail: राउज एवेन्यू कोर्ट ने दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन की उस अर्जी को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने अपनी धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक तिहाड़ जेल के अंदर भोजन उपलब्ध कराने की मांग की थी. सत्येंद्र जैन का कहना था कि जैन धर्म के कट्टर अनुयायी होने के नाते वो एक धार्मिक उपवास पर हैं. इसलिए वो पके हुए भोजन या दालों का सेवन नहीं कर सकते हैं. वो जेल में फल, सब्जी का सेवन कर रहे थे लेकिन जेल प्रशासन ने पिछले कुछ दिनों से खाने में इन चीजों को देने से इंकार कर दिया है.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जेल में सभी कैदी बराबर हैं और किसी को विशेष सुविधाएं नहीं दी जा सकती. जेल नियमों के मुताबिक धार्मिक उपवास रखने वाले लोगों को जेल प्रशासन से अनुमति के बाद फल/आलू के रूप में अतिरिक्त खाने की चीजें मिल सकती हैं, पर इसके जेल प्रशासन से अनुरोध और उनकी मंजूरी की जरूरत होती है.
पूरी नहीं होगी जैन की इच्छा
सत्येंद्र जैन ने तिहाड़ जेल प्रशासन से लिखित में ऐसा कोई अनुरोध नहीं किया है और ना ही जेल प्रशासन से उन्हें उपवास रखने की इजाजत दी गई है. इसलिए जेल नियमों के मुताबिक कोर्ट अपनी ओर से तिहाड़ जेल के सुपरिंटेंडेंट और डीजी को जैन की इच्छा के मुताबिक फल, सब्जी, ड्राई फ्रूट्स उपलब्ध कराने का निर्देश नहीं दे सकता.
कैंटीन से फल, सब्जी खरीदे जाने का बिल नहीं
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि सत्येंद्र जैन और तिहाड़ जेल प्रशासन, दोनों ने इस बात को माना है कि जेल के अंदर पहले 5-6 महीने उन्हें नियमित भोजन के बजाए फल, सब्जी कैंटीन से मिलती रही है. लेकिन ऐसा कोई बिल का रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है, जिससे साबित हो कि सत्येंद्र जैन कैंटीन से यह सब खरीद रहे थे.
ऐसे में बिना जेल प्रशासन की अनुमति के सत्येंद्र जैन को यह चीजें खाने के लिए उपलब्ध कराना जेल नियमों का उल्लंघन होगा. साथ ही कैदियों के समानता के मूल अधिकार का भी हनन होगा. सरकार की ये जिम्मेदारी बनती है कि वो जेल में सभी कैदियों को बराबर माने. उनके लिंग, धर्म, जाति, हैसियत के लिहाज से उन्हें विशेष सुविधाए नहीं दी जा सकती.
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