Trending Photos
पॉडकास्ट-
नई दिल्ली: भारतीय सेना की नई मारक क्षमता ने पश्चिम में पाकिस्तान और पूर्व में चीन की चिंता बढ़ा दी है. रूस ने भारत को दुनिया के सबसे खतरनाक मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस-400 की डिलिवरी शुरू कर दी है. ये एक सरफेस टू एयर मिसाइल सिस्टम (Surface To Air Missile System) है यानी सतह से हवा में मार करने वाला दुनिया का सबसे आधुनिक और प्रभावी मिसाइल सिस्टम है.
अगर भारत इस मिसाइल डिफेंस सिस्टम को कश्मीर में एलओसी पर तैनात कर देता है तो पाकिस्तान चाह कर भी कभी कोई हवाई हमला नहीं कर पाएगा. अगर उसने हमला किया भी तो ये एस-400 एक बार में उसके 32 विमानों को मार कर नीचे गिरा देगा. इसलिए यह कहा सकता है कि भारतीय सेना को एस-400 के रूप में एक ऐसी मारक क्षमता मिली है, जिसका जवाब अब तक कोई देश नहीं ढूंढ पाया है. यहां ध्यान देने वाली यह है कि अमेरिका नहीं चाहता था कि भारत, रूस से ये मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदे. इस संबंध में अमेरिका में वर्ष 2017 में एक कानून लाया गया था ताकि अगर कोई देश विरोध के बावजूद रूस से कोई रक्षा सौदा करता है तो उस पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा.
एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम के कुल चार भाग हैं. पहला है लॉन्ग रेंज सर्विलांस रडार है. इसकी ट्रैकिंग रेंज 600 किलोमीटर है. मान लीजिए अगर दिल्ली में ये मिसाइल डिफेंस सिस्टम तैनात है और लगभग 600 किलोमीटर दूर लखनऊ में आसमान में कोई विमान उड़ रहा है तो ये रडार सिस्टम उसके बारे में सबकुछ पता लगा लेगा. इसके बाद ये कमांड व्हीकल (Command Vehicle) को इसकी जानकारी देगा. आप इस कमांड व्हीकल को इस मिसाइल डिफेंस सिस्टम का ब्रेन यानी दिमाग भी कह सकते हैं क्योंकि यही दिमाग इस पूरे सिस्टम को कंट्रोल करता है.
इसके बाद बारी आती है इंगेजमेंट रडार (Engagement Radar) की. इसी रडार सिस्टम से टारगेट को चुना जाता है और फिर जब लॉन्च व्हीकल (Launch Vehicle) से मिसाइल दागी जाती है तो इसकी मदद से मिसाइल टारगेट का पीछा करना शुरू देती है. यानी अगर मिसाइल एक बार फायर हो गई तो ये 100 प्रतिशत टारगेट को नष्ट करके रहती है. इसमें कुल चार मिसाइल ट्यूब लगी हैं. एक ट्यूब से आठ मिसाइल दागी जा सकती हैं. यानी अगर चारों ट्यूब से मिसाइल फायर की जाए तो एक साथ दुश्मन के 32 विमान मार गिराए जा सकते हैं और ये हमला 400 किलोमीटर की रेंज तक हो सकता है. इसे S-400 इसीलिए कहा जाता है क्योंकि इसकी मारक क्षमता 400 किलोमीटर है.
भारत को एस-400 की कुल पांच रेजिमेंट मिलने वाली हैं, जिनमें कुल 5 मोबाइल कमांड सेंटर (Mobile Command Center), 10 रडार और 40 लॉन्चर (Launcher) होंगे. एक लॉन्चर से अगर एक बार में चार मिसाइल भी दागी जाती हैं तो भारत आने वाले कुछ वर्षों में ऐसी 160 मिसाइल एक साथ दागने में सक्षम हो जाएगा. इसका मतलब ये है कि पाकिस्तान और चीन भारत पर हवाई हमला करने के बारे में सोच भी नहीं पाएंगे. भारत ने रूस से ये पांच रेजिमेंट 39 हजार करोड़ रुपये में खरीदी हैं. इसकी पहली रेजिमेंट की तैनाती पश्चिमी सीमा के पास हो सकती है, जहां से पाकिस्तान और चीन दोनों को दबाव में रखा सकता है. हालांकि चुनौतियां भारत के सामने भी हैं. पाकिस्तान के पास भले ये मिसाइल डिफेंस सिस्टम नहीं है लेकिन चीन के पास इसकी 6 बटालियन यानी 6 रेजिमेंट हैं.
इनमें से एक सिस्टम उसने तिब्बत में अरुणाचल प्रदेश के पास तैनात कर रखा है और दूसरा सिस्टम लद्दाख में तैनात बताया जाता है. यानी चीन हमसे आगे चल रहा है. उसने पहली S-400 मिसाइल वर्ष 2018 में रूस से ही खरीदी थी लेकिन मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल प्रणाली नाम की संधि का हिस्सा नहीं होने की वजह से उसे इसका नुकसान भी उठाना पड़ा था. इस संधि के तहत जो देश इसका सदस्य नहीं है, उसे 300 किलोमीटर से ज्यादा रेंज की कोई मिसाइल नहीं दी जा सकती. मतलब चीन को रूस से S-400 मिसाइल तो मिली, लेकिन इनकी मारक क्षमता अधिकतम 250 किलोमीटर तक ही है. जबकि भारत को जो डिफेंस सिस्टम मिला है, उसकी मारक क्षमता अधिकतम 400 किलोमीटर है.
VIDEO
इस खबर का दूसरा पहलू है भारत पर अमेरिका के प्रतिबंधों का खतरा. अमेरिका शुरुआत से ही नहीं चाहता था कि भारत कभी रूस से ये मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदे लेकिन सीमा सुरक्षा और चीन से गतिरोध को देखते हुए भारत ने अमेरिका की धमकियों को नजरअन्दाज कर दिया. अमेरिका में वर्ष 2017 में ये कानून आया था कि अगर कोई देश रूस के साथ हथियारों का सौदा करता है, तो उस देश को प्रतिबंधित कर दिया जाएगा. इस कानून को वहां 'प्रतिबंध अधिनियम के माध्यम से अमेरिका के विरोधियों का मुकाबला' कहते हैं. अमेरिका ने ये कानून इसलिए बनाया था ताकि वो हथियारों के निर्यात में रूस को और कमजोर कर सके. अभी पूरी दुनिया में हथियारों का सबसे ज्यादा 37 प्रतिशत निर्यात अमेरिका करता है और फिर नम्बर आता है रूस का, जिसकी हथियारों को बेचने में हिस्सेदारी 20 प्रतिशत की है.
वर्ष 2018 में जब चीन ने रूस से यही एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा था तो अमेरिका ने चीन पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसी तरह जब टर्की ने भी रूस से यही एस-400 मिसाइल खरीदी थीं तो अमेरिका ने उस पर भी कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे. जैसे अमेरिका ने टर्की का निर्यात लाइसेंस रद्द करके उसे काली सूची में डाल दिया था और अमेरिका के अधिकार क्षेत्र में आने वाली टर्की की परिसम्पत्तियों को भी फ्रीज कर दिया था. इस कार्रवाई के लिए अमेरिका ने पूरा एक साल लिया था. कहा जा रहा है कि भारत के मामले में भी कुछ समय बाद अमेरिका इस तरह का कदम उठा सकता है. हालांकि भारत के मामले में अपवाद की स्थिति भी बन सकती है. अमेरिका में जब डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति थे, तब उन्होंने संसद में एक कानून पास कराया था. इस कानून के तहत अमेरिका ने उन देशों को प्रतिबंध लगाने वाले कानून से छूट दी थी, जिनका रूस से रक्षा संबंध बहुत पुराना है और भारत के संदर्भ में ये कानून पूरी तरह फिट बैठता है.
यह भी पढ़ें; होम, डिफेंस, रॉ और IB के अफसरों का बढ़ सकेगा कार्यकाल, केंद्र ने जारी किया नोटिफिकेशन
1960 के दशक से ही रूस भारत का सबसे बड़ा डिफेंस पार्टनर रहा है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2012 से 2016 के बीच भारत के कुल रक्षा आयात का 68 प्रतिशत रूस के साथ ही हुआ था. यानी इस आधार पर भारत को प्रतिबंधों से छूट मिल सकती है. दूसरी बात, चीन से गतिरोध के बाद एशिया में अमेरिका का सबसे भरोसेमंद साथी भारत ही है. इसलिए भारत पर प्रतिबंध लगा कर अमेरिका खुद को इस क्षेत्र में कमजोर नहीं करना चाहेगा. अमेरिका ऐसी गलती इसलिए भी नहीं करेगा क्योंकि रूस के राष्ट्रपति पुतिन अगले महीने 6 दिसम्बर को ही एक दिन के दौरे पर भारत आने वाले हैं. इस दौरे की अहमियत आप इसी बात से समझ सकते हैं कि ये उनका इस साल का केवल दूसरा दौरा है और इसके लिए उन्होंने भारत को चुना है.