पापा, बस एक बार आ जाओ... फुसफुसाते हुए आज भी वॉयस मैसेज भेजता है शहीद का बेटा
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पापा, बस एक बार आ जाओ... फुसफुसाते हुए आज भी वॉयस मैसेज भेजता है शहीद का बेटा

यह दास्तां बताती है कि एक शहीद का परिवार जीवनभर कौन सी कमी महसूस करता रहता है. सबसे प्यारे शख्स से दूर होकर कैसी वेदना झेलनी पड़ती है. पत्नी और परिवार के दूसरे लोग तो याद कर गम में समय बिताते जाते हैं लेकिन बच्चों का प्रेम देख असहनीय पीड़ा होती है. यह कहानी ऐसे ही एक शहीद के बच्चे की है. 

पापा, बस एक बार आ जाओ... फुसफुसाते हुए आज भी वॉयस मैसेज भेजता है शहीद का बेटा

पापा बस एक बार आ जाओ, फिर मिशन पे चले जाना... आज भी 7 साल का कबीर अपने पिता के नंबर पर यह वॉयस मैसेज भेजता है. वह मासूम इस कठोर सच्चाई से अनजान है कि उसके पिता अब कभी वापस नहीं आएंगे. अपने पिता के नंबर पर ऐसे कई मैसेज वह अपनी मम्मी की नजरों से बचने के लिए फुसफुसाकर भी भेजता है. वह कई बार वीडियो कॉल करने की भी कोशिश करता है. एक बच्चे की अपने पिता से मिलने की यह कभी न पूरी होने वाली इच्छा आपकी आंखें नम कर देगा. कबीर के पिता कर्नल मनप्रीत सिंह पिछले साल जम्मू-कश्मीर में एक ऑपरेशन में शहीद हो गए थे. 

कर्नल सिंह का वीरता भरा अंतिम अभियान पिछले साल 13 सितंबर को था. उस दिन उन्होंने साथी सैनिकों के साथ गडूल गांव के जंगलों में आतंकियों के साथ भीषण मुठभेड़ की थी. कर्नल सिंह, मेजर आशीष धोंचक, जम्मू-कश्मीर पुलिस के उपाधीक्षक हुमायूं भट और सिपाही प्रदीप सिंह ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा लेकिन सबसे ज्यादा असर उस मासूम पर हुआ, जो रोज अपने पिता के आने की राह देखता है. 

वो नायक दिलों में जिंदा है

19 राष्ट्रीय राइफल्स (आरआर) इकाई के कमांडिंग अफसर कर्नल सिंह को जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के लार्कीपोरा, जालडूरा और कोकरनाग के सबसे ज्यादा आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों के एक नायक के रूप में याद किया जाता है. कई स्थानीय लोग उन्हें बहादुरी, नेतृत्व और नि:स्वार्थ बलिदान के प्रतीक के रूप में याद करते हैं. उनकी विरासत लोगों के दिलों में जिंदा है. 

कर्नल ने बच्चों के नाम पर लगाए थे पेड़

कर्नल सिंह का न होना उनकी पत्नी जगमीत पर भारी पड़ रहा है. जगमीत को वह समय अच्छे से याद है जब उन्होंने (कर्नल सिंह ने) चिनार के दो पेड़ लगाए थे और प्यार से उनका नाम अपने बच्चों- कबीर और वाणी- के नाम पर रखा था. जगमीत ने कहा, 'उन्होंने कहा था कि हम इन पेड़ों को देखने के लिए 10 साल बाद फिर आएंगे, लेकिन अब...' उनकी धीमी आवाज परिवार पर छाई अनिश्चितता और दुख को बयां करने के लिए काफी थी. 

जगमीत ने बताया कि कर्नल सिंह कश्मीर में लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए बेहद उत्साहित थे. उन्होंने अपने बच्चों को यह समझाने में आने वाली कठिनाइयों के बारे में भी बताया कि वह (सिंह) वापस नहीं आएंगे.

उन्होंने कहा, 'अक्सर मन (कर्नल मनप्रीत) को रात के अंधेरे में फोन आते थे और वह तुरंत यह सुनिश्चित करते थे कि पीड़ितों को सहायता पहुंचे.' उन्होंने कहा कि यह मदद व्यक्तिगत विवाद सुलझाने या अस्पताल में भर्ती कराने के लिए हो सकती है, यह किसी भी चीज के लिए हो सकती है. उन्होंने बताया कि उनके शहीद पति को स्थानीय लोग शादी-ब्याह, बच्चे के जन्म और ईद के मौके पर बुलाते थे. 

वो आखिरी बातचीत

जगमीत ने बताया, 'यह एक बड़े परिवार जैसा था'. उनके साथ महज 32 सेकेंड की हुई आखिरी बातचीत को याद करते हुए जगमीत ने कहा, 'ऑपरेशन में हूं, ये उनके आखिरी शब्द थे, उसके बाद मैंने उनसे कभी बात नहीं की.' 

अनंतनाग की जानी-मानी महिला क्रिकेटर रुबिया सईद ने कर्नल सिंह के समुदाय पर प्रभाव को याद किया. उन्होंने कहा, 'उनका मानना ​​था कि समाज के निर्माण में खेलों की अहम भूमिका होती है...बहुत से नशे के आदी लोग थे, जिन्हें उन्होंने पुनर्वास के लिए भेजा था.' सईद ने कहा कि महिलाओं को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने पर कर्नल सिंह का ध्यान खेल और शिक्षा के माध्यम से बेहतर समाज के निर्माण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है. 

उन्होंने कहा, 'मैंने उनके जैसा सज्जन अधिकारी कभी नहीं देखा. वह मेरे साथ अपने भाई की तरह व्यवहार करते थे.' उन्होंने बताया कि कैसे उनका बेटा कबीर के साथ खेला करता था. उन्होंने कहा, 'संभवतः, जब भी हम किसी समस्या से जूझ रहे होते थे, तो वह (सिंह) हमारा अंतिम सहारा होते थे.' (भाषा)

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