महाराष्ट्र सरकार ने 30 नवंबर 2018 को एक विधेयक पास कर मराठाओं को शिक्षा संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 16 फीसदी आरक्षण दिया था.
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मुंबई: बाम्बे हाईकोर्ट ने आंशिक रूप से मराठा आरक्षण को बरकार रखा है. कोर्ट ने कहा 12 से 13 फीसदी आरक्षण हो सकता है. लेकिन 16 फीसदी नहीं. महाराष्ट्र सरकार ने 30 नवंबर 2018 को एक विधेयक पास कर मराठाओं को शिक्षा संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 16 फीसदी आरक्षण दिया था. महाराष्ट्र स्टेट बैकवार्ड क्लास कमीशन की सिफारिशों के आधार पर मराठाओं को आरक्षण देने का फैसला किया था. ये आरक्षण सोशली एंड इकानामिकली बैकवार्ड क्लास कैटेगरी के तहत दिया गया था. सरकार की दलील थी कि आरक्षण सिर्फ उन लोगों को दिया जा रहा है जो लंबे समय से उपेक्षित हैं.
न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की खंडपीठ ने हालांकि कहा कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के अनुरूप आरक्षण का प्रतिशत 16 से घटाकर 12 से 13 प्रतिशत किया जाना चाहिए. अदालत ने कहा, ‘‘हम व्यवस्था देते हैं और घोषित करते हैं कि राज्य सरकार के पास सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) के लिए एक पृथक श्रेणी सृजित करने और उन्हें आरक्षण देने की विधायी शक्ति है.’
मराठाओं को आरक्षण देने के बाद राज्य में कुल आरक्षण 52 फीसदी से बढ़कर 68 फीसदी हो गया. मराठा आरक्षण के विरोध में और पक्ष में कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं. विरोध करने वालों का कहना है कि सरकार ने मराठा समुदाय को स्थाई तौर पर बैसाखियां दे दी हैं, जिससे वो कभी मुक्त नहीं हो पाएंगे. विरोधियों का ये भी कहना है कि ये सबको समानता के सिद्धांत के खिलाफ है.
इस केस में सुनवाई करते हुए बाम्बे हाईकोर्ट ने इस साल 26 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रखा. ये फैसला गुरुवार को सुनाया गया. महाराष्ट्र में करीब 31 फीसदी आबादी मराठाओं की है. करीब तीन महीने बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में कोर्ट के इस फैसले का काफी असर होगा.
1980 से की जा रही थी आरक्षण की मांग
मराठा समाज के नेताओं ने 1980 के बाद से आरक्षण की मांग की थी. 2009 में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने मराठा आरक्षण पर विचार करने का आश्वासन दिया था. 2009 से 2014 के दौरान विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने मराठा आरक्षण के मुद्दे पर समर्थन किया. 25 जून 2014 को तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने मराठा आरक्षण को मंजूरी दी थी. इसके तहत सरकारी शिक्षा संस्थानों और नौकरियों में मराठाओं को 16 फीसदी और मुसलमानों को पांच फीसदी आरक्षण दिया गया. लेकिन 2014 में ही कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया था. इसके बाद महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार ने 30 नवंबर 2018 को विधेयक पास कर मराठाओं को 16 फीसदी आरक्षण दिया.