राजस्थान: वसुंधरा राजे से बंगला खाली कराने के मामले में बोले गुलाबचंद कटारिया, कहा...
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राजस्थान: वसुंधरा राजे से बंगला खाली कराने के मामले में बोले गुलाबचंद कटारिया, कहा...

गुलाबचंद कटारिया ने बेबाक टिप्पणी करते हुए कहा कि कोर्ट अपना फैसला दे चुकी है. न्यायपालिका के आदेश की पालना करना सभी की जिम्मेदारी होती है.

हाईकोर्ट ने पिछले राजस्थान मंत्री वेतन संशोधन अधिनियम-2017 को अवैध घोषित कर दिया था.

शशि मोहन/जयपुर: अपनी स्पष्टवादिता और बेबाक टिप्पणियों के लिए खास तौर पर पहचाने जाने वाले नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने अब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सरकारी बंगले के मामले में चौंकाने वाला बयान दिया है. कटारिया से कोर्ट के फैसले के बाद इस मामले पर सवाल हुआ तो उन्होंने कहा कि कोर्ट के फैसले का सम्मान करना सभी की जिम्मेदारी है. साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि इस मामले में अब सरकार खुद ही ढीली पड़ी है तो इसमें मैं क्या कर सकते हैं?

प्रदेश में कानून व्यवस्था के हालात पर सवाल उठाने के लिए प्रेस से रूबरू हुए नेता प्रतिपक्ष के सामने जब पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी गई सुविधाओं के मामले में कोर्ट के फैसले का सवाल आया. इस पर उन्होंने बेबाक टिप्पणी करते हुए कहा कि कोर्ट अपना फैसला दे चुकी है. न्यायपालिका के आदेश की पालना करना सभी की जिम्मेदारी होती है. उन्होंने कहा कि अगर किसी को सहूलियत चाहिए तो न्यायपालिका के रास्ते से आए या फिर नियम बनाए जा सकते हैं. कटारिया ने साफ कहा कि वे खुद इस मामले में कुछ नहीं कर सकते. कटारिया ने पूरी तरह सरकार के पाले में गेंद डालते हुए कहा कि सरकार ही इस मामले में ढीला रवैया दिखा रही है.

दरअसल हाईकोर्ट ने पिछले राजस्थान मंत्री वेतन संशोधन अधिनियम-2017 को अवैध घोषित कर दिया था. इसके बाद अब राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिल रहीं आवास, कार-ड्राइवर और टेलीफोन सहित कई सुविधाएं बंद हो जाएगी. याचिकाकर्ता मिलापचंद डंडिया ने राजस्थान मंत्री वेतन संशोधन अधिनियम-2017 के द्वारा पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी गई सुविधाओं को चुनौती दी थी.

हालांकि, इस मामले में कोर्ट का आदेश आने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत साफ कर चुके हैं कि न्यायपालिका का आदेश अपनी जगह है. लेकिन वसुंधरा राजे से मौजूदा बंगला खाली कराया जाए या नहीं यह फैसला सरकार को लेना है. गहलोत के इस बयान के मायने निकाले जा रहे हैं. माना जा रहा है कि सरकार वरिष्ठ विधायकों को सिविल लाइन में मंत्रियों के स्तर के बंगले देने को लेकर कोई पॉलिसी बना सकती है. इस मामले में सवाल यही उठता है कि आखिर कटारिया ने सरकार की ढिलाई पर सवाल उठाकर क्या यह मंशा जता दी है कि कोर्ट के फैसले की जस की तस पालना होनी चाहिए.

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