नवरात्रि का पर्व शुरू होते ही कश्मीर में हिंदुओं (Kashmiri Hindu) का खून बहने लगा है. वहां पिछले 3 दिनों में 5 हिंदू-सिखों की हत्या कर दी गई है.
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नई दिल्ली: नवरात्रि का पर्व शुरू होते ही कश्मीर में हिंदुओं (Kashmiri Hindu) का खून बहने लगा है. कुछ दिनों पहले इस बात की आशंका जताई थी कि जो काबुल में हो रहा है, वो एक दिन कश्मीर में भी हो सकता है. अब वो आशंका सच साबित हो रही है.
कश्मीर (Jammu Kashmir) में पिछले 3 दिनों में आतंकवादी 5 लोगों की हत्या कर चुके हैं. इनमें से 4 अल्पसंख्यक हैं, जिनमें तीन हिंदू और एक सिख हैं. कश्मीर में हिंदुओं और सिखों को चुन चुन कर मारा जा रहा है. आज कश्मीर में मारे गए हिंदुओं के परिवार की बातें सुनकर आपका खून खौल जाएगा. इनकी बातें सुनकर आपको समझ आएगा कि आतंकवादी चाहते हैं कि कश्मीर में किसी और धर्म का कोई और व्यक्ति ना रहे. दूसरे धर्म का कोई व्यक्ति वहां नौकरी ना करे. अपने बच्चों को वहां पढ़ाएं नहीं और अपना घर वहां न बसाएं .
इन आतंकियों ने 3 दिन पहले कश्मीरी पंडित माखन लाल बिंद्रू की श्रीनगर में बेरहमी से हत्या कर दी थी. अब उनकी बेटी ने आतंकवादियों को बहस करने की चुनौती दी है. उन्होंने कहा है कि आतंकवादी गोली तो मार सकते हैं लेकिन वो ये सब किस लिए कर रहे हैं, उस पर बहस नहीं कर सकते.
श्रद्धा बिंद्रू के पिता माखन लाल बिंद्रू की हत्या 5 अक्टूबर को श्रीनगर में उनके मेडिकल स्टोरी में की गई थी. उनका परिवार तीन पीढ़ियों से श्रीनगर में दवाओं का कारोबार कर रहा है. कट्टरपंथी उनसे इसलिए चिढ़ते थे क्योंकि उन्होंने 1990 के उस दौर में भी अपना घर, अपना शहर और अपना धर्म नहीं छोड़ा, जब लाखों कश्मीरी पंडितों को इस्लामिक जेहाद के नाम पर वहां से विस्थापित कर दिया गया था.
वो चाहते थे तो कश्मीर (Jammu Kashmir) छोड़ कर किसी दूसरे शहर या राज्य में जाकर बस सकते थे. इसके बावजूद उन्होंने ये विकल्प नहीं चुना और आतंकवादियों से नहीं डरे. शायद यही वजह है कि आतंकवादियों ने उनकी हत्या कर दी. कश्मीर में पिछले 72 घंटों में पांच लोगों की हत्या की जा चुकी है और ये कोई इत्तेफाक नहीं है.
जब से वहां कश्मीरी पंडितों की सम्पत्तियों से कब्जा हटाने का अभियान शुरू हुआ है, तब से हिन्दुओं (Kashmiri Hindu) को चुन चुन कर मारा जा रहा है. उन्हें कहा जा रहा है कि जो यहां रहने के लिए आएगा, नौकरी करने आएगा, स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाएगा, उसकी इसी तरह से हत्या कर दी जाएगी.
ये पैटर्न अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के जैसा ही है, जहां इस्लामिक कट्टरपंथ के नाम पर उन सभी लोगों की हत्याएं की जा रही हैं, जो कट्टर जेहाद और शरिया को नहीं मानते. अफगानिस्तान के बाद अगला नंबर कश्मीर का ही है.
आतंकियों ने गुरुवार को भी हिंदू-सिखों का खून बहाया. उन्होंने गुरुवार को श्रीनगर के एक स्कूल में महिला प्रिंसिपल और एक टीचर की गोली मार कर हत्या कर दी. इन लोगों का कसूर सिर्फ़ इतना था कि ये गैर मुस्लिम थे. इनमें प्रिंसिपल सतिंदर कौर सिख थीं और टीचर दीपक चंद हिन्दू थे. आतंकवादियों ने दोनों को पास से गोली मारी, जिससे ऐसा भी लगता है कि कश्मीर में आतंकवादी टारगेट किलिंग कर रहे हैं.
यानी चुन चुन कर गैर मुस्लिमों और हिन्दुओं को मारा जा रहा है. आतंकवादियों ने कश्मीर में रहने वाले हिन्दुओं (Kashmiri Hindu) की लिस्ट भी बना ली है कि कब, किसे और कैसे मारना है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि 5 अक्टूबर को जिस दिन श्रीनगर में एक कश्मीरी पंडित की हत्या हुई, उसके एक घंटे बाद आतंकवादियों ने अवंतीपोरा में विरेंद्र पासवान नाम के एक व्यक्ति को भी मार डाला.
विरेंद्र पासवान बिहार के रहने वाले थे और अवंतीपोरा में गोलगप्पे का एक ठेला लगाते थे. सोचिए, उनसे किसी की क्या दुश्मनी हो सकती है. उन्हें सिर्फ़ इसलिए मारा गया क्योंकि वो हिन्दू थे.
आतंकवादियों ने 5 अक्टूबर को ही बांदीपोरा में मोहम्मद शफी लोन नाम के एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी. आतंकवादियों को शक था कि ये व्यक्ति पुलिस का मुखबिर है और अपने यहां हिन्दुओं को नौकरी दे रहा है. जिसकी वजह से उसे मार दिया गया.
कश्मीर (Jammu Kashmir) में अपनी दहशत बढ़ाने के लिए आतंकवादी संगठनों के बीच इन हमलों की ज़िम्मेदारी लेने की होड़ लगी हुई है. इनमें एक नया संगठन गुरुवार को सामने आया है, जिसका नाम है TRF यानी The Resistance Front. केंद्रीय जांच एजेंसियों का मानना है कि ये संगठन असल में पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का ही एक फ्रंट है. इसका नाम सिर्फ इसलिए बदला गया है, ताकि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को कश्मीर के स्थानीय लोगों की ओर से चलाया जाने वाला आंदोलन बताया जा सके.
आतंकवादी कश्मीर को सामान्य नहीं होने देना चाहते और इसके लिए वो फिर से वैसे ही हालात पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, जैसे आज से 31 साल पहले थे. उस समय कश्मीरी पंड़ितों को उनके ही घरों से विस्थापित कर दिया गया था. 19 जनवरी 1990 की रात को कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Hindu) के सामने तीन विकल्प रखे गए थे. पहला ये कि वो इस्लाम कबूल कर लें. दूसरा ये कि वो कश्मीर छोड़कर चले जाएं और तीसरा ये कि दोनों विकल्प नहीं चुनने पर मरने के लिए तैयार रहें.
इसके बाद रातों रात लाखों कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ना पड़ा था. एक बार फिर आतंकवादी और कट्टरपंथी कश्मीर में वैसे ही स्थिति बनाना चाहते हैं. जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी इन हत्याओं पर चिंता जताई है और पूछा है कि इन हत्याओं पर मानव अधिकारों के चैम्पियन आज चुप क्यों हैं?
भारतीय सेना जब एनकाउंटर में किसी आतंकवादी को मार गिराती है तो हमारे देश का एक खास वर्ग ही उस पर सवाल नहीं उठाता बल्कि पश्चिमी देश, वहां का मीडिया और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं भी हरकत में आ जाती हैं. उसे मानव अधिकारों का उल्लंघन बता कर भारत के खिलाफ दुष्प्रचार शुरू कर दिया जाता है. हमारा उन सबसे ये सवाल है कि अब वो कश्मीर में हिन्दुओं की हत्या पर चुप क्यों हैं?
हमारे देश के विपक्षी नेता तो लखीमपुर खीरी जाने के लिए धरने पर बैठ जाते हैं. वहां पीड़ित परिवारों को गले लगा कर उन्हें सांत्वना देते हैं. उन्हें कश्मीर के उन हिन्दू परिवारों का ध्यान नहीं आता, जिनके लोगों को आतंकवादियों ने बेरहमी से मार दिया.
हालांकि आज इस पूरे मुद्दे पर उन्होंने एक ट्वीट करके लिखा कि कश्मीर (Jammu Kashmir) में हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. आतंकवाद ना तो नोटबंदी से रुका ना धारा 370 हटाने से, केंद्र सरकार सुरक्षा देने में पूरी तरह असफ़ल रही है. उन्होंने आतंकवादी हमलों की निंदा भी की है. हालांकि जिस तरह वो लखीमपुर खीरी पीड़ित परिवार से मिलने गए, वैसी संवेदना उन्होंने कश्मीरी पंडितों के साथ नहीं दिखाई.
वहीं श्रीनगर में माखन लाल बिंद्रू की हत्या के बाद उनके घर पर नेताओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है. इनमें नैशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारुक अब्दुल्ला भी हैं, जिन्होंने उनकी हत्या करने वाले लोगों को शैतान बताया है. महबूबा मुफ्ती ने भी कहा है कि इसके लिए केन्द्र सरकार दोषी है. लेकिन सोचने वाली बात ये है कि यही नेता अपनी राजनीति और खास मकसद के लिए आतंकवादियों का महिमामंडन करते हैं और फिर ऐसी घटनाओं पर दुख जताते हैं.
कश्मीर (Jammu Kashmir) में हिन्दुओं का दमन और हत्याओं का पैटर्न तालिबान के जैसा ही है, जो महमूद गजनवी को अपना हीरो मानता है. 5 अक्टूबर को हक्कानी नेटवर्क का प्रमुख अनस हक्कानी, अपने छोटे भाई और तालिबान सरकार में गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी के साथ महमूद गजनवी की कब्र पर गया था, जिसने 10वीं शताब्दी में गुजरात के सोमनाथ मंदिर को लूटने के लिए 17 बार आक्रमण किया था. जेहादी सोच रखने वाले अनस हक्कानी जैसे आतंकवादियों के लिए महमूद गजनवी एक प्रतिष्ठित मुस्लिम योद्धा है.
महमूद गजनवी, तुर्की के गजनवी साम्राज्य का पहला स्वतंत्र और सबसे क्रूर शासक था, जिसने सोमनाथ मंदिर का खजाना लूटने के लिए 17 बार उस पर हमला किया था और फिर 10वीं शताब्दी में इस मन्दिर को तोड़ दिया था. गजनवी के हमले के बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका र्निर्माण कराया लेकिन फिर साल 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर कब्जा किया तो इसे फिर से तोड़ दिया गया.
यानी जिन मुस्लिम शासकों ने भारत में हिन्दुओं और हिन्दू मन्दिरों पर हमले किए, वो इन आतंकवादियों के हीरो हैं. अब तक तो कश्मीर के खिलाफ़ आतंकवाद की लॉन्चिंग पाकिस्तान से ही होती थी. अब अफगानिस्तान की जमीन और वहां के कट्टरपंथी भी इसमें मदद करेंगे और इनका अगला टारगेट कश्मीर है.
इसके लिए आतंकवादी संगठन अल कायदा ने अपनी Magazine का नाम पिछले साल ही Nawai Afghan Jihad से बदल कर Nawai Ghazwat-ul-Hind कर दिया था. इस्लाम के कुछ धर्म ग्रंथों में गज़वा ए हिंद का जिक्र करते हुए कहा गया है कि खुरासान से एक इस्लामिक सेना भारत पर हमला करेगी. आपको जानकर हैरानी होगी कि खुरासान जिस इलाके को कहा जाता है. उसमें आज का अफगानिस्तान, पाकिस्तान और ईरान के कुछ इलाके शामिल हैं .
कट्टर इस्लाम को मानने वाले कहते हैं कि इतने वर्षों में गज़वा ए हिंद इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि इससे पहले भारत पर जितने मुसलमान आक्रमणकारियों ने हमला किया था. वो इस्लाम की कट्टर विचारधारा से तो प्रेरित थे लेकिन उनका असली सपना भारत के धन और दौलत को लूटना था. अब जो लोग गज़वा ए हिंद करेंगे वो भारत को लूटने नहीं बल्कि भारत को एक इस्लामिक राष्ट्र में बदलने के इरादे से हमला करेंगे.
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इसके लिए हिन्दुओं की हत्या ही नहीं होगी बल्कि हिन्दुओं के मन्दिरों को भी तोड़ा जाएगा और कश्मीर में इस समय ये सब हो रहा है. 2 अक्टूबर को वहां अनंतनाग के भार्गशिखा मंदिर में तोड़फोड़ और आगजनी की गई. ये कश्मीरी पंडितों की कुल देवी का मंदिर था, जिसमें कट्टरपंथियों ने प्रतिमा को तोड़ने के साथ ही आग लगाकर मंदिर की सजावट को भी नुकसान पहुंचाया.
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