इस दौरान सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत, वायुसेना प्रमुख आरकेएस भदौरिया और नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह समेत केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री श्रीपद नाईक भी मौजूद रहे.
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नई दिल्ली: विजय दिवस के मौके पर आज तीनों सेना प्रमुखों ने दिल्ली स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक (National War Memorial) पर पहुंकर शहीद जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की. इस दौरान सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत, वायुसेना प्रमुख आरकेएस भदौरिया और नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह समेत केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री श्रीपद नाईक भी मौजूद रहे.
Delhi: The three service chiefs, Army Chief Bipin Rawat, Indian Air Force Chief, RKS Bhadauria and Chief of the Naval Staff, Admiral Karambir Singh, and MoS Defence Shripad Naik, pay tribute at National War Memorial on #VijayDiwas. pic.twitter.com/WwePiQye02
— ANI (@ANI) December 16, 2019
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर विजय दिवस के अवसर सेना के शौर्य और साहस को नमन किया.
विजय दिवस पर भारतीय सैनिकों के साहस, शौर्य और पराक्रम को नमन करता हूं। 1971 में आज के दिन हमारी सेना ने जो इतिहास रचा, वह सदा स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा।
— Narendra Modi (@narendramodi) December 16, 2019
बता दें कि साल 1971 में भारत ने पाकिस्तान के 90 हज़ार से ज़्यादा सैनिकों को युद्ध बंदी बना लिया था. पाकिस्तान में पंजाब और सिंध के कई इलाक़ों में भारतीय सेना का क़ब्जा हो गया था. हमारी फ़ौज नियंत्रण रेखा को पार करके पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर में भी कई किलोमीटर अंदर तक चली गई थीं.कुल मिलाकर पाकिस्तान की 15 हज़ार वर्ग किलोमीटर ज़मीन भारत के पास आ गई थी. ये इतनी ज़मीन थी...जिसमें दिल्ली जैसे 10 शहर बसाए जा सकते हैं. या नागालैंड जितना बड़ा एक राज्य बनाया जा सकता है.
ये पाकिस्तान की करारी हार थी. लेकिन जब भारत की इस विशाल जीत के बाद पाकिस्तान को मेज़ पर समझौते के लिये आना पड़ा...तो हम ऐसी कई बातों को मनवाने में नाकाम रहे, जो कश्मीर का मुद्दा हमेशा के लिये ख़त्म कर देतीं.
शिमला समझौता
दिसंबर 1971 में 13 दिनों तक चले युद्ध के 6 महीने बाद 2 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ था.इस समझौते में लिखा गया कि दोनों पक्ष सभी विवाद शांतिपूर्ण तरीके से निपटाएंगे.हर मतभेद को द्विपक्षीय तरीके से सुलझाया जाएगा .दोनों देश एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देंगे.और जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा का उल्लंघन नहीं किया जाएगा.
1971 का युद्ध जीतने के बाद भारत चाहता तो पाकिस्तान पर कश्मीर को लेकर दबाव बना सकता था . लेकिन तब शिमला समझौते में इंदिरा गांधी ने सदभावना दिखाते हुए पाकिस्तान को पूरी ज़मीन वापस कर दी थी. इसलिये अगर डिप्लोमेसी में इसे भारत की हार नहीं कहेंगे...तो इसे बड़ी जीत भी नहीं कह सकते. लेकिन Article 370 हटाये जाने के बाद आज देश में विपक्ष...खासकर कांग्रेस और कई बुद्धिजीवी शिमला समझौते की बात कर रहे हैं. कश्मीर पर नैतिकता की बहुत बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं. लेकिन हम पाकिस्तान की नैतिकता से बहुत अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं.
पाक ने दिखाई फितरत
वर्ष 1972 में ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे...और उन्हीं के साथ पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किये थे. पाकिस्तान जानता था कि अंतरराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक़ भारत को पाकिस्तान के 90 हज़ार सैनिकों को देर सवेर लौटाना ही पड़ेगा.और अगर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की ज़मीन भारत के पास रह गई...तो उसे वापस लेना नामुमकिन हो जाएगा. लेकिन भारत को लगा कि पाकिस्तान को अपने 90 हज़ार सैनिकों की ज़्यादा चिंता है. जबकि ऐसा नहीं था.
जिस देश ने कारगिल की जंग में मारे गये अपने सैनिकों के शव लेने से इनकार कर दिया था...उसी पाकिस्तान ने 1971 में युद्ध बंदी बनाये गये अपने 90 हज़ार सैनिक वापस लेने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. पाकिस्तान को सिर्फ़ अपनी ज़मीन की फ़िक्र थी. शिमला समझौते को लेकर पाकिस्तान की नीयत साफ़ होती तो वो भारत से अच्छे रिश्ते रखता, दोनों देश साथ-साथ तरक़्क़ी करते. लेकिन पाकिस्तान ने भारत से दुश्मनी जारी रखी, और 90 के दशक में कश्मीर में आतंकवाद फैलाकर उसने भारत को Thousand Cuts यानी हज़ारों घाव देने वाली नीति पर काम करना शुरू कर दिया.लेकिन भारत से नफरत की बुनियाद पर जन्म लेने वाला पाकिस्तान धीरे-धीरे आज नर्क में बदल गया है.
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