भारत में फिलहाल 27 लाख वैक्सीन डोज प्रति दिन बनाई जा रही हैं जिसमें रूसी वैक्सीन स्पूतनिक शामिल नहीं है. इसके बावजूद मई के पहले तीन हफ्तों में औसतन 16.2 लाख डोज प्रतिदिन ही लगाई गई हैं.
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नई दिल्ली: देश में कोरोना की रफ्तार थामने के लिए लगातार वैक्सीनेशन (Vaccination) अभियान जोर-शोर से चलाया जा रहा है और सभी व्यस्कों के टीकाकरण की शुरुआत हो चुकी है. लेकिन आए दिन राज्यों की ओर से वैक्सीन की कमी की शिकायतें भी आ रही हैं जिससे टीकाकरण अभियान प्रभावित हो रहा है. ऐसे में वैक्सीन उत्पादन पर लेकर सवाल भी उठने शुरू हो चुके हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार और वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों के बीच ही आंकड़ों को लेकर संदेह है. भारत में फिलहाल 27 लाख वैक्सीन डोज प्रति दिन बनाई जा रही हैं जिसमें रूसी वैक्सीन स्पूतनिक शामिल नहीं है. इसके बावजूद मई के पहले तीन हफ्तों में औसतन 16.2 लाख डोज प्रतिदिन ही लगाई गई हैं.
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए एक हलफनामे में कहा कि सीरम इंस्टीट्यूट (Serum Institute Of India) प्रति माह कोविशील्ड की 6.5 करोड़ डोज बना रहा है और भारत बायोटेक (Bharat Biotech) हर महीने कोवैक्सिन की 2 करोड़ डोज तैयार कर रहा है जिसे जुलाई के आखिर तक बढ़ाकर 5.5 करोड़ की योजना है. साथ ही जुलाई के अंत तक स्पूतनिक (Sputnik) भी अपना उत्पादन बढ़ाकर हर महीने 30 लाख की जगह 1.2 करोड़ डोज मुहैया कराएगी.
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सीरम खुद इस बात पर मुहर लगा चुका है कि उसका प्रति माह का उत्पादन 6 से 7 करोड़ डोज है. वहीं भारत बायोटेक की ओर से भी दावा किया गया कि कंपनी अप्रैल में 2 करोड़ डोज बना रही थी जिसे मई तक 3 करोड़ डोज प्रति महीने कर दिया जाएगा.
अब इन आंकड़ों को जोड़कर देखें तो कोविशील्ड और कोवैक्सिन ने मिलकर मई महीने में 8.5 करोड़ डोज तैयार की हैं. 31 दिन के इस महीने में प्रति दिन का औसत 27.4 लाख डोज का आता है. जाहिर है अब भी भारत बायोटेक प्रति माह दो करोड़ डोज ही तैयार कर पा रही है जबकि जुलाई अंत तक इसे बढ़ाकर 5 करोड़ से ऊपर ले जाने का लक्ष्य है.
वैक्सीनेशन के लिए बनाए गए कोविन पोर्टन पर मौजूद आंकड़े देखें तो पता चलेगा कि 1 से 22 मई तक देश में करीब 3.6 करोड़ डोज लगाई गई हैं. इसका प्रतिदिन के हिसाब से औसत 16.2 लाख डोज आता है और इसी रफ्तार से मई आखिर तक सिर्फ 5 करोड़ डोज ही लग पाएंगी. ऐसे में प्रति महीने होने वाले 8.5 करोड़ डोज के उत्पादन का क्या हो रहा है और बाकी बची करीब 3 करोड़ डोज आखिर कहां जा रही हैं.
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राज्यों को लगातार वैक्सीन की कमी का सामना करना पड़ रहा है. साथ ही आम लोगों को भी बड़ी मुश्किल से वैक्सीन के लिए स्लॉट मिल पा रहे हैं. इसके अलावा वैक्सीन की दो डोज का गैप भी बढ़ाया गया है और कोरोना से रिकवर मरीजों को तो तीन महीने तक टीका लगाया ही नहीं जाएगा. ऐसे में वैक्सीन के उत्पादन और लोगों तक उनकी पहुंच के बीच क्या बाधाएं हैं और इन्हें कैसे दूर किया जाए, यह सबसे बड़ा सवाल है.