CBSE के पेपर का महिलाओं पर वो आपत्तिजनक सवाल जिसे लेकर संसद में हुआ हंगामा
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CBSE के पेपर का महिलाओं पर वो आपत्तिजनक सवाल जिसे लेकर संसद में हुआ हंगामा

CBSE Class 10th Objectionable Question About Women: भारतीय संस्कृति में महिलाओं का क्या स्थान था, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि भारत में आज भी देवी सरस्वती को ज्ञान की देवी का दर्जा हासिल है.

सीबीएसई के पेपर में आपत्तिजनक सवाल.

PODCAST

  1. ऋग्वेद में है 27 विद्वान महिलाओं का उल्लेख
  2. भारतीय संस्कृति में महिलाओं को दिया गया देवी जैसा सम्मान
  3. महिलाओं के प्रति रुढ़िवादी सोच अब भी मौजूद

नई दिल्ली: सीबीएसई (CBSE) की 10वीं क्लास के Question Paper में लिखा हुआ है कि भारतीय परिवारों में महिलाओं को मिलने वाली आजादी से घर का माहौल खराब हो रहा है और अगर महिलाएं अपने घर में पति का प्रभुत्व स्वीकार ना करें तो वो अपने बच्चों से कभी सम्मान नहीं पा सकती. सोमवार को दिनभर इस सवाल पर विवाद होता रहा और विरोध के बाद CBSE ने इस सवाल को अपने प्रश्न पत्र से डिलीट कर दिया. आज हम देश की 65 करोड़ महिलाओं के लिए इस विचारधारा का पुरजोर विरोध करेंगे और आपको बताएंगे कि जिस परिवार में महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं मिलता, उस परिवार का भविष्य भी उज्जवल नहीं है.

CBSE के पेपर में आपत्तिजनक सवाल

बता दें कि CBSE की 10वीं क्लास के Question Paper में Comprehension Passage के पहले पैरा में लिखा है कि 'महिलाओं की आजादी ने बच्चों पर माता-पिता के अधिकार को समाप्त कर दिया है.' फिर इसी में आगे ये भी लिखा है कि 'महिलाएं अपने पति के प्रभुत्व को स्वीकार करके ही अपने बच्चों से सम्मान पा सकती हैं' यानी अगर महिलाएं अपने पति के प्रभुत्व को स्वीकार नहीं करेंगी तो उन्हें अपने बच्चों से भी सम्मान नहीं मिलेगा.

महिलाओं को बराबरी मिलने से पुरुषों का प्रभाव हुआ कम?

इसमें ये भी लिखा है कि महिलाओं को स्वतंत्रता मिलना अनेक तरह की सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं का प्रमुख कारण है. एक और बड़ी बात इसमें ये लिखी गई है कि पहले महिलाएं अपने बच्चों को डराने के लिए ये कहती थीं कि पापा आ गए तो वो उन्हें बहुत मारेंगे यानी महिलाएं बच्चों को उनके पिता के नाम से डराती थीं. लेकिन आज पुरुषों का प्रभाव कम होने से ये डर भी बच्चों में खत्म हो गया है. मतलब इस पूरी बात का भाव ये है कि महिलाओं को बराबरी मिलने से पुरुषों का प्रभाव कम हुआ है और इससे बच्चों पर माता-पिता के अधिकार सीमित हुए हैं.

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CBSE ने पेपर से हटाया आपत्तिजनक सवाल

इस विवाद के बाद CBSE ने प्रश्न पत्र से इस सवाल को हटा दिया है और कहा है कि छात्रों को इस सवाल के पूरे Marks दिए जाएंगे. यानी इस सवाल के हटने से बच्चों के अंक नहीं काटे जाएंगे. उन्हें इसके पूरे नंबर मिलेंगे. CBSE ने ये भी माना है कि उसके प्रश्न पत्र में लिखी ये बातें पाठ्यक्रम के अनुरूप नहीं हैं. यानी हो सकता है कि जिस शिक्षक ने इस प्रश्न पत्र को तैयार किया, उसने सिलेबस से हटकर ये बातें प्रश्न पत्र में लिखी दीं.

सोमवार को इस पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी आपत्ति जताई और केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय और CBSE से इस पर माफी मांगने के लिए कहा. हम इस विषय पर सोनिया गांधी की बात का स्वागत करते हैं और मानते हैं कि इस तरह की बातें महिलाओं के प्रति रुढ़िवादी सोच को दर्शाती हैं.

आज ये समझने का दिन है कि क्या भारतीय संस्कृति में शुरुआत से ही महिलाओं का ये स्थान रहा है? भारत में महिलाओं के प्रति ये धारणा और समाज में उनका ये स्थान हमेशा से ऐसा नहीं था. भारत में प्राचीन काल से ही महिलाओं को देवियों के समान दर्जा दिया गया और इसके कुछ सबूत भी इतिहास में मिलते हैं.

उदाहरण के लिए जब लगभग पांच हजार वर्ष पुरानी हड़प्पा सभ्यता को करीब से जानने के लिए मोहन जोदड़ो शहर की खुदाई की गई तो इस खुदाई में अनेकों देवियों की मूर्तियां और उनके अवशेष मिले. जिससे ये पता चला कि भारत में पांच हजार साल पहले भी महिलाओं को देवी समान दर्जा हासिल था और इसका जिक्र वेदों में भी मिलता है.

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ऋग्वेद में अनेकों देवियों का उल्लेख किया गया है, जिनमें अदिति, पृथ्वी, रात्रि और सरस्वती प्रमुख हैं. भारतीय संस्कृति में महिलाओं का क्या स्थान था, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि भारत में आज भी देवी सरस्वती को ज्ञान की देवी का दर्जा हासिल है. ऋग्वेद में 27 ऐसी महिलाओं का भी उल्लेख मिलता है, जिन्होंने ना सिर्फ वेदों का अध्ययन किया बल्कि अनेकों महत्वपूर्ण श्लोकों की रचना की. इन महिलाओं में अपाला, सिकता, उर्वशी, सुलभ, गार्गी, लोपामुद्रा और मैत्रेयी थीं.

कहने का मतलब ये है कि उस समय महिलाओं का अर्थ खाना बनाने और घर संभालने से नहीं था बल्कि महिलाओं की भूमिका हिन्दू धर्म के प्राचीनतम साहित्य में भी थी. इनमें से कुछ महिलाएं, महान ऋषि मुनियों की पत्नियां थीं, जैसे मैत्रेयी वैदिक काल के एक ऋषि याज्ञ-वल्क्य की पत्नी थीं.

उनसे जुड़ा एक किस्सा है कि एक बार ऋषि ने फैसला किया कि वो संसार का त्याग कर देंगे. इस बारे में उन्होंने अपनी पत्नी मैत्रेयी को बताते हुए उनसे ये कहा कि वो आखिरी बार उनसे क्या इच्छा रखती हैं? इस सवाल पर मैत्रेयी ने उनसे पूछा कि क्या संसार की सारी धन दौलत उन्हें अमर बना सकती है? इस पर ऋषि ने कहा कि दौलत से अमीर तो बन सकते हैं लेकिन अमर नहीं. इस जवाब पर मैत्रेयी ने उनसे कहा कि फिर उन्हें दौलत नहीं बल्कि उनका ज्ञान चाहिए. कहने का मतलब ये है कि वो आर्थिक रूप से अपने पति पर निर्भर नहीं थीं. उन्हें आज की महिला की तरह घर चलाने की चिंता नहीं थी या उन्हें ये फिक्र नहीं थी पति के संसार त्याग के बाद उनका क्या होगा, बल्कि वो अपने पति से ज्ञान से जुड़ी हुई थीं और उन्होंने ऋग्वेद में कुल 10 श्लोक लिखे थे.

कुल मिला कर कहें तो भारतीय संस्कृति में महिलाओं का स्थान हमेशा से काफी ऊंचा रहा है. लेकिन पिछले एक हजार वर्षों में भारत का समाज इतनी तेजी से बदला है कि बहुत सारे पुरुष महिलाओं को दफ्तर के Cabin में नहीं बल्कि घर के किचन में देखना पसंद करते हैं और महिलाओं का काम घर खाना बनाने और घर संभालने तक ही माना जाता है. और ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे देश में अब भी महिलाओं के प्रति रुढ़िवादी सोच मौजूद है.

आप खुद सोच कर देखिए, आप में से जो लोग काम पर जाते हैं तो उनका लंच पैक करने की जिम्मेदारी किसकी होती है? आज भी खाना खराब बन जाए तो हम परिवार की महिलाओं को दोष देते हैं लेकिन ये जिम्मेदारी पुरुषों की नहीं मानी जाती है.

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