ZEE जानकारी: तीन तलाक बिल राज्यसभा से पास
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ZEE जानकारी: तीन तलाक बिल राज्यसभा से पास

ट्रिपल तलाक के दोषियों को सज़ा देने वाला Bill... मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019 मंगलवार को राज्यसभा से भी Pass हो गया है . 

ZEE जानकारी: तीन तलाक बिल राज्यसभा से पास

15 अगस्त को भारत आज़ादी का जश्न मनाने वाला है . लेकिन स्वतंत्रता दिवस से ठीक 16 दिन पहले भारत की 8 करोड़ से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं के लिए आज उत्सव का दिन है . और भारत आज से एक नए युग में प्रवेश कर गया . इसी संसद ने साल 1985 में शाह बानो के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया था. लेकिन आज उसी संसद ने ट्रिपल तलाक पर मुस्लिम महिलाओं के हक में ऐतिहासिक बिल पास कर दिया . 

ट्रिपल तलाक के दोषियों को सज़ा देने वाला Bill... मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019 मंगलवार को राज्यसभा से भी Pass हो गया है . ये मुस्लिम महिलाओं की बहुत बड़ी विजय है . राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये Bill कानून बन जाएगा . इसके बाद ट्रिपल तलाक के दोषियों को कम से कम तीन वर्ष की सज़ा होगी . 

ट्रिपल तलाक का मतलब होता है... तीन बार तलाक-तलाक-तलाक बोलकर तलाक देना . इसे तलाक-ए-बिद्दत भी कहा जाता है . भारत में मुस्लिम महिलाएं एक हज़ार से भी ज़्यादा वर्षों से इस कुप्रथा से पीड़ित थीं . 15 अगस्त 1947 को देश को आज़ादी मिली . लेकिन ट्रिपल तलाक की जंजीरें फिर भी नहीं टूटी . 

वर्ष 1970 और 1980 के दशक में शाह बानो नामक एक मुस्लिम महिला ने इसके खिलाफ संघर्ष किया . लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों ने शाह बानो को झुकने पर मजबूर कर दिया था . 

लेकिन सायरा बानो ने करीब 2 वर्षों तक संघर्ष करके ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून बनाने में मदद की . Zee News ने सायरा बानो के अभियान को एक सत्याग्रह में बदल दिया था . आज ये सिर्फ मुस्लिम महिलाओं की ही जीत नहीं है . ये Zee News के सत्याग्रह की भी विजय है . 

Zee News ने वर्ष 2017 में अपने विशेष कार्यक्रम फतह का फतवा में भी ट्रिपल तलाक के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था . आज देश... सायरा बानो के संघर्ष को प्रणाम कर रहा है और शाह बानो के संघर्ष को भी याद कर रहा है .

आज देश में मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेताओं की भी बहुत बड़ी हार हुई है . 2019 में बीजेपी की राष्ट्रवादी राजनीति को मिले ऐतिहासिक बहुमत के बाद, ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर विपक्ष पूरी तरह दिशा हीन दिखा . 

मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाले विपक्ष के बड़े बड़े नेता असमंजस में नज़र आए . आज हम Champions of Muslims बनने वाले इन राजनेताओं को भी Expose करेंगे . 

आज समान नागरिक संहिता की बात करना भी बहुत ज़रूरी है . इस ऐतिहासिक घटना को देखकर ऐसा लगता है कि भारत ने धीरे-धीरे समान नागरिक संहिता को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है . 

अगर मुस्लिम समाज इस नए कानून को सहर्ष स्वीकार करता है . तब भारत में धीरे-धीरे में एक देश और एक कानून के सिद्धांत को बढ़ावा मिलेगा . ट्रिपल तलाक के बाद अब Zee News समान नागरिक संहिता को लेकर भारत के लोगों को जागरूक करेगा . ये हमारा अगला सत्याग्रह है . 

सरकार ने राज्य सभा में बेहतरीन Floor Management करके ये कामयाबी हासिल की है .<<Visual-Rajya Sabha>>

इसी महीने राज्यसभा में सरकार ने विपक्ष के विरोध के बावजूद RTI कानून में संशोधन का Bill Pass करवाया था . 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में राज्यसभा में विपक्ष के विरोध के बावजूद Pass होने वाला ये पहला Bill था . 

इसके बाद ट्रिपल तलाक Bill के Pass होने की उम्मीद बढ़ गई थी . 

Bill पर Final Voting के वक्त राज्य सभा में कुल 183 सांसद मौजूद थे . 

सरकार को Bill Pass करवाने के लिए 92 वोट चाहिए थे . 

Bill के पक्ष में कुल 99 वोट पड़े और विपक्ष में कुल 84 वोट पड़े 

सरकार पहले से ये बात जानती थी कि उसकी सहयोगी पार्टी JDU राज्यसभा में उसका साथ नहीं देगी . 

JDU के पास राज्यसभा में 6 सीटें हैं . इस नुकसान की भरपाई के लिए सरकार ने BJD को अपने साथ मिला लिया . राज्यसभा में BJD के 7 सांसद हैं . 

NDA में कुल 113 सांसद हैं .
NDA के दो सहयोगी दलों AIADMK और JDU ने Bill पर Walk Out किया यानी वोटिंग का बहिष्कार किया . 

राज्यसभा में AIADMK के 11 और JDU के 6 सांसद हैं . 

यानी NDA के कुल 17 सांसदों ने वोटिंग का बहिष्कार किया . 

बीजेपी के दो सांसद स्वास्थ्य कारणों से राज्यसभा में उपस्थित नहीं थे . 

कुल मिलाकर... आज राज्यसभा में NDA के पक्ष में 96 सांसद थे . 

राज्य सभा में UPA के कुल 68 सांसद हैं . 

लेकिन राज्य सभा में विपक्षी दल Bill के खिलाफ एकजुट नहीं हो सके . 

इसीलिए पूरा विपक्ष बिखर गया जिसका लाभ सरकार को मिला . 

विपक्ष के कुल 31 सांसदों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया . 

मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के 48 सांसद हैं लेकिन इनमें से 5 सांसद राज्य सभा में मौजूद ही नहीं थे . 

इसके अलावा कुछ और पार्टियों ने भी वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया जिससे सरकार को मदद मिली . 

उदाहरण के लिए तेलंगाना राष्ट्र समिति के 6 सांसदों ने भी वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया . 
2019 के चुनाव में बीजेपी की राष्ट्रवादी राजनीति को ऐतिहासिक बहुमत मिला था . इसका असर आज विपक्ष के राजनेताओं के निर्णय पर भी पड़ा . 

बदली हुई परिस्थितियों में मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले राजनीतिक दल ट्रिपल तलाक के पक्ष में नज़र आना नहीं चाहते थे . 

यही वजह रही कि कई बड़े नेता राज्यसभा में नज़र ही नहीं आए . और मुसलमानों पर राजनीति करने वाली कुछ पार्टियों ने असमंजस की हालत में सदन से Walk Out करने का फैसला किया . 

उदाहरण के लिए NCP के 4 में से 2 सांसद राज्यसभा में मौजूद नहीं रहे . NCP के बड़े नेता शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल, राज्यसभा के सांसद हैं लेकिन ये दोनों ही सदन में मौजूद नहीं थे .

इसी तरह उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की राजनीति करने वाली पार्टी BSP के 4 सांसदों ने भी वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया .

राज्य सभा में समाजवादी पार्टी के कुल 12 सांसद हैं . इनमेंम से 5 सांसदों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया . समाजवादी पार्टी के सांसदों का Bill के खिलाफ वोट नहीं देना... बहुत चौंकाने वाली घटना है . 

इसके अलावा महबूबा मुफ्ती की पार्टी PDP के 2 सांसदों ने भी आज वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया . 

नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने Tweet करके PDP की निंदा की है . 
अगर देखा जाए तो वोटिंग नहीं करने वाले सांसदों ने अ-प्रत्यक्ष रूप से सरकार की मदद की है . 

प्रधानमंत्री मोदी ने Tweet करके आज के दिन को ऐतिहासिक बताया है. उन्होंने लिखा है कि आज करोड़ों मुस्लिम महिलाओं को सम्मान से जीने का हक मिला है. सदियों से तीन तलाक की कुप्रथा से देश की करोड़ों माताओं-बहनों को उनके अधिकार से वंचित रखने का पाप किया गया. 

गृह मंत्री अमित शाह ने Tweet किया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने वादे को पूरा कर दिया है. ये विधेयक मुस्लिम महिलाओं की गरिमा की ख़ातिर उठाया गया एक ऐतिहासिक क़दम है.

पिछले वर्ष प्रधानमंत्री मोदी ने जब 15 अगस्त को लाल क़िले से भाषण दिया था...तब भी उन्होंने ट्रिपल तलाक़ का मुद्दा उठाया था. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि ट्रिपल तलाक़ वाली प्रथा को ख़त्म करने के लिये वो कोई कसर नहीं छोड़ेंगे

ट्रिपल तलाक के दोषियों को अब कम से कम 3 वर्ष की सज़ा होगी . दोषियों को जुर्माना भी देना पड़ा सकता है . 

Bill के मुताबिक पीड़ित महिला या पीड़ित महिला के रिश्तेदार ही ट्रिपल तलाक का केस दर्ज करवा सकते हैं . 

ट्रिपल तलाक के मामलों में मजिस्ट्रेट... पत्नी से बात करके आरोपी पति को ज़मानत दे सकता है . 

Bill में मजिस्ट्रेट के सामने पति-पत्नी के बीच समझौते का विकल्प भी खुला रखा गया है . ट्रिपल तलाक के खिलाफ बनाए गए कानून के दायरे में देश के 3 करोड़ 12 लाख मुसलमान परिवार हैं .

2011 की जनगणना के मुताबिक मुसलमानों की कुल आबादी 17 करोड़ 22 लाख है . इनमें मुस्लिम महिलाओं की संख्या 8 करोड़ 40 लाख है . अब इन सभी महिलाओं को ट्रिपल तलाक के मामलों में कानूनी मदद मिलेगी . 

ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून जरूरी हो गया था क्योंकि मुस्लिम समाज में हर एक तलाकशुदा मर्द के मुकाबले 4 तलाक़शुदा औरतें हैं . यानी तलाकशुदा मुस्लिम औरतों की संख्या मुस्लिम पुरुषों के मुकाबले 4 गुना है .

2001 से 2011 के बीच मुस्लिम औरतों को तलाक़ देने के मामले 40 प्रतिशत तक बढ़े हैं . 

मुस्लिम समाज में तलाक के मामले राष्ट्रीय औसत के मुकाबले दोगुने हैं . 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी ट्रिपल तलाक के मामलों में कमी नहीं आई थी.फैसले के बाद ट्रिपल तलाक के 229 से ज्यादा मामले सामने आए . इसलिए इस पर कानून बनाना ज़रूरी हो गया था . 

दुनिया के बहुत सारे इस्लामिक देश पहले ही ट्रिपल तलाक को प्रतिबंधित कर चुके हैं . Turkey, सीरिया, Egypt, इराक़, ईरान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश समेत 20 से ज्यादा इस्लामिक देशों ने Triple तलाक को रोकने के लिए कानून बनाए हैं . 

पाकिस्तान ने 1961 में ही ट्रिपल तलाक़ को खत्म कर दिया था . यानी इस मामले में पाकिस्तान हमसे 58 वर्ष आगे है . 
((
1971 में पूर्वी पाकिस्तान ही बांग्लादेश बन गया . बांग्लादेश ने भी पाकिस्तान ))

आज भारत की 8 करोड़ से ज़्यादा मुस्लिम महिलाओं को सायरा बानो को शुक्रिया कहना चाहिए . क्योंकि सायरा बानो ही वो महिला हैं जिनके संघर्ष की वजह से आज ट्रिपल तलाक का कानून बन पाया है .

सायरा बानो ने ट्रिपल तलाक की परंपरा के खिलाफ कानूनी लड़ाई शुरू की . 2016 में सायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके मांग की थी कि ट्रिपल तलाक को खत्म किया जाए . सायरा बानो का निकाह वर्ष 2001 में हुआ था . लेकिन दहेज के लिए उनके साथ मारपीट की जाती थी . अक्टूबर 2015 में सायरा बानो के पति ने सायरा बानो को Speed Post से तलाक दे दिया .

सायरा बानो ने अपने मन में ये संकल्प लिया कि ट्रिपल तलाक को रोकने के लिए देश में एक कानून ज़रूर होना चाहिए . लेकिन उनका ये अभियान बहुत मुश्किल था . क्योंकि मुस्लिम कट्टरपंथियों ने उनके अभियान को इस्लाम के खिलाफ बताया . लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी . Zee News भी सायरा बानो की मदद के लिए आगे आया . हमने, अप्रैल 2016 में सायरा बानो की आवाज़ पूरे देश तक पहुंचाई . धीरे-धीरे सायरा बानो को पूरे देश में बड़ा समर्थन मिला . ट्रिपल तलाक के खिलाफ बना कानून इसी संघर्ष का परिणाम है .
आज शाह बानो को याद करना भी बहुत जरूरी है . शाह बानो केस में राजीव गांधी के फैसले को आज भी मुस्लिम तुष्टीकरण की सबसे बड़ी घटना माना जाता है . 

अप्रैल 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो के पति को उन्हें गुज़ारा भत्ता देने का आदेश दिया था .तब भारत के रूढ़िवादी मुसलमानों ने सुप्रीम कोर्ट का विरोध किया था . उनका कहना था कि वो अपने Personal Laws में किसी का दखल बर्दाश्त नहीं करेंगे.

तब राजीव गांधी के सलाहकार Z D अंसारी ने सुप्रीम कोर्ट पर व्यंग्य करते हुए कहा था कि 'अदालत के जज इस्लामी कानूनों की व्याख्या करने के लिए बहुत छोटे इंसान हैं' . 1986 में राजीव गांधी की सरकार ने एक Bill लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया. और शाहबानो को मुस्लिम कट्टरपंथियों के सामने झुकना पड़ा था . 

आज समान नागरिक संहिता की बात करना भी बहुत ज़रूरी है . इस ऐतिहासिक घटना को देखकर ऐसा लगता है कि भारत ने धीरे-धीरे समान नागरिक संहिता को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है . 

अगर मुस्लिम समाज इस नए कानून को सहर्ष स्वीकार करता है . तब भारत में धीरे-धीरे में एक देश और एक कानून के सिद्धांत को बढ़ावा मिलेगा .

संविधान का अनुच्छेद 44 कहता है कि पूरे भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश की जाएगी . 

समान नागरिक संहिता का मतलब है कि देश के सभी नागरिकों के लिए समान यानी एक जैसे नागरिक कानून . 

समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद शादी, तलाक और जमीन जायदाद के बंटवारे के मामले में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून होगा . 
सुप्रीम कोर्ट कई बार सरकार को ये निर्देश दे चुका है कि देश में समान नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए . 

वर्ष 1985 में शाह बानो केस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि Uniform Civil Code देश को एक रखने में मदद करेगा.
कोर्ट ने कहा था कि देश में अलग-अलग क़ानूनों से होने वाले विचारधाराओं के टकराव ख़त्म होंगे.
वर्ष 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिये थे कि संविधान के Article 44 को देश में लागू किया जाये. Article 44 देश में Uniform Civil Code होने की बात करता है.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद भी भारत सरकार इस दिशा में कोई बड़ी पहल नहीं कर सकी है . क्योंकि हर धर्म के अपने-अपने वोट बैंक हैं और कोई भी राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को नाराज़ नहीं करना चाहता है . 

भारत में हर धर्म ने अपनी-अपनी परंपराओं को लागू करने के लिए अलग-अलग संगठन बना रखे हैं . 

हमारे देश में Personal Law के नाम पर कई संगठन बने हुए हैं . उदाहरण के लिए... All Indian Muslim Personal Law Board. 

भारत के कई मुसलमान नेता और बुद्धिजीवी अल्पसंख्यक होने का Victim Card खेलकर मुसलमानों के लिए विशेष अधिकारों की मांग करते हैं . 

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है . यानी भारत का कोई धर्म नहीं है . भारत में हर धर्म के नागरिकों को बराबर के अधिकार हैं . इसलिए भारत में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की बात होनी ही नहीं चाहिए . 

आप पाकिस्तान के उदाहरण से भी ये बात समझ सकते हैं . पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है . वहां पर गैर मुसलमानों को अल्पसंख्यक कहा जा सकता है .क्योंकि पाकिस्तान की सरकार आधिकारिक रूप से एक इस्लामिक सरकार है . इसलिए पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू, सिख, ईसाई और दूसरे गैर मुसलमान लोगों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना चाहिए . 

लेकिन भारत में एक धर्मनिरपेक्ष सरकार है इसलिए यहां अल्पसंख्यकों के नाम पर राजनीति होनी ही नहीं चाहिए . 

लेकिन हमारे देश में अल्पसंख्यकों के नाम पर राजनीति का लंबा इतिहास रहा है . भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तो एक बार ये बयान भी दिया कि भारत के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है और खास तौर पर अल्पसंख्यक मुसलमानों का . 

ये मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति है . और ट्रिपल तलाक के नाम पर मुस्लिम महिलाओं की दुर्दशा पर मौन रहना भी इसी राजनीति का ही एक हिस्सा था . जिस पर आज पूर्ण विराम लग गया है . 

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