Zee Jaankari: NASA के वैज्ञानिकों के लिए 'चांद' अब आम बोलचाल का शब्द है
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Zee Jaankari: NASA के वैज्ञानिकों के लिए 'चांद' अब आम बोलचाल का शब्द है

हमारी अगली खबर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ISRO के चंद्रयान-2 मिशन से जुड़ी हुई है. आज से ठीक एक महीने पहले यानी 7 सितंबर को चंद्रयान-2 के Lander विक्रम का संपर्क ISRO से टूट गया था. 

Zee Jaankari: NASA के वैज्ञानिकों के लिए 'चांद' अब आम बोलचाल का शब्द है

हमारी अगली खबर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ISRO के चंद्रयान-2 मिशन से जुड़ी हुई है. आज से ठीक एक महीने पहले यानी 7 सितंबर को चंद्रयान-2 के Lander विक्रम का संपर्क ISRO से टूट गया था. उस दिन से लेकर आज तक ISRO के वैज्ञानिक विक्रम से संपर्क करने की कोशिश में लगे हुए हैं. विक्रम से भले ही ISRO का संपर्क नहीं हो पाया हो, लेकिन चंद्रयान-2 का Orbiter अपना काम ठीक तरह से कर रहा है. और चंद्रमा से जुड़ी अहम जानकारियां लगातार पृथ्वी पर भेज रहा है. आज आपको ISRO द्वारा जारी की गई चंद्रमा की सतह की तस्वीरों को देखना चाहिए .

ये तस्वीरें चंद्रयान-2 के Orbiter में लगे High Resolution Camera से ली गई हैं. ISRO ने पहली बार चंद्रयान-2 मिशन में OHRC यानी Orbiter High Resolution Camera जैसी हाईटेक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. ISRO का दावा है कि इस तकनीक की मदद से चंद्रमा की सतह की अब तक की सबसे High Resolution तस्वीरें खींची गई हैं.

ये Camera चंद्रमा की सतह पर 0 दशमलव 3 मीटर तक की तस्वीर ले सकता है. इन तस्वीरों में चंद्रमा की सतह पर छोटे और बड़े गड्ढों को देखा जा सकता है. ये तस्वीरें 5 सितंबर को सुबह 4 बजकर 38 मिनट पर खींची गई थी. जिस वक्त Orbiter द्वारा ये तस्वीरें खींची गईं, उस वक्त चंद्रमा की सतह से उसकी दूरी 100 किलोमीटर की थी .

ये तस्वीरें चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में स्थित. बोगुस्लास्की ई क्रेटर और उसके आसपास के हिस्से की हैं . इस क्रेटर का व्यास 14 किलोमीटर और गहराई 3 किलोमीटर है . इस क्रेटर का नाम जर्मनी के खगोलशास्त्री...पालोन एच लुडविग वॉन बोगुस्लास्की के नाम पर रखा गया है. 2 हजार 379 किलो का चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर अगले साढ़े सात वर्षों तक चंद्रमा की कक्षा का परिक्रमा करता रहेगा .

इन तस्वीरों के अलावा Orbiter में मौजूद आठ पेलोड चंद्रमा की सतह पर मौजूद तत्वों को लेकर भी कई सूचनाएं भेज रहे हैं . Orbiter के पेलोड ने अपनी जांच में चंद्रमा की मिट्टी में मौजूद कणों के बारे में पता लगाया है . Orbiter ने चंद्रमा पर सोडियम, कैल्शियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, टाइटेनियम और आयरन की मौजूदगी से जुड़ी जानकारियां भी इकठ्ठा की हैं .

इसके अलावा ये माना जा रहा है कि आने वाले वर्षों में Orbiter हीलियम-3 से जुड़ी हुई जानकारियां भी एकत्रित करेगा . वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा पर हीलियम-3 के बड़े भंडार हो सकते हैं . धरती पर फिलहाल हीलियम-3 की मात्रा काफी कम है . हीलियम-3 काफी महंगा खनिज होता है और इसका इस्तेमाल परमाणु ऊर्जा बनाने में किया जा सकता है .

वैज्ञानिकों के मुताबिक परमाणु रिएक्टरों में हीलियम-3 के इस्तेमाल से रेडियोएक्टिव कचरा पैदा नहीं होगा . इससे आने वाले कई वर्षों तक पृथ्वी की ऊर्जा से जुड़ी जरुरतों को पूरा किया जा सकता है . 1 टन हीलियम-3 की कीमत लगभग 35 हजार करोड़ रुपये है . ऐसा अनुमान है कि चंद्रमा पर 2.5 लाख टन हीलियम का भंडार है .

जिसकी कीमत लगभग 87 लाख करोड़ रुपये है . आज आपको ये भी जानना चाहिए कि किस तरह 'चांद' शब्द अब NASA की Dictionary में भी जुड़ चुका है . हर वर्ष 4 अक्टूबर से 10 अक्टूबर तक पूरा विश्व World Space Week मनाता है . NASA ने भी World Space Week के मौके पर एक Tweet किया .

इस Tweet में NASA ने चंद्रमा के बारे में लिखने के लिए स्पेनिश शब्द Luna, फ्रेंच शब्द Lune और भारतीय शब्द 'चांद' का प्रयोग किया . NASA ने अपने Tweet में लिखा...कि '' Luna. Lune. Chaand. . आप अपनी भाषा में चंद्रमा को किस नाम से बुलाते हैं . इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप चंद्रमा को किस नाम से बुलाते हैं, क्योंकि हम सभी एक जैसे चांद को ही देखते हैं . ये वो जगह है, जहां हम वर्ष 2024 तक अंतरिक्ष यात्रियों को भेज रहे हैं .''

यानी आप ये कह सकते हैं कि NASA के वैज्ञानिकों के लिए भी 'चांद' अब आम बोलचाल का शब्द है.

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