ZEE जानकारी: बिना दिमाग पर जोर दिए समझिए क्या है Secular और Secularism की परिभाषा
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ZEE जानकारी: बिना दिमाग पर जोर दिए समझिए क्या है Secular और Secularism की परिभाषा

संविधान सभा की चर्चाओं से ये बात निकल कर आ रही है... SECULAR शब्द पर Confusion संविधान सभा में भी था . 17 अक्टूबर 1949 को संविधान सभा में संविधान की प्रस्तावना पर यानी PREAMBLE पर दिन पर बहस हुई थी... 

ZEE जानकारी: बिना दिमाग पर जोर दिए समझिए क्या है Secular और Secularism की परिभाषा

नागरिकता कानून के समर्थन में आज बीजेपी ने कोलकाता में एक रैली की.तो देश की राजधानी दिल्ली में कांग्रेस के नेताओं ने राजघाट पर सत्य़ाग्रह किया. यानी आज भी दिल्ली से लेकर कोलकाता तक ये कानून चर्चा में रहा है. कोलकाता रैली में बीजेपी ने राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर तुष्टीकरण का आरोप लगाया. तो दिल्ली में कांग्रेस के नेताओं ने दावा किया कि वो नागरिकता कानून के मुद्दे पर देश को जागृत कर रहे हैं. जिन अफवाहों के दम पर इन मुसलमानों को रोज़ी रोटी कमाने से रोका जा रहा है. उन अफवाहों को इस्लाम में भी पाप का दर्जा हासिल है. इस्लाम में अफवाह फैलाना बहुत बड़ा गुनाह है. क्योंकि इससे किसी निर्दोष की जान भी जा सकती है.

इस्लाम के मुताबिक मुसलमानों को ऐसी किसी भी खबर पर ध्यान नहीं देना चाहिए. जो अफवाहों पर आधारित हो. इस्लाम में अफवाह और झूठ फैलाने वालों को कड़ी सज़ा देने का प्रावधान भी है . इस्लामिक धर्मगुरुओं के मुताबिक... कोई भी तथ्य सूरज की तरह साफ, स्पष्ट और सच्चा होना चाहिए. लेकिन हमारे देश में अफवाहों के दम पर इस्लाम के अनुयायियों को भड़काया जा रहा है और उनसे हिंसा कराई जा रही है.

इस हिंसा ने कैसे देश के कई मुसलमानों को पाप का भागीदार बना दिया है. अफवाह और खौफ के नाम पर इन्हें कैसे भड़काया जा रहा है. ये आज आपको राजधानी दिल्ली में काम करने वाले कुछ मुसलमानों से ही जानना चाहिए .

अब हम भारत के संविधान कि प्रस्तावना पर चर्चा करेंगे. आज Congress पार्टी नें Mahatma Gandhi के समाधि स्थल Rajghat पर राष्ट्रीय एकता बनाए रखने के लिए सत्याग्रह किया . Priyanka Wadra ने संविधान कि प्रस्तावना यानी Preamble पढ़ा. आइए पहले Congress के सत्याग्रह को देखिए .

हम भी आज संविधान कि प्रस्तावना के हवाले से धर्मनिरपेक्षता पर बात करेंगे .हमारा प्रश्न है कि धर्मनिरपेक्षता भारत में किसकी जिम्मेदारी है ? क्या भारत धर्मनिरपेक्ष हो सकता है ? क्या Secularism का अर्थ धर्मनिरपेक्षता है ? 1950 में हमारे संविधान में Secularism शब्द को क्यों नहीं जोड़ा गया था ? संविधान के 42वें संशोधन के बाद 1977 से भारत का संविधान Secular हो गया था.... पर क्या भारत Secular हो पाया था.... आज इन विषयों पर विस्तार से चर्चा करेंगे. और इस चर्चा को आगे बढ़ाकर मैं उस मानसिकता का शांतिपूर्ण विरोध कर रहा हूं.

जिस मानसिकता ने पिछले एक हफ्ते में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करते हुए देश में हिंसा की आग फैलाई है. आज हम इन विषयों पर विस्तार से चर्चा इसलिए भी करेंगे. क्योंकि संवैधानिक तौर पर भारत एक Secular राष्ट्र है... क्योंकि जब राष्ट्र Secular होता है तब सरकार और RELIGION के बीच कोई रिश्ता नहीं होता.

हम आपको बता दे कि Secular शब्द यूरोप की देन है. यूरोप में RELIGION और सरकार को अलग किया गया था. ताकि साम्प्रदायिक झगड़े बंद हो सकें और तथ्य और शोध की परंपरा को पनपने का मौका मिल सके...FRANCE ऐसा ही एक SECULAR देश है . फ्रांस कि सरकार किसी भी पंथ के पक्ष या विपक्ष में कोई काम कभी नहीं करती . FRANCE मे पंथ के आधार पर कोई कानून बनाना रूढ़ी वादी माना जाता है . हम भी आज Secularism के इसी अर्थ को आधार मानते हुए... SECULAR शब्द का विश्लेषण करेंगे....

आपने ध्यान दिया होगा कि हमने अभी तक RELIGION शब्द का प्रयोग किया है. सबसे पहले ये समझिये कि RELIGION और धर्म एक नहीं हैं.  RELIGION को अक्सर आप धर्म के नाम से जानते पहचानते आए हैं. पर ये सही नहीं है... धर्म शब्द भारतीय सभ्यता की देन है. और इसका अर्थ मानववादी है. वहीं RELIGION को हिंदी में पंथ के नाम से समझा जा सकता है. RELIGION में धर्म हो सकता है... पर RELIGION ही धर्म नहीं हो सकता है... RELIGION पश्चिम का दिया हुआ शब्द है... जो 4 तत्वों पर टिका है.... पहला तत्व एक पैगंबर होना चाहिए.

दूसरे एक पवित्र किताब का होना जरूरी है.. तीसरे एक पूजनीय स्थान भी होना चाहिए और चौथे एक पूजा पद्धति होनी चाहिए... जैसे ईसाईयत में एक Jesus Christ हैं... एक Bible है... एक Vatican City है.. और एक चर्च में मास यानी इबादत का तरीका है... ऐसे ही इस्लाम में एक मोहम्मद साहब हैं.. एक कुरान है... एक Mecca है और एक नमाज़ है... पर सनातन परंपरा.... जिसे हम हिंदुत्व के नाम से भी जानते हैं... इस परंपरा में एक पैगंबर कौन है ?, एक किताब कौन सी है ?... एक पवित्र स्थान कौन सा है... और एक पूजन पद्धति कौन सी है...सनातन परंपरा में अगर कोई एक पवित्र अवधारना है तो वो आत्मा है जो हर जीव में पाया जाता है .

यही वजह है कि पश्चिम के RELIGION को भारत के धर्म से जोड़ना एक गलती है... इन दो शब्दों में फर्क ना कर पाने की वजह से ही.. भारत में पंथ निरपेक्षता जिसे धर्म निरपेक्षता के नाम से पुकारा जाता है... उसकी सारी जिम्मेदारी हिंदुओं पर आ गई है... हिंदू तीज त्योहार को भारतीय संस्कृति से जोड़ दिया गया है... पर ईसाइयत और इस्लाम RELIGION बने रहे... हिंदुओं की जिम्मेदारी बन गई कि वो ईद-बकरीद और क्रिसमस मनाए पर बाकी सबको ये छूट थी कि वो अपने RELIGION की रक्षा के लिए जो चाहे वो कर सके... यानी जिन पंथों को आंतरिक सुधार की आवश्यकता थी..

उन्हें रूढिवादी बनाए रखना Secularism हो गया... सड़कों पर, ट्रेन में.. स्कूल, कॉलेज, दफ्तरों और कारखानों में.... नमाज़ पढ़ना, औरतों को बराबरी का दर्जा ना देना Secularism का आधार हो गया.. पर इस व्यवस्था पर प्रश्न उठाना COMMUNAL और कट्टरवादी हो गया..

आखिर Secularism की परिभाषा ऐसी क्यों हो गई... 1946 से 1949 के दौरान जब भारत का संविधान सभा.. संविधान बना रहा था... तब संविधान निर्माताओं का एक ही लक्ष्य था... भारत को आधुनिक लोकतंत्र बनाना... पर इस आधुनिक लोकतंत्र की परिकल्पना पश्चिमी मापदंड पर टिकी थी... इसलिए जब हम SECULAR शब्द के इस्तेमाल पर गौर करते हैं तो हमें पता चलता है कि के अर्थ में बड़ा कन्फ्युज़न है....

अगर मैं आपसे कहूं कि अंताक्षरी खेलने वाले SECUALR नहीं हैं... तो ये सुनकर आपको कैसा लगेगा... याद कीजिये अंताक्षरी की शुरुआत कैसे होती है... बैठे-बैठे क्या करें... करना है कुछ काम.. शुरु करो अंताक्षरी लेकर प्रभु का नाम... यहां प्रभु शब्द का इस्तेमाल हुआ है... इसलिए अंताक्षरी खेलने वाला सेक्युलर नहीं है... ये मैं नहीं कह रहा.

संविधान सभा की चर्चाओं से ये बात निकल कर आ रही है... SECULAR शब्द पर Confusion संविधान सभा में भी था . 17 अक्टूबर 1949 को संविधान सभा में संविधान की प्रस्तावना पर यानी PREAMBLE पर दिन पर बहस हुई थी... सभा के सदस्य H.V. KAMATH, SHIBBAN LAL SAKSENA और PANDIT GOVIND MALVIYA ने प्रस्तावित किया था... कि भारत के संविधान की प्रस्तावना ईश्वर का नाम लेकर शुरू किया जाए... क्योंकि भारत की जनता का ईश्वर में अटूट विश्वास है... KAMATH का ये प्रस्ताव पास नहीं हो पाया था... तर्क ये था की ईश्वर शब्द आधुनिक SECUALR लोकतांत्रिक संविधान का हिस्सा नहीं हो सकता.... यानी ईश्वर शव्द COMMUNAL और पुरातन साबित हो गया था .

इसी दिन सभा के सदस्य Brajeshwar Prasad ने संविधान की प्रस्तावना में SECULAR और SOCIALIST शब्दों को जोड़ने का प्रस्ताव दिया था... सभा ने इस प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया था... सभा में SECUALR शब्द को लेकर दो विरोधी विचारधाराएं थी... पहली विचारधारा के मुताबिक संविधान का ईश्वर से किसी किस्म का कोई लेना देना नहीं होना चाहिए... क्योंकि राष्ट्र में राष्ट्रवाद से बड़ा कोई पंथ नहीं हो सकता है .

सभा का मानना था कि भारतवासी एक ऐसी पहचान है.. जो किसी भी साम्प्रदायिक पहचान से बड़ी होनी चाहिए.... इसी सभा में 13 दिसंबर 1946 को भारत के दूसरे राष्ट्रपति और धर्म विशेषज्ञ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि राष्ट्रवाद किसी भी RELIGION से बड़ा है... और राष्ट्रवाद को बढ़ाने के लिए सरकार को RELIGION से अलग करना होगा... 1946 में ही... जीबी पंत ने भी कहा था STATE IS ABOVE ALL GODS. IT IS THE GOD OF GODS यानी सरकारी तंत्र हर ईश्वर से बड़ा है... वो भगवानों का भगवान है...

सभा के सदस्य तजामुल हुसैन ने तो यहां तक कहा था कि RELIGION की शिक्षा देने का अधिकार सिर्फ माता-पिता के पास होना चाहिए... और वो भी ये शिक्षा सिर्फ घर में दी जानी चाहिए... उनकी मांग थी किसी भी व्यक्ति को RELIGION संबंधी कपड़े.. SIGN या SYMBOL पहनने-ओढ़ने की छूट नहीं होने चाहिए...

दूसरी विचारधारा ये थी कि सरकार सारे पंथों का आदर करने वाली हो... और सबके प्रति समभाव रखे.... पर दोनों ही विचारधाराएं SECULAR शब्द को संविधान में जोड़ने के पक्ष में नहीं थीं... इसके तीन कारण थे...
1. अगर संविधान सेक्युलर होता तो पूजा करने की आज़ादी तो रहती... पर RELIGION के प्रसार की आज़ादी नहीं रहती...
2. अगर सरकार तंत्र सेक्युलर होगा तो फिर किसी भी आधार पर एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से अलग नहीं किया जा सकता.. यानी SC-ST, अल्पसंख्यक और आरक्षण जैसी व्यवस्थाओं के लिए समाज में कोई जगह नहीं बचती...
3. और सेक्युलर राष्ट्र में RELIGION आधारित PERSONAL LAW नहीं हो सकता था बल्की Uniform Civil Code का होना जरूरी था... <<PCR GFX OUT >>

DR. BR AMBEDKAR खुद चाहते थे कि भारत में यूनिफार्म सिविल कोड लागू हो पर सभा के सदस्य MOHD. ISMAIL SAHEB और MEHBOOB ALI BEGH ने यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध किया था... आरक्षण के मुद्दे पर भी RELIGION आधारित आरक्षण की मांग की गई थी... और SEPERATE ELECTORATE की भी मांग की गई थी...SEPERATE ELECTORATE का मतलब है कि चुनाव में एक अल्पसंख्यक को अल्पसंख्यक समाज ही चुन सकता था .आरक्षण के विरोध में मौलाना आज़ाद और बेगम रसूल थीं..

इसलिए पंथ आधारित मांग कमजोर पड़ गई . 25 मई 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस चर्चा को ये कहकर शांत कर दिया था कि सबको भूल जाना चाहिए कि भारत में कोई अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक है... भारत में एक ही समुदाय है और वो है भारतीयता...सरदार पटेल नें मानव धर्म की बात की थी . यहां ये समझना जरूरी है कि भारत पंथ निर्पेक्ष तो हो सकता है पर भारत धर्म निर्पेक्ष नही हो सकता. देश 3 दशकों तक भारत का संविधान Secular शब्द के बगैर काम करता रहा .

पर 1977 में आपातकाल के दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान का 42वें संशोधन किया और भारत सेक्युलर हो गया.... सरकार ने कुछ ही वर्षों में SECUALARISM का प्रमाण दे दिया... 1978 में एक 62 वर्षिय महिला शाह बानो ने अपने पति के खिलाफ एक केस कर दिया... शाह बानो के पती इंदौर के एक माने जाने वकील थे... उन्होंने शाहबानो को तलाक दे दिया था.

शाहबानो ने कोर्ट से अपने और अपने 5 बच्चों के भरण पोषण की मांग की थी... 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानों के पक्ष में निर्णय सुनाया... शाहबानो के पति को आदेश दिया... कि वो हर महीने 500 रुपये शाहबानों को देंगे.... शाहबानो के पति ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ बताया... मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी शाहबानो के पति के पक्ष में आ गया... देशभर में इस्लाम RELIGION खतरे में आ गया था... तब राजीव गांधी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पलट दिया... समाज के रूढ़िवादियों का पक्ष लेते हुए सरकार ने MUSLIM WOMEN PROTECTION ACT बनाया..

जिसके अंतर्गत शाहबानों जैसी महिलाओं को तलाक के बाद सिर्फ 3 महीने तक भरण-पोषण दिया जा सकता था. सरकार के इस कदम को जनता ने तुष्टिकरण की नीति से जोड़कर देखा. जब हिंदुओं में सरकार की छवि बिगड़ने लगी तो 1986 में ही राजीव गांधी सरकार ने रामलला के दर्शन के लिए बाबरी मस्जिद के ताले खुलवा दिए. तो एक तरफ सरकार एक गरीब महिला के खिलाफ हुई वहीं दूसरी तरफ मंदिर मस्जिद की राजनीति को भी बढ़ावा दिया... सांप्रदायिक आधार पर 1985 से ही देश में बंटवारा बढ़ता गया है..

आज देशभर में चल रहे नागरिक संशोधन कानून का विरोध भी वही लोग कर रहे हैं जो खुद को SECULAR कहते हैं . शाह बानो केस में Supreme Court के निर्णय को पलटने के विरेध में राजीव गांधी सरकार में मंत्री रहे आरिफ मोहम्मद खान ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.

आरिफ मोहम्मद खान अभी केरल के राज्यपाल हैं. आईए सुनते हैं नागरिक संशोधन कानून पर उनका क्या कहना है . अंत में हम ये कह सकते हैं कि साम्प्रदायिकता का DNA टेस्ट करना ज़रूरी है... क्योंकि हम SECULAR राष्ट्र हैं.... इसलिए तथ्यों और शोध के आधार पर साम्प्रदायिता का DNA टेस्ट करना हमारा अधिकार भी है और कर्तव्य भी है.... SECULAR राष्ट्र में किसी भी RELIGION का अध्ययन किया जा सकता है... और आने वाले समय में हम अल्पसंख्यक मानसिकता और साम्प्रदायिकता का DNA Test जारी रखेंगे.

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