कैसी सरहदें... कैसी मजबूरियां? वो 5 बातें जो हम नीरज चोपड़ा और अरशद नदीम की दोस्ती से सीख सकते हैं
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कैसी सरहदें... कैसी मजबूरियां? वो 5 बातें जो हम नीरज चोपड़ा और अरशद नदीम की दोस्ती से सीख सकते हैं

नीरज चोपड़ा और अरशद नदीम भले ही मैदान में एक दूसरे को हराने के लिए जी जान लगा देते हैं, लेकिन मैदान के बाहर उनकी दोस्ती की मिसालें दी जाती हैं, हम भी उनसे कुछ लाइफ लेसंस ले सकते हैं.

कैसी सरहदें... कैसी मजबूरियां? वो 5 बातें जो हम नीरज चोपड़ा और अरशद नदीम की दोस्ती से सीख सकते हैं

Neeraj Chopra and Arshad Nadeem Friendship: नीरज चोपड़ा और अरशद नदीम की दोस्ती आज के दौर में एक मिसाल बन गई है. ये दोनों सिर्फ कॉम्पेटिटर नहीं हैं, बल्कि अच्छे साथी भी हैं, लेकिन उनकी दोस्ती का जो पहलू हमें सबसे ज्यादा प्रेरणा देता है, वो है उनका एक-दूसरे के प्रति सम्मान और सपोर्ट. आइए जानते हैं वो ऐसी 5 बातें जो हम इस अनोखी दोस्ती से सीख सकते हैं.

नीरज-अरशद की दोस्ती क्या सिखाती है?

1. कॉम्पिटिशन से परे दोस्ती

नीरज चोपड़ा और अरशद नदीम, दोनों जेवलिन थ्रो के सुपरस्टार हैं और अक्सर इंटरनेशनल इवेंट में एक-दूसरे के खिलाफ खेलते हैं। इसके बावजूद उनकी दोस्ती ये दिखाती है कि खेल में कॉम्पिटिशन और पर्सनल रेलिशन अलग-अलग चीजें हैं. वो एक-दूसरे के परफॉरमेंस की तारीफ करते हैं और खुले दिल से एक-दूसरे को सपोर्ट करते हैं. ये सिखाता है कि प्रतिस्पर्धा सिर्फ खेल का हिस्सा है, लेकिन इंसानियत और दोस्ती उससे कहीं ज्यादा अहम है.

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2. बुरे वक्त में साथ देना

जब भी एक खिलाड़ी को मुश्किल वक्त का सामना करना पड़ता है, तब दूसरा उसे हौसलाअफजाई करने के लिए तैयार रहता है. चाहे वह चोट हो या किसी इवेंट में नाकामी, नीरज और अरशद ने एक-दूसरे का साथ दिया है. ये हमें सिखाता है कि सच्चे दोस्त वे होते हैं जो मुश्किल वक्त में भी आपके साथ खड़े रहते हैं.

3. कैसी सरहदें... कैसी मजबूरियां?

नीरज चोपड़ा भारत से हैं और अरशद नदीम पाकिस्तान से. दोनों मुल्कों के बीच राजनीतिक तनाव हो सकता है, लेकिन उनकी दोस्ती यह साबित करती है कि निजी रिश्ते इन रुकावटों से परे हो सकते हैं. ये एक स्ट्रॉन्ग मैसेज है कि खेल और इंसानियत के जरिए से हम कल्चरल और पॉलिटिकल डिफ को भी पार कर सकते हैं.

4. विनम्रता और आदर

नीरज और अरशद दोनों ही विनम्र और सम्मानित खिलाड़ी हैं. उनकी दोस्ती में आपसी आदर और सम्मान का भाव देखने लाय है। चाहे मैदान पर हों या मैदान के बाहर, उन्होंने कभी एक-दूसरे के प्रति गलत भावना नहीं दिखाई. उनकी ये खासियत हमें सिखाती है कि विनम्रता और आदर के बिना कोई भी रिश्ता लंबे समय तक नहीं चल सकता.

5. मेडल जीतना ही कामयाबी नहीं

नीरज और अरशद की दोस्ती हमें सिखाती है कि कामयबी सिर्फ मेडल जीतने में नहीं है. असली सफलता तब है जब आप अपने साथियों की सफलता में भी खुशी महसूस कर सकें. उन्होंने ये साबित किया है कि दोस्ती और सपोर्ट की अहमियत मेडल या ट्रॉफी से कहीं बढ़कर है. ये हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपनी जीत और हार के बीच संतुलन बनाकर दूसरों की कामयाबियों का आनंद लें.

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