रोचक ट्रेंड: इस राज्य में जिस पार्टी को मिली सत्ता, उसे लोकसभा चुनाव में मिली निराशा
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रोचक ट्रेंड: इस राज्य में जिस पार्टी को मिली सत्ता, उसे लोकसभा चुनाव में मिली निराशा

इस राज्य के वोटरों के मिजाज को भांपना बेहद मुश्किल है. 3 बार हुए लोकसभा चुनावों का परिणाम बताता है कि जिस पार्टी की सत्ता प्रदेश में रही है उसके खिलाफ जनादेश गया है.

क्या इस बार भी उत्तराखंड की बीजेपी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर दिखाई देगी? (फाइल फोटो)

देहरादून: क्या इस बार भी राज्य की बीजेपी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर दिखाई देगी? ये सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि राज्य गठन के बाद प्रदेश में अब तक जो भी चुनाव हुए है उसमें जिस भी पार्टी की सरकार रही है. उसके प्रत्यशियों को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा है. 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड 27वां राज्य बना. 70 विधानसभा में 5 लोकसभा सीटों वाले छोटे से हिलामयी राज्य की अपनी विषमताएं है.

उत्तराखंड में वोटरों के मिजाज को भांपना बेहद मुश्किल है. उत्तराखंड में दो बार सीएम को चुनाव हारना पड़ा. इस बार वोटर किसे पानी पिलाएंगे? ये देखना दिलचस्प होगा क्योंकि इस बार प्रदेश में बीजेपी की सरकार है और 3 बार हुए लोकसभा चुनावों का परिणाम बताता है कि जिस पार्टी की सत्ता प्रदेश में रही है उसके खिलाफ जनादेश गया है. 

2004 में कांग्रेस की राज्य में सरकार और बीजेपी की बल्ले-बल्ले
बात 2004 में हुए लोकसभा चुनाव की कर लेते है. प्रदेश में कांग्रेस सत्ता पर काबिज थी तो बीजपी तीन सीट पर जीतने में सफल रही जबकि कांग्रेस और सपा की झोली में एक-एक सीट आई. उस समय बीजेपी ने गढ़वाल सीट से बीसी खंडूड़ी, टिहरी से मानवेंद्र शाह और अल्मोड़ा से बच्ची सिंह रावत जीते जबकि नैनीताल से कांग्रेस के केसी बाबा और हरिद्वार की सीट सपा जीतने में सफल रही जहां से राजेन्द्र सिंह बॉडी को जीत मिली थी. 
  
2009 में हाथ ने कर दिया सभी को साफ
2009 लोकसभा चुनावों के दौरान प्रदेश में बीजेपी सत्ता में थी लेकिन पांचों सीट कांग्रेस जीत गई. गढ़वाल से सतपाल महाराज, टिहरी से विजय बहुगुणा, हरिद्वार हरीश रावत, अल्मोड़ा प्रदीप टम्टा और नैनीताल से केसी बाबा विजयी हुए. उस दौरान सत्ता में बीजेपी थी और मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी थे. लोकसभा परिणाम का इतना बड़ा असर हुआ कि बीजेपी को अपना सीएम बदलना पड़ा.

 

2014 में मोदी लहर सब उड़ गए 
2014 लोकसभा चुनाव में भी इसिहास दोहराया गया. तब सूबे में कांग्रेस की सरकार थी और पांचों सीट बीजेपी जीतने में कामयाब रही. मोदी लहर पर सवार होकर बीजेपी के पांचों प्रत्याशी रिकॉर्ड मतों से विजयी हो गए. इस चुनाव में बीजेपी ने 60 से ज्यादा विधानसभा में बढ़त बनाई थी. बीजेपी ने गढ़वाल सीट से बीसी खंडूड़ी, हरिद्वार ने रमेश पोखरियाल निशंक, नैनीताल से भगत सिंह कोश्यारी, टिहरी से माला राज्य लक्ष्मी शाह और अल्मोड़ा से अजय टम्टा जीतने में कामयाब रहे.

क्या जनता त्रिवेंद्र रावत के कार्यों पर मुहर लगाएगी
राज्य गठन के बाद प्रदेश में तीन बार लोकसभा चुनाव हुए और हर बार जनता ने राज्य सरकार के खिलाफ वोट दिया. चुनाव भले ही देश का हो लेकिन इसका सीधा असर प्रदेश की राजनीति पर पड़ता है. बीजेपी में अंदरखाने कई बड़े नेता ये मुराद पाले हैं कि अगर परिणाम पार्टी के पक्ष में नही रहा तो सीएम त्रिवेंद्र की नाकामी के तौर पर हाईकमान के सामने रखा जाएगा. यही नहीं लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद भी पहाड़ की राजनीति में उथल-पुथल मचना तय है. इस बार प्रदेश की जनता त्रिवेंद्र सरकार के कार्यों को भी तोलती है या नहीं, ये 23 मई को स्पष्ट हो जाएगा और इस चुनाव परिणाम भी सूबे के सीएम का भविष्य भी तय करेंगे.

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