भोपाल लोकसभा सीट के लिए BJP और कांग्रेस में छिड़ा है महासंग्राम, किसके सिर होगा जीत का ताज
Advertisement

भोपाल लोकसभा सीट के लिए BJP और कांग्रेस में छिड़ा है महासंग्राम, किसके सिर होगा जीत का ताज

 भोपाल लोकसभा सीट से जहां कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को टिकट दिया है तो वहीं भाजपा ने काफी उपापोह के बाद मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा को टिकट देकर प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है.

फाइल फोटो

नई दिल्लीः मध्य प्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट लोकसभा चुनाव 2019 में प्रदेश ही नहीं देश की सबसे हाई प्रोफाइल सीट बनकर उभरी है. जिसका सबसे बड़ा कारण है यहां के प्रत्याशी. भोपाल लोकसभा सीट से जहां कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को टिकट दिया है तो वहीं भाजपा ने काफी उपापोह के बाद मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा को टिकट देकर प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है. वहीं एक के बाद एक साध्वी प्रज्ञा के विवादित बयानों के चलते हर भोपाल लोकसभा सीट चर्चा का विषय बन गई है. बता दें भोपाल लोकसभा सीट पर पिछले 30 सालों से भाजपा का ही राज है, ऐसे में इस बार हिंदुत्व का चेहरा मानी जा रही साध्वी प्रज्ञा को टिकट देने का बीजेपी का फैसला क्या रंग लाता है यह तो 23 मई के बाद ही पता चलेगा.

भोपाल का इतिहास
11वीं शताब्दी में परमार राजा भोज ने भोपाल की स्थापना की थी, जिसके चलते कभी इसकी पहचान 'भोजपाल' के रूप में होती थी. इस दौरान भोजपाल की राजधानी धार होता था, लेकिन अब यह एक जिले के रूप में जाना जाता है और तब का भोजपाल अब भोपाल बन गया है और मध्य प्रदेश की राजधानी के रूप में जाना जाता है. नवाबों के शहर और झीलों की नगरी के नाम से मशहूर भोपाल में गौहर महल से लेकर ताल उल मस्जिद और मोती मस्जिद यहां की विरासत और संस्कृति के शानदार नमूने हैं.

राजनीतिक पृष्ठभूमि
1957 में यहां पहली बार चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस की मैमुना सुल्तान ने जीत दर्ज कराई और 1962 में दोबारा मैमुना सुल्तान भोपाल की सांसद चुनी गईं, लेकिन 1967 में यह सीट भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी के कब्जे में चली गई. 1971 में यहां कांग्रेस से पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने जीत दर्ज कराई तो 1977 में भारतीय लोकदल ने भोपाल में जीत हासिल की. 1980 में फिर शंकरदयाल शर्मा ने वापसी की और 1984 में भी यहां कांग्रेस ने ही कब्जा जमाए रखा.

भोपाल: चुनाव बाद भी BJP, कांग्रेस में घमासान जारी, EVM की रखवाली में 8-8 घंटे की चौकीदारी

1989 में पहली बार यहां भाजपा ने जीत हासिल की और फिर तब से लेकर अब तक इस सीट पर भाजपा का ही कब्जा है. 1989 में भाजपा के सुशीलचंद्र वर्मा ने भोपाल लोकसभा सीट पर कब्जा किया, जिसके बाद वह लगातार 1998 तक भोपाल के सांसद रहे. 1999 में भाजपा नेत्री उमा भारती ने जीत हासिल की. इसके बाद 2004 और 2009 में कैलाश जोशी तो 2014 में आलोक संजर ने भोपाल लोकसभा सीट पर कब्जा किया.

मतदाता संख्या
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2014 के चुनाव में भोपाल लोकसभा सीट पर 19,56,936 मतदाता थे. करीब चार लाख मुस्लिम, साढ़े तीन लाख ब्राह्मण, ढाई लाख कायस्थ, दो लाख अनुसूचित जाति-जनजाति, सवा लाख क्षत्रिय, इतने ही सिन्धी मतदाताओं को करना है. वहीं इनमें से 9,17,932 महिला मतदाता और 10,39,004 पुरूष मतदाता थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां कुल 57.75 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था.

मध्य प्रदेश में 8 लोकसभा सीटों के लिए कल डाले जाएंगे वोट, भोपाल पर टिकी हैं सबकी निगाहें

इस लोकसभा चुनाव में भोपाल बेहद संवेदनशील तथा अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की निगाहों में हैं. कांग्रेसी दिग्गज दिग्विजय सिंह और हिन्दू आतंकवाद के लपेटे में लंबे समय से विवादों और सुर्खियों में रही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बीच मुकाबला दो विचारधाराओं से भी बढ़कर हिन्दुत्व पर केन्द्रित होकर दिलचस्प मोड़ पर आ खड़ा हुआ है. दोनों राजपूत हैं लेकिन हिन्दुत्व छोड़ सारे मुद्दे गौण हैं. भोपाल लोकसभा सीट के अंतर्गत 8 विधानसभाएं आती हैं, जिसमें भोपाल उत्तर, भोपाल दक्षिण-पश्चिम,भोपाल मध्य में कांग्रेस तो नरेला,गोविन्दपुरा, हुजूर, सीहोर, बैरसिया में भाजपा काबिज है.

Trending news