साक्षी महाराज के सुर पड़े नरम, 'उन्नाव से टिकट नहीं भी मिला तो पार्टी के लिए प्रचार करूंगा'
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साक्षी महाराज के सुर पड़े नरम, 'उन्नाव से टिकट नहीं भी मिला तो पार्टी के लिए प्रचार करूंगा'

साक्षी महाराज ने कहा कि उन्होंने महेंद्रनाथ पांडेय को लिखे पत्र में कोई धमकी नहीं दी है. साक्षी महाराज ने कहा, 'मैंने पार्टी को कोई चेतावनी नहीं दी है. मैं पार्टी के साथ हूं. पूरा भरोसा है कि उन्नाव से मुझे ही टिकट मिलेगा. अगर मुझे यहां से टिकट नहीं भी मिला तो भी मैं लोकसभा चुनाव 2019 (LokSabha Election 2019) में पार्टी के लिए प्रचार करुंगा.'

उन्‍नाव से बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने अपने बयान पर सफाई दी है.

नई दिल्‍ली : भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद साक्षी महाराज ने पार्टी के प्रदेश अध्‍यक्ष महेंद्रनाथ पांडेय को लिखे पत्र पर सफाई दी है. न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत में साक्षी महाराज ने कहा कि उन्होंने महेंद्रनाथ पांडेय को लिखे पत्र में कोई धमकी नहीं दी है. साक्षी महाराज ने कहा, 'मैंने पार्टी को कोई चेतावनी नहीं दी है. मैं पार्टी के साथ हूं. पूरा भरोसा है कि उन्नाव से मुझे ही टिकट मिलेगा. अगर मुझे यहां से टिकट नहीं भी मिला तो भी मैं लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Elections 2019) में पार्टी के लिए प्रचार करुंगा.'

इससे पहले मंगलवार को बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी प्रदेश अध्‍यक्ष महेंद्रनाथ पांडेय को पत्र लिखा था. इसमें साक्षी महाराज ने लिखा था, 'उन्‍नाव में बीजेपी को मैंने खड़ा किया है. मेहनत और पैसा लगाकर इस क्षेत्र में मैंने मेहनत की है.' इतना ही नहीं उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा था, 'अगर मुझे यहां से टिकट नहीं मिला तो पार्टी को इसके परिणाम भुगतने होंगे.'

यूपी से है सभी दलों को उम्मीद
मालूम हो कि लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने के साथ ही सियासी लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हलचलें तेज होना बस समय की बात है. आमतौर पर दिल्ली का गद्दीनशीं तय करने वाले इस सूबे में खासकर भाजपा की साख दांव पर होगी, वहीं सपा—बसपा गठबंधन के लिये भी यह चुनाव किसी लिटमस परीक्षण से कम नहीं होगा. निर्वाचन आयोग द्वारा जारी कार्यक्रम के मुताबिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सात चरणों में लोकसभा चुनाव होगा. तेज गर्मी में हो रहे इस चुनाव में प्रदेश का सियासी पारा चरम पर पहुंचने की पूरी सम्भावना है.

वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 71 और उसके सहयोगी अपना दल ने दो सीटें जीती थीं. खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इस बार 73 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है. ऐसे में भाजपा की साख सबसे ज्यादा दांव पर है. यह लोकसभा चुनाव सपा और बसपा गठबंधन के भविष्य को भी तय करेगा. कभी घोर प्रतिद्वंद्वी रहे सपा और बसपा ने अपने तमाम गिले—शिकवे भुलाकर इस चुनाव में भाजपा को हराने के लिये हाथ मिलाया है.

प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एम. वेंकटेश्वर लू ने रविवार को बताया कि प्रदेश में सात चरणों में चुनाव होंगे. इसके तहत 11, 18, 23 और 29 अप्रैल तथा 6, 12 और 19 मई को मतदान होगा. मतों की गिनती 23 मई को होगी. चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही प्रदेश में आदर्श आचार संहिता भी लागू हो गयी है. उन्होंने बताया कि प्रदेश में 7.79 करोड़ पुरुष, 6.61 करोड़ महिला तथा 8374 अन्य समेत 14.4 करोड़ मतदाता हैं. मतदान के लिये कुल 91709 मतदान केन्द्र बनाये जाएंगे. लू ने बताया कि लोकसभा चुनाव के साथ ही निघासन विधानसभा का उपचुनाव भी कराया जाएगा.

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत भाजपा के 71 सांसद जीते थे. इसके अलावा सपा को पांच और कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं. वहीं, बसपा का खाता भी नहीं खुल सका था. लोकसभा चुनाव में अभूतपूर्व सफलता पाने के बाद वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने जबर्दस्त प्रदर्शन करते हुए सत्ता पर कब्जा किया था. हालांकि उसके बाद पिछले साल प्रदेश के गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा तथा नूरपुर विधानसभा के उपचुनाव में विपक्ष ने भाजपा को शिकस्त देकर अपने लिये सम्भावनाएं जगायी थीं. अब यह देखना होगा कि सपा—बसपा—रालोद का गठबंधन भाजपा को और नुकसान पहुंचा पाता है या नहीं.

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देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपने दम पर चुनाव लड़ने जा रही है. प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाये जाने के बाद वह आशा और उत्साह से लबरेज है. अभी तक खुद को सिर्फ अमेठी और रायबरेली तक सीमित रखने वाली प्रियंका का करिश्मा कांग्रेस को कहां तक ले जाता है, यह इस चुनाव से तय हो जाएगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले कुछ महीनों से उत्तर प्रदेश और अपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी पर खास ध्यान दे रहे हैं. पार्टी का विशेष जोर युवा मतदाताओं को भी आकर्षित करने पर है. 'मेरा पहला वोट मोदी को' अभियान चला रही भाजपा को उम्मीद है कि युवा मतदाता वर्ष 2014 जैसा प्रदर्शन दोहराने में उसकी मदद करेंगे.

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