ऐसा माना जाता है कि बैरकपुर लोकसभा सीट पर राजनेताओं की किस्मत का फैसला जूट मिलों में काम करने वाले मजदूर तय करते हैं. इस कहानी को सच करती है 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम.
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नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की बैरकपुर लोकसभा सीट का समीकरण हर चुनावों में खास रहता है. अंग्रेजों से भारत की आजादी की गवाह बनी ये सीट इन दिनों जूट मिल के मजदूरों की कहानी लिख रही है. औद्योगिक इलाका होने की वजह से बैरकपुर संसदीय क्षेत्र में आधी से ज्यादा आबादी कामकाजी है. इसमें में भी हिंदी बोलने वालों की हिस्सेदारी तकरीबन 35 फीसदी ही है. इस सीट पर शुरुआत से ही माकपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला रहा है, लेकिन ज्यादातर माकपा ही इस सीट पर फतेह करने में कामयाब हो पाती है.
जूट मिलों के मजदूर करते हैं नेताओं की किस्मत का फैसला
ऐसा माना जाता है कि बैरकपुर लोकसभा सीट पर राजनेताओं की किस्मत का फैसला जूट मिलों में काम करने वाले मजदूर तय करते हैं. इस कहानी को सच करती है 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम. 2014 के चुनावों में माकपा ने 1989 में कानपुर से सांसद रहीं सुभाषिनी अली को दिनेश त्रिवेदी के खिलाफ मैदान में उतारा था. लेकिन सुभाषिनी अली को शिकस्त का सामना करना पड़ा था.
बंकीम चंद्र चट्टोपाध्याय जैसे कई लोग जन्मे हैं यहां
मुगल काल में आनंद मंगल लिखने वाले बांग्ला के सुप्रसिद्ध लेखक भारत चंद्र राय गुनाकर बैरकपुर के मुलाजोर में रहते थे. विभिन्न धार्मिक गीतों के रचयिता राम प्रसाद सेन हालीसहर में पैदा हुए थे. जबकि भारतीय राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' के लेखक बंकीम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म नैहाटी में हुआ था. इस महत्व को देखते हुए यहां नेता जी बोस ओपन यूनिवर्सिटी स्थापित की गई.