बीजेपी ने गिरिडीह की सीट आजसू के लिए छोड़ी है तो वहीं, महागठबंधन में जेएमएम के खाते में गिरिडीह की सीट गई है.
Trending Photos
गिरिडीह: 2000 में बिहार से अलग होने के बाद झारखंड नया राज्य बना और कई राजनीतिक समीकरण भी बदले. फिलहाल देशभर में 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर केंद्र और विपक्ष दोनों ही अपनी तैयारियों में जुट गए हैं. एक ओर जहां सत्ता पर काबिज बीजेपी 2014 की शानदार जीत को दोहराना चाहती है तो वहीं, दूसरी ओर विपक्ष भी बीजेपी को केंद्र से हटाने में किसी तरह की कसर नहीं छोड़ना चाहता है. जिसके चलते केंद्र से लेकर राज्यों तक की राजनीति गरमाई हुई है.
बात अगर गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र की करें तो गिरिडीह का राजनीति के मामले में समृद्ध इतिहास रहा है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वेरी दुबे गिरिडीह से सांसद रह चुके हैं. झारखंड को अलग राज्य बनाने के लिए हुए आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले विनोद बिहारी महतो भी यहां से सांसद बने. गिरिडीह से 1962 में स्वतंत्र पार्टी के बटेश्वर सिंह पहली बार सांसद बने.
1971 में कांग्रेस के ही टिकट पर चपलेंदू भट्टाचार्य यहां से जीतने में कामयाब हुए. 1977 में जनता पार्टी रामदास सिंह तो 1980 में कांग्रेस के टिकट पर बिंदेश्वरी दूबे और 1984 में कांग्रेस के ही टिकट पर सरफराज अहमद जीतने में कामयाब हुए. 1989 में इस सीट पर बीजेपी का खाता खुला लेकिन 1991 में यह सीट झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास चली गई और उसके टिकट पर बिनोद बिहारी महतो जीते.
इसके बाद बीजेपी के रविंद्र कुमार पांडेय ने लगातार तीन बार 1996, 1998 और 1999 का चुनाव जीते. 2004 में कांग्रेस के टेकलाल महतो जीतने में कामयाब हुए. इसके बाद फिर बीजेपी के रविंद्र कुमार पांडेय लगातार दो चुनाव 2009 और 2014 का चुनाव जीते हैं. खास बात यह है कि इस बार गिरिडीह में ना कांग्रेस और ना ही बीजेपी मैदान में है.
बीजेपी ने गिरिडीह की सीट आजसू के लिए छोड़ी है तो वहीं, महागठबंधन में जेएमएम के खाते में गिरिडीह की सीट गई है. देखना दिलचस्प होगा कि यहां कि लड़ाई 2019 में कौन जीतने में कामयाब होता है.