लोकसभा चुनाव 2019: वाराणसी को आज भी है ‘काशी कला धाम’ का इंतजार
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लोकसभा चुनाव 2019: वाराणसी को आज भी है ‘काशी कला धाम’ का इंतजार

यह अजब विडंबना है कि भारत रत्न शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, भारत रत्न सितार वादक रवि शंकर, ठुमरी क्वीन कही जाने वाली पद्म विभूषण गिरिजा देवी, सिद्धेश्वरी देवी, महान तबला वादक पंडित अनोखेलाल, किशन महाराज, जैसे कलाकार देने वाले इस शहर में संगीत की अत्याधुनिक अकादमी ही नहीं है.

काशी कला धाम का इंतजार है वाराणसी को. फाइल फोटो

वाराणसी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पहली बार संसद भेजने वाली इस प्राचीन नगरी के कलाकारों को संगीत की पुरानी विरासत लौटने की उम्मीद बंधी थी लेकिन बनारस घराने के संगीत की शिक्षा से जुड़ा ‘काशी कला धाम’ का उनका सपना तमाम आश्वासनों के बावजूद आज तक अधूरा पड़ा है.

यह अजीब विडंबना है कि भारत रत्न शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, भारत रत्न सितार वादक रवि शंकर, ठुमरी क्वीन कही जाने वाली पद्म विभूषण गिरिजा देवी, सिद्धेश्वरी देवी, महान तबला वादक पंडित अनोखेलाल, किशन महाराज, जैसे कलाकार देने वाले इस शहर में संगीत की कोई अत्याधुनिक अकादमी ही नहीं है.

 

वाराणसी से मोदी के चुनाव जीतने के बाद संगीतकारों की मांग थी कि बनारस घराने की धरोहरों को सहेजने के लिये एक अत्याधुनिक अकादमी बनाई जाए. यूनेस्को ने 2015 में वाराणसी को ‘सिटीज आफ म्युजिक’ में शामिल किया. इसके बाद बनारस घराने के मशहूर गायकों ने वाराणसी नगर निगम के आला अधिकारियों से मिलकर ‘गुरु शिष्य परंपरा’ पर आधारित संगीत अकादमी ‘काशी कला धाम’ की स्थापना का प्रस्ताव रखा था.

तीन साल से अधिक हो गया लेकिन इस पर कोई काम नहीं हुआ है. उत्तर प्रदेश सरकार के सूत्रों ने बताया कि राज्य में अकादमी के संबंध में सारा काम हो चुका था और प्रस्ताव केंद्र को भेजा दिया गया लेकिन मामला वहीं लंबित पड़ा है. पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी के प्रस्तावक रहे पद्मभूषण छन्नूलाल मिश्रा ने वाराणसी से भाषा से बातचीत में कहा,‘‘ इसमें कोई शक नहीं कि मोदी जी ने बनारस का कायाकल्प कर दिया है. सफाई, बुनियादी ढांचा और गंगा की सफाई हर दिशा में काम हुआ है लेकिन बनारस के कलाकार चाहते हैं कि अब यहां जल्दी ही संगीत की अकादमी खुल जाए.’’ 

उन्होंने कहा,‘‘अगर ऐसी कोई अकादमी नहीं खुली तो बनारस का संगीत खत्म हो जाएगा. हो ही रहा है, जैसे 12 ठुमरियां होती है लेकिन आजकल कलाकार दो ही गाते हैं. ठुमरी, दादरा, होरी, चैती, ख्याल सीखने को बहुत कुछ है. गिरिजा देवी नहीं रहीं और हम 83 बरस के हो चुके हैं.’’ 

वहीं ख्याल गायकी के पुरोधा पद्मभूषण राजन मिश्रा ने कहा कि ‘काशी कला धाम’ के लिए दो साल पहले राज्य सरकार को सभी कलाकारों ने लिखित में भी ज्ञापन दिया था लेकिन अभी तक उस दिशा में कोई काम नहीं हुआ है. उन्होंने कहा ,‘‘काशी में पद्म सम्मान प्राप्त इतने कलाकार हैं और भारत रत्न भी इस नगरी ने दिये हैं लेकिन संगीत के लिये कोई अकादमी नहीं है. अगर होती तो पुराने कलाकारों की रिकार्डिंग और साज सुरक्षित रहते.’’ 

दो साल पहले उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की अनमोल शहनाइयां चोरी होने पर भी अकादमी का मसला उठा था. मिश्रा ने यह भी कहा कि शास्त्रीय संगीत को बचाने के लिये कलाकारों को कुछ सहूलियतें देना भी जरूरी है. पंडित मिश्रा ने कहा ,‘‘ मोदीजी ने बनारस के लिए बहुत काम किया और हमें उम्मीद है कि इस बार गौरवशाली बनारस घराने के संगीत और संगीतकारों के लिए वह कुछ करेंगे. अकादमी के अलावा शास्त्रीय संगीतकारों को सेवा कर, जीएसटी के दायरे से बाहर रखना, रेलयात्रा में रियायती टिकट , पेंशन वगैरह शुरू की जानी चाहिए.’’ 

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वाराणसी की फाइल फोटो.

कोलकाता में आईटीसी संगीत शोध अकादमी में फैकल्टी सदस्य रही गिरिजा देवी ने भाषा को उस समय दिये इंटरव्यू में कहा था, ‘‘अगर ऐसी अकादमी बनारस में होती तो मुझे कोलकाता जाना नहीं पड़ता.’’ गिरिजा देवी की बेटी सुधा दत्ता ने कहा ,‘‘मां की आखिरी इच्छा थी कि अपने जीते जी बनारस में अकादमी देख लेतीं. ऐसी अकादमी जिसमें बनारस के संगीतकारों की यादें रहें, गुरू शिष्य परंपरा रहे और बनारस का संगीत सिखाया जाए. मां की आत्मा अभी भी बनारस में है और उसकी वादियों में उनका संगीत गूंजता रहेगा तो उसे शांति मिलेगी.’’

वहीं गिरिजा देवी की शिष्या पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने कहा कि मोदी के सांसद बनने से मुख्यधारा की संस्थाओं का ध्यान पहली बार वाराणसी पर गया है. उन्होंने कहा ,‘‘काशी ऐसी नगरी है जो कभी राजनीतिक प्रश्रय पर निर्भर नहीं रही लेकिन बड़े कलाकारों के जाने के बाद जब निर्वात पैदा होने लगा था तब प्रधानमंत्री सांसद के रूप में इस शहर को मिले. उसके बाद से यहां के जमीनी स्तर के कलाकारों को भी राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंच मिल रहा है.’’ 

उन्होंने कहा ,‘‘ संगीत नाटक अकादमी ने कई स्कूल गोद लिये हैं जिनमें गुरू शिष्य परंपरा के आधार पर शास्त्रीय संगीत और वेदों की शिक्षा दी जा रही है. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र का एक केंद्र यहां खुल गया है और बनारस के संगीत के लिये काफी काम हो रहा है.’’

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