पूर्वी त्रिपुरा सीट पर अब तीसरे चरण में होगा मतदान, राज्य में BJP बनी बड़ी ताकत
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पूर्वी त्रिपुरा सीट पर अब तीसरे चरण में होगा मतदान, राज्य में BJP बनी बड़ी ताकत

पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की 60 सदस्यीय विधानसभा सीट में से 36 पर कब्जा जमाया था और 43.59 प्रतिशत मत हासिल किया था.

त्रिपुरा ईस्ट संसदीय सीट के लिए मतदान स्थगित कर दिया गया है.

अगरतला: त्रिपुरा ईस्ट संसदीय सीट के लिए मतदान स्थगित कर दिया गया है. यह घोषणा मंगलवार देर रात की गई. यहां मतदान दूसरे चरण के तहत 18 अप्रैल को होना था. एक अधिकारी ने कहा कि अब इस सीट के लिए मतदान तीसरे चरण में 23 अप्रैल को होगा. पूर्वोत्तर के इस राज्य की दूसरी लोकसभा सीट त्रिपुरा वेस्ट के लिए मतदान 11 अप्रैल को प्रथम चरण के तहत हो चुका है. 

त्रिपुरा में पारंपरिक रूप से सीधा या त्रिकोणीय मुकाबला होता है, लेकिन सात दशक में पहली बार यहां बहुध्रवीय चुनाव संग्राम होने के आसार है, क्योंकि सत्तारूढ़ पार्टी गत वर्ष हुए विधानसभा चुनाव के बाद एक बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभरी है. यहां की दो लोकसभा सीट में से एक पर चुनाव 11 अप्रैल को हो चुका है. 1952 के बाद से, वाम पार्टियों ने पूर्वी त्रिपुरा सीट पर 12 बार कब्जा जमाया है, जबकि कांग्रेस ने चार बार यहां से जीत दर्ज की है. मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की त्रिपुरा की जनजातीय और गैर जनजातीय, दोनों समुदायों में मजबूत पकड़ रही है. पार्टी वर्ष 1996 से लगातार इस जनजातीय सीट से जीत रही है.

पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की 60 सदस्यीय विधानसभा सीट में से 36 पर कब्जा जमाया था और 43.59 प्रतिशत मत हासिल किया था, जबकि इसकी सहयोगी आईपीएफटी ने 7.38 प्रतिशत के साथ आठ सीटों पर कब्जा जमाया था. वाम मोर्चे को मत तो 44.35 फीसदी मिले थे लेकिन सीट सिर्फ सोलह ही मिलीं. और, इस तरह 25 साल से जारी वाम मोर्चा शासन का समापन हुआ.

2014 के संसदीय चुनाव में माकपा ने यहां से 64 प्रतिशत, कांग्रेस ने 15.2 प्रतिशत, तृणमूल कांग्रेस ने 9.6 प्रतिशत, भाजपा ने 5.7 प्रतिशत और आईपीएफटी ने 1.1 प्रतिशत मत हासिल किए थे. यहां के अधिकांश कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के भाजपा में शामिल होने और वाम पार्टी के आधार खोने के बाद अब राज्य की राजनीतिक दशा में अभूतपूर्व बदलाव आया है. त्रिपुरा की कुल चालीस लाख की आबादी में आदिवासी 31 प्रतिशत हैं. जनजातीय और जनजातीय आधारित पार्टियों ने हमेशा त्रिपुरा की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

राजनीतिक विश्लेषणकर्ता संजीव देब महसूस करते हैं कि कांग्रेस लोकसभा चुनावों में अपनी स्थिति अच्छा करेगी, लेकिन भाजपा यहां मजबूत स्थिति में बनी रहेगी. जनजातीय आधारित आईपीएफटी ने विधानसभा चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित जीत दिलाने में सहयोग दिया था लेकिन इस बार दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं. चुनाव विशेषज्ञ सुभाष दास का मानना है कि अगर लोकसभा चुनाव निष्पक्ष हुए तो त्रिपुरा पूर्व से माकपा और कांग्रेस को अच्छा मत प्रतिशत प्राप्त होगा.

भाजपा की अपील को ठुकराते हुए आईपीएफटी ने त्रिपुरा की दोनों लोकसभा सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. आईपीएफटी अध्यक्ष और राजस्व मंत्री नरेंद्र चंद्र देबबर्मा ने कहा, "हम जनजातीय राज्य की अपनी मांग के लिए चुनाव लड़ रहे हैं." सभी राजनीतिक पार्टियों भाजपा, माकपा और कांग्रेस ने आईपीएफटी की इस मांग का विरोध किया है. त्रिपुरा पूर्व सीट से 10 उम्मीदवार चुनाव मैदान में है, जिसमें दो महिलाएं भी शामिल है. तीन मुख्य प्रत्याशी माकपा के मौजूदा सांसद और जनजातीय नेता जितेंद्र चौधरी, भाजपा की तरफ से रेबाती त्रिपुरा और कांग्रेस की महाराज कुमारी प्रज्ञा देब बर्मन हैं.

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