जमशेदपुर लोकसभा सीट: 1984 के बाद कांग्रेस ने कभी नहीं दर्ज की जीत, होगी कड़ी टक्कर!
दूसरी ओर विपक्ष भी बीजेपी को केंद्र से हटाने में किसी तरह की कसर नहीं छोड़ना चाहता है. जिसके चलते केंद्र से लेकर राज्यों तक की राजनीति गरमाई हुई है.
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जमशेदपुर: 2000 में बिहार से अलग होने के बाद रांची, झारखंड की राजधानी बनी. देशभर में 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर केंद्र और विपक्ष दोनों ही अपनी तैयारियों में जुट गए हैं. एक ओर जहां सत्ता पर काबिज बीजेपी 2014 की शानदार जीत को दोहराना चाहती है तो वहीं, दूसरी ओर विपक्ष भी बीजेपी को केंद्र से हटाने में किसी तरह की कसर नहीं छोड़ना चाहता है. जिसके चलते केंद्र से लेकर राज्यों तक की राजनीति गरमाई हुई है.
वहीं, अगर झारखंड में लोकसभा चुनाव की बात करें तो 2014 में सभी सीटें जीतने के बाद बीजेपी इसे दोहराने के लिए तैयारियों में जुट गई है. जमशेदपुर की स्थापना को व्यवसायी जमशेदजी टाटा के नाम पर की गई है. 1907 में टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी (टिस्को) की स्थापना से इस शहर की बुनियाद पड़ी. इससे पहले यह साकची नामक एक आदिवासी गांव हुआ करता था.
जमशेदपुर का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है और यह झारखंड के सबसे मुख्य शहरों में एक माना जाता है. अगर लोकसभा चुनाव की बात करें तो 2000 में बिहार से अलग होने के बाद बीजेपी और जेएमएम ने सबसे अधिक जीत दर्ज की है. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के विद्युत बरण महतो ने 464144 वोट पाकर जीत दर्ज की. वहीं झारखंड विकास मोर्चा के अजय कुमार को 364270 वोट मिले.
2009 लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी से अर्जुन मुंडा ने चुनाव लड़ा और 319616 वोट पाकर सांसद बने. बीजेपी के बाद जेएमएम के सुमन महतो को सबसे अधिक 199956 वोट मिले. जमशेदपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस का इतिहास कुछ खास अच्छा नहीं रहा है. आखिरी बार 1984 में कांग्रेस ने जमशेदपुर से जीत दर्ज की थी.
बीजेपी की यही कोशिश होगी कि 2014 के रिकॉर्ड मतों से दर्ज की गई जीत को दोहराया जाए तो वहीं कांग्रेस हर हाल में अपनी खोई जमीन पाने की कोशिश करेगी. दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के बीच जेएमएम और जेविएम मजबूत पार्टियां हैं. अब देखना यह होगा कि आखिर कौन जमशेदपुर में 2019 में कमाल करेगा.