मध्य प्रदेश : कमलनाथ सरकार की कमजोर कड़ी तलाश रही बीजेपी, कांग्रेस भी निकाल रही काट
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मध्य प्रदेश : कमलनाथ सरकार की कमजोर कड़ी तलाश रही बीजेपी, कांग्रेस भी निकाल रही काट

लोकसभा चुनाव के नतीजे से पहले आए एग्जिट पोल के रुझानों ने मध्य प्रदेश की सियासत में हलचल पैदा कर दी है. 

राज्य विधानसभा में कांग्रेस के पास बहुमत नहीं है.

 

भोपाल: लोकसभा चुनाव के नतीजे से पहले आए एग्जिट पोल के रुझानों ने मध्य प्रदेश की सियासत में हलचल पैदा कर दी है. निर्दलीय और दूसरे दलों के सहयोग से चल रही कमलनाथ सरकार की कमजोर कड़ी तलाशने के मकसद से बीजेपी ने विधानसभा का सत्र बुलाने की मांग कर डाली है.

राज्य विधानसभा में कांग्रेस के पास बहुमत नहीं है. 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं. सरकार चार निर्दलीयों, बसपा के दो और सपा के एक विधायक के समर्थन से चल रही है. बीजेपी के पास 109 विधायक हैं. वर्तमान में कांग्रेस को 121 विधायकों का समर्थन हासिल है. कांग्रेस को समर्थन देने वाले कुछ विधायक कई बार कमलनाथ सरकार के खिलाफ नाराजगी जता चुके हैं और लगातार कहते रहे हैं कि वे लोकसभा चुनाव के बाद अपना रुख साफ करेंगे. 

लोकसभा चुनाव के परिणाम तो अभी नहीं आए हैं, लेकिन एग्जिट पोल के रुझानों से बीजेपी में उत्साह है. एग्जिट पोल राज्य में कांग्रेस को एक से छह सीटें मिलने का अनुमान जता रहे हैं. इसी के चलते सोमवार को नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने राज्यपाल को पत्र लिखकर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग कर डाली. 

उन्होंने पत्र में लिखा है, "विधानसभा का गठन हुए और नई सरकार के प्रभाव में आए लगभग छह माह व्यतीत हो चुका है. इस दौरान प्रदेश में अनेक ज्वलंत और तात्कालिक महत्व की समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं. इसलिए अविलंबनीय लोक महत्व के विषयों सहित अन्य विषयों पर चर्चा कराए जाने हेतु अपने विशेषाधिकार का उपयोग कर शीघ्र विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने मुख्यमंत्री को निर्देशित करने का कष्ट करें."

तो क्या बीजेपी विधानसभा सत्र के दौरान सरकार से बहुमत सिद्घ करने के लिए भी कहेगी? इस सवाल पर भार्गव ने कहा, "यह पार्टी से चर्चा के बाद तय होगा. अभी तो लोकमहत्व के विषयों पर चर्चा के लिए सत्र बुलाए जाने की मांग की है."

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटेरिया के अनुसार, "राज्य में विधायकों की संख्या के लिहाज से कांग्रेस एक कमजोर राजनीतिक जमीन पर खड़ी है. दिल्ली में अगर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार आती है तो बसपा, सपा और निर्दलीय विधायक बीजेपी का साथ दे सकते हैं. इसी के चलते बीजेपी ने सत्र बुलाने का दांव खेला है. वहीं बीजेपी की रणनीति को ध्यान में रखकर कांग्रेस की ओर से विधायकों में यह संदेश दिया जा रहा है कि जल्द ही मंत्रिमंडल का विस्तार हो सकता है."

इस बीच मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा, "बीजेपी के लोग पहले दिन से यह कोशिश कर रहे हैं. बीते चार माह में बहुमत पांच बार सिद्घ किया जा चुका है. वे कई बार इस तरह की कोशिश कर चुके हैं. बहुमत सिद्घ करने के लिए सरकार पूरी तरह तैयार है, हमे कोई समस्या नहीं है. वे खुद को बचाने के लिए वर्तमान सरकार को परेशान करने की कोशिश कर रहे हैं."

सत्र बुलाए जाने को लेकर लिखे गए भार्गव के पत्र पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी ने कहा, "नेता प्रतिपक्ष ने लोक महत्व के विषयों पर चर्चा के लिए सत्र बुलाने राज्यपाल को पत्र लिखा है. जब भी सत्र होता है, विधानसभा की कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में यह तय होता है कि किन विषयों पर चर्चा होगी. जब भी सत्र होगा, हमें इस पर चर्चा करने में कोई आपत्ति नहीं है."

सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस के पांच विधायक पार्टी नेतृत्व से नाराज चल रहे हैं. ये विधायक मंत्री बनना चाहते थे और बन नहीं पाए हैं. ये विधायक लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात भी कर चुके हैं. दूसरी ओर बसपा के दोनों विधायकों से बीजेपी के नेता लगातार चर्चा कर रहे हैं. निर्दलीय विधायक तो खुले तौर पर कई बार अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. ऐसे में केंद्र में बीजेपी सरकार की वापसी से राज्य इकाई को लगता है कि कांग्रेस की कमजोर कड़ी को विधानसभा सत्र के दौरान खोजना आसान होगा.

सूत्र के अनुसार, कांग्रेस की ओर से आने वाले दिनों में मंत्रिमंडल विस्तार करके इन असंतुष्ट विधायकों को संतुष्ट किया जाएगा. इसी क्रम में पार्टी ने मंगलवार को मंत्रियों, विधायकों और उम्मीदवारों की भोपाल में बैठक बुलाई है. 

कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री सुभाष कुमार सोजतिया का कहना है, "बीजेपी ख्याली पुलाव पका रही है. एग्जिट पोल को ही नतीजे मान बैठी है. लेकिन 23 मई को बीजेपी की जमीन खिसक जाएगी. जहां तक राज्य सरकार का सवाल है तो वह पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी."

राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर कहते हैं, "समाचार माध्यमों के एग्जिट पोल आने के बाद राज्य के नेताओं में सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को महत्व मिला. नेता प्रतिपक्ष और पार्टी अध्यक्ष का कहीं जिक्र नहीं आया. विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए लिखा गया पत्र सिर्फ समाचार माध्यमों में सुर्खियां बटोरने का जरिया भर है. यह कुल मिलाकर बीजेपी के अंदर की राजनीति का हिस्सा है."

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