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ज़ी मीडिया ब्यूरो
नई दिल्ली : राज्यसभा में बुधवार को विपक्ष के भारी विरोध के चलते विवादास्पद सांप्रदायिक हिंसा निरोधक विधेयक का पेश किया जाना टाल दिया गया। विपक्षी दलों का दावा था कि संसद इस कानून को बनाने के लिए सक्षम नहीं है तथा यह संघवाद की भावना के विरूद्ध है।
भाजपा, माकपा, अन्नाद्रमुक, द्रमुक एवं सपा सहित विभिन्न दलों के भारी विरोध के बाद उप सभापति पीजे कुरियन ने व्यवस्था दी कि सदन की भावना को देखते हुए सांप्रदायिक निवारण (पहुंच और क्षतिपूर्ति) विधेयक 2014 को टाला जाता है।
विधेयक को टाले जाने से पहले उच्च सदन में इस बात को लेकर संक्षिप्त बहस हुई कि क्या संसद इस प्रकार का कानून बनाने के लिए सक्षम है। विधेयक के पक्ष में कानून मंत्री कपिल सिब्बल और विरोध में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने अपना मत रखा। जेटली ने दावा किया कि संसद इस कानून को बनाने के लिए विधायी रूप से सक्षम नहीं है तथा इससे संघवाद की भावना का उल्लंघन होगा। उनका विरोध करते हुए सिब्बल ने इस बात पर बल दिया कि संघीय ढांचे का उल्लंघन नहीं किया जा रहा है तथा इस विधेयक के तहत उठाये जाने वाले केन्द्रीय कदम राज्य सरकार की सहमति से होंगे।
गुजरात दंगों का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने कहा कि ‘राज्य प्रायोजित सांप्रदायिक गतिविधियां होने की स्थिति में जैसा कि गुजरात में हुआ’ केन्द्र के हस्तक्षेप के लिए एक विधेयक होना चाहिए।
इससे पहले, केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने बुधवार को राज्यसभा में सांप्रदायिक हिंसा रोकने से संबंधित एक विधेयक पेश करने की कोशिश की, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों के विरोध के कारण सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। तेलंगाना, आरक्षण सहित विभिन्न मुद्दों पर हंगामे के कारण राज्यसभा की कार्यवाही तीन बार के स्थगन के बाद पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई।
सदन की बैठक दोपहर में जब दोबारा शुरू हुई तो शिंदे ने विधेयक सदन में पेश करना चाहा। इसके पहले सदन की बैठक शुरू होने के साथ ही कार्यवाही स्थगित कर दी गई थी। विपक्ष के नेता अरुण जेटली विधेयक का विरोध करने के लिए खड़े हुए। कुछ अन्य दलों के सदस्यों ने भी अपने मुद्दे उठाने की कोशिश की। जिसके कारण हंगामे की स्थिति पैदा हो गई। राज्यसभा के उपसभापति ने उसके बाद सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी। (एजेंसी इनपुट के साथ)