नई दिल्लीः प्रातः स्मरणीय पंच महापुरुषों में जो सबसे श्रेष्ठ नाम आता है, वह है परशुराम. भगवान विष्णु के आवेश से उत्पन्न होने के कारण परशुराम श्रीहरि के आवेशाअवतार कहे जाते हैं. वैसे तो हरि को आनंद दायी और शीतल स्वरूप में पहचाना जाता है और शिव के रौद्र रूप विख्यात हैं, लेकिन पृथ्वी पर बढ़ रहे अत्याचार और क्षत्रियों में मर्यादा हनन की बढ़ती प्रवृत्ति को देखकर वैकुंठ में बैठे श्रीहरि के मन में भी क्रोध विकार उत्पन्न हो गया था. इसके कारण वह आवेश में आ गए थे और यही क्रोध और आवेश की प्रवृत्ति लेकर जन्मे भगवान परशुराम
अक्षय तृतीया है जन्म दिवस
वैशाख शुक्ल तृतीया को भगवान परशुराम ने ऋषि जमदग्नि और रेणुका के घर जन्म लिया था. देवराज इन्द्र ने भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि के पुत्रेष्ठि यज्ञ से प्रसन्न होकर ऋषि की पत्नी रेणुका को परशुराम के जन्म का आशीर्वाद दिया था. जमदग्नि के पुत्र होने के कारण वे जामदग्न्य कहलाए. इससे उनके पिता के प्रति प्रेम का भी पता चलता है. पिता भृगु ऋषि ने नामकरण संस्कार के तहत उनका नाम राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी के दिए परशु को लेने के कारण उनका नाम परशुराम पड़ा.
माता रेणुका की करनी पड़ी हत्या
एक बार ऋषि पत्नी रेणुका नदी से जल भरने गईं, वहां देवांगनाओं को जल में विहार करते देख वह सुखद विचारों में खो गईं. काफी देर बाद उन्हें घर जाने का ध्यान आया. इधर देवी के देर से लौटने के कारण ऋषि जमदग्नि क्रोधित हो गए और उन्होंने रेणुका पर मिथ्या आरोप लगाए. इसके बाद उन्होंने अपने प्रत्येक पुत्र को रेणुका का शीश काट देने को कहा, लेकिन सबने मना कर दिया. जब उन्होंने परशुराम से कहा तो उन्होंने एक बार में ही मां का वध कर दिया, लेकिन फिर उन्होंने पिता के अंदर उत्पन्न संदेह विकार को दूर किया. ऋषि ने पिता में परशुराम की निष्ठा देखकर पत्नी रेणुका को फिर से जीवित कर दिया.
सहस्त्रार्जुन के आतंक का समापन
महिष्मती सम्राट सहस्त्रार्जुन अपने घमंड में इतना चूर हो गया कि उसे कुछ भी याद न रहा और वह धर्म की सभी सीमाओं को लांघ चुका था. उसके अत्याचार व अनाचार से पूरी जनता परेशान हो चुकी थी. वह इतना घंमड में चूर हो गया था कि उसने वेद –पुराण और धार्मिक ग्रंथों को तक नहीं छोड़ा. वह ऋषियों के आश्रम को नष्ट कर उनका वध कर देता था. इससे ज्यादा तब परेशान हो गए जब वह अबला स्त्रियों को उठा कर उनता सतीत्व नष्ट करने लगा.
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परशुराम के पिता की हत्या की
इसी कड़ी में एक बार वह कामधेनु गाय के लिए ऋषि जमदग्नि से उलझ पड़ा. ऋषि ने मना किया तो सहस्त्रार्जुन ने सेना सहित आश्रम पर चढ़ाई कर दी और ऋषि परिवार की हत्या कर दी. इसके बाद परशुराम का क्रोध उबल पड़ा. उन्होंने ब्राह्मणों को संगठित किया और शास्त्र के साथ शस्त्र की भी शिक्षा दी. इसके बाद उन्होंने कार्तवीर्य के पुत्र सहस्त्रार्जुन का वध कर दिया और कहते हैं कि 21 बार उन्होंने पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था.
श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनों के जीवन प्रवर्तक
परशुराम ने अपने समय के साथ त्रेता और द्वापरयुग दोनों को ही संभाला. वह सीता स्वयंवर में आते हैं और श्रीराम को सारंग धनुष देकर उन्हें संकेत रूप में आगामी समय के बारे में आगाह करते हैं. यह एक तरीके से उनके अवकाश लेने की घोषणा थी कि अब युग परिवर्तन का कार्य श्रीराम को सौंपा. इसी तरह वह श्रीकृष्ण के जीवन में भी आते हैं और उन्हें लीला छोड़कर अवतार को सार्थक करने के लिए कहते हैं. यहीं वह श्रीकृष्ण को उनका सुदर्शन भी प्रदान करते हैं. परशुराम क्रोध नहीं सार्थक क्रोध के अवतार हैं. वह अन्याय के खिलाफ उठने वाली शक्ति के प्रतीक हैं. उनकी जयंती यही प्रेरणा देती है.
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