भले 2019 के आम चुनावों में विपक्षी एकजुटता के सामने बीजेपी नहीं टिक पाए लेकिन उस सूरतेहाल के बावजूद कांग्रेस नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं होंगे.
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नई दिल्ली: इस वक्त पूरे देश में सबसे बड़ी सियासी चर्चा यही चल रही है कि 2019 के आम चुनावों में यदि पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सत्ता में नहीं आई तो कौन आएगा? ऐसा इसलिए क्योंकि हालिया लोकनीति-सीएसडीएस-एबीपी सर्वे का आकलन कहता है कि पीएम मोदी की लोकप्रियता गिरी है. दूसरी तरफ बीजेपी के चुनावी रथ को रोकने के लिए कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल एकजुट हो रहे हैं. इन सब वजहों से इस तरह की चर्चाओं को बल मिला है. यहीं से यह बात भी निकलती है कि यदि सभी दल मिलकर बीजेपी को हरा दें तो विपक्ष की तरफ से अगला प्रधानमंत्री कौन होगा?
क्या राहुल गांधी होंगे दावेदार?
इसी कड़ी में इस सवाल को उठाते हुए इसका जवाब टटोलने की कोशिश मशहूर स्तंभकार तवलीन सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस के अपने नियमित कॉलम में की है. उनका आकलन है कि इसी साल के अंत में मध्य प्रदेश और राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनावों में यदि कांग्रेस, बीजेपी को हराकर सत्ता में आ जाए तो चीजें तेजी से कांग्रेस के अनुकूल बदलना जरूर शुरू होंगी. हालांकि साथ ही यह भी कहना है कि इसके बाद भले 2019 के आम चुनावों में विपक्षी एकजुटता के सामने बीजेपी नहीं टिक पाए लेकिन उस सूरतेहाल के बावजूद कांग्रेस नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं होंगे.
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अखिलेश या मायावती?
इसके पीछे सबसे बड़ी वजह बताते हुए उनका कहना है कि दरअसल सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य यूपी में कांग्रेस की हालत में सुधार के कोई चिन्ह नहीं दिखते. पिछली बार यूपी से बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए को 73 सीटें मिली थीं. ऐसे में यहां पर बीजेपी के चुनावी रथ को रोकने का सामर्थ्य मायावती और अखिलेश यादव रखते हैं. इस कड़ी में यूपी के हालिया लोकसभा उपचुनावों के नतीजों के बाद 2019 के चुनावों में सपा और बसपा महागठबंधन के कयास लगाए जा रहे हैं.
लिहाजा यदि ये महागठबंधन चुनाव तक सियासी धरातल पर उतरने में कामयाब रहा तो बीजेपी को पिछली बार की तुलना में तकरीबन आधी सीटों से हाथ धोना पड़ सकता है. उस दशा में मायावती और अखिलेश में से बीएसपी सुप्रीमो ही प्रधानमंत्री पद की रेस में आगे होंगी. उसका एक कारण यह भी है कि पिछले दिनों सपा नेता अखिलेश यादव ने भी जी न्यूज के एक कार्यक्रम में कहा था कि मैं पीएम पद की रेस में तो नहीं हूं लेकिन उस प्रदेश से हूं जहां से ये सूची बनेगी.
दूसरी बड़ी बात यह है कि कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस ने प्रयोग करते हुए छोटे दल को अपना समर्थन दे दिया, उसी तरह केंद्र में दलित चेहरे के नाम पर मायावती को समर्थन दे सकती है. लिहाजा विपक्षी एकजुटता की स्थिति में मायावती बाकी विपक्षी नेताओं की तुलना में प्रधानमंत्री पद की रेस में आगे दिख रही हैं. इसीलिए कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस शपथ ग्रहण समारोह में जब विपक्ष के लगभग सारे बड़े कद्दावर चेहरे मौजूद थे तो उस दौरान सार्वजनिक रूप से यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को मायावती के साथ गले मिलते देखा गया.