Durga Ashtami 2020: बेहद शुभ है दुर्गाष्टमी का दिन, जानिए इसकी कथा, महत्व और आरती
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Durga Ashtami 2020: बेहद शुभ है दुर्गाष्टमी का दिन, जानिए इसकी कथा, महत्व और आरती

24 अक्टूबर, शनिवार यानी कि आज दुर्गाष्टमी (Durgashtami) का शुभ मुहूर्त है. इस दौरान मां की आराधना करने के साथ ही कन्या पूजन को वरीयता दी गई है. जानिए दुर्गाष्टमी को लेकर प्रचलित लोककथाएं, मां का मंत्र, आरती व कन्या पूजन का महत्व.

दुर्गाष्टमी का महत्व और पूजन विधि

नई दिल्ली: इस साल शारदीय नवरात्रि (Navratri) की शुरुआत 17 अक्टूबर से हो गई थी. नौ दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में भक्त मां दुर्गा के विभन्न रूपों की पूजा कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं. अष्टमी व नवमी पर व्रत का परायण कर मां के शुभाशीष की कामना की जाती है. जानिए, दुर्गाष्टमी को लेकर प्रचलित लोककथाएं, मां का मंत्र, आरती व कन्या पूजन का महत्व.

  1. 24 अक्टूबर, शनिवार को दुर्गाष्टमी मनाई जा रही है
  2. इस दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व है
  3. पूजन के बाद मां भगवती सुख-संपन्न व समृद्ध रहने का आशीर्वाद देती हैं

दुर्गाष्टमी कब है
इस साल यानी कि 2020 में दुर्गाष्टमी (Durga Ashtami) 24 अक्टूबर 2020, शनिवार को है. मां भगवती के पूजन से घर में सुख-समृद्धि और शांति का संचार होता है. विधि-विधान व श्रद्धापूर्वक किए गए पूजन के बाद मां अपने भक्तों को सदैव सुखी व संपन्न रहने का आशीर्वाद देती हैं. दुर्गाष्टमी को लेकर कई लोक कथाएं प्रचलित हैं.

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प्रचलित हैं ये लोक कथाएं
देशभर में मनाई जाने वाली दुर्गा पूजा को लेकर कई लोक कथाएं प्रचलित हैं. आप भी जानिए उनके बारे में.

1. भगवान श्रीकृष्ण और धर्मराज युधिष्ठिर ने नवरात्रि के दुर्गाष्टमी और नवमी की पूजा के बारे में आपस में चर्चा की थी. इसका वर्णन हमारे पुराणों में भी है.
2. इसे देवी दुर्गा और राक्षस महिषासुर के बीच हुए युद्ध का प्रतीक भी माना जाता है. कहा जाता है कि राक्षस महिषासुर ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना कर कई वरदान हासिल कर लिए थे. इनका फायदा उठाकर असुर सेना ने देवताओं के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था. इसके बाद मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया था. इसे बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक भी माना जाता है.

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कन्या पूजन व मंत्र
विधि-विधान से महाष्टमी का पूजन एवं यज्ञ करने के बाद भक्तों व व्रतियों को कन्या रूपी देवियों को प्रसाद खिलाना चाहिए. इसे कन्या पूजन भी कहते हैं. कन्याओं को कुछ उपहार देकर अपने घर से विदा करना चाहिए. कंजक यानी कि कन्या पूजन के बाद भी मां भगवती की आराधना करें.

मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु शांति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
इस मंत्र का 11 बार जाप करें.

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मां दुर्गा की आरती
मां के पूजन के बाद यह आरती जरूर गाएं.

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिव री।। जय अम्बे गौरी...।
मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको।। जय अम्बे गौरी...।
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै।। जय अम्बे गौरी...।
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी।। जय अम्बे गौरी...।
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति।। जय अम्बे गौरी...।
शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।। जय अम्बे गौरी...।
चण्ड-मुण्ड संहारे, शौणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे।। जय अम्बे गौरी...।
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।। जय अम्बे गौरी...।
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं, नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।। जय अम्बे गौरी...।
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता।। जय अम्बे गौरी...।
भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।। जय अम्बे गौरी...।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति।। जय अम्बे गौरी...।
अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै।। जय अम्बे गौरी...।
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।। जय अम्बे गौरी...।

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कैसे करें कन्या पूजन
भक्तगण अपनी सुविधा व श्रद्धा के अनुसार सप्तमी, अष्टमी या नवमी पर कन्या पूजन करते हैं. इसके लिए 11 साल से कम उम्र की 9 कन्याओं को अपने घर पर आमंत्रित करें. उनके पैर धोएं और फिर उन्हें एक साफ आसन पर बैठाएं. उनके हाथों में मौली बांधें और माथे पर रोली का टीका लगाएं. दुर्गाष्टमी पर मां दुर्गा को उबले चने, हलवा, पूरी, खीर व फलों का भोग लगाया जाता है.

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यह प्रसाद कन्याओं को भी दिया जाता है. इसके बाद उन्हें उपहार या दक्षिणा देकर विदा करें.

कन्याओं के साथ ही इस पूजन में एक बाल को भी अवश्य आमंत्रित करें. बालक को बटुक भैरव का प्रतीक माना जाता है और मां दुर्गा के साथ बटुक भैरव की पूजा का महत्व अहम है.

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