Trending Photos
नई दिल्ली. 14 जनवरी यानी गुरुवार को मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2021) का पवित्र पर्व मनाया जाएगा. सनातन धर्म में मकर संक्रांति का बहुत महत्व (Makar Sankranti Significance) है. पौष मास में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. इस दिन जप, तप, स्नान और दान करने का विशेष महत्व है. इस मकर संक्रांति पर कई विशेष संयोग बन रहे हैं, जो इस पर्व को अधिक शुभ बना रहे हैं.
मकर संक्रांति का इतिहास (Makar Sankranti History) बेहद रोचक है. आज जानिए मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का इतिहास और आखिर इस पर्व को 'तिल संक्रांति' (Til Sankranti) क्यों कहा जाता है.
यह भी पढ़ें- Lohri 2021: दुल्ला भट्टी के बिना अधूरी है लोहड़ी, जानिए क्या है पूजा विधि, महत्व और मान्यताएं
मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति (Makar Sankranti) के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि मकर में गोचर करते हैं. इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए खुद उनके घर जाते हैं. इस खास दिन को ही मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन दान करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
मकर संक्रांति पर्व को लेकर कई कथाएं हैं. देवी पुराण के अनुसार, शनिदेव (Shani Dev) अपने पिता सूर्यदेव को पसंद नहीं करते थे. एक बार सूर्यदेव ने शनिदेव की माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेदभाव करते देख लिया था. इस बात से क्रोधित होकर सूर्यदेव पत्नी संज्ञा और पुत्र शनिदेव से अलग हो गए थे. इस बात से क्रोधित होकर शनिदेव की माता छाया ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया था.
इसके बाद सूर्यदेव कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए थे. फिर सूर्यदेव ने क्रोध में आकर शनिदेव का घर जला दिया था. इससे शनिदेव और उनकी माता को कई कष्ट सहने पड़े थे. सूर्यदेव को उनकी दूसरी पत्नी के पुत्र यमराज ने काफी समझाया था कि उनकी सौतेली माता छाया और भाई शनिदेव की साथ वह ऐसा व्यवहार न करें.
यह भी पढ़ें- क्या आपको बार-बार ऐसे संकेत मिल रहे हैं? तो समझिए ईश्वरीय शक्तियां हैं साथ
यमराज के समझाने के बाद सूर्यदेव खुद शनिदेव के घर कुंभ पहुंचे थे. वहां पूरा घर जला हुआ था. शनिदेव के पास काले तिल के अलावा कुछ नहीं बचा था. उन्होंने काले तिलों से ही पिता सूर्यदेव की पूजा की. तब शनिदेव ने प्रसन्न होकर शनिदेव को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि में मेरे आने पर धन-धान्य से संपन्न हो जाएगा. इसी वजह से शनिदेव को तिल बेहद प्रिय हैं.
यही वजह है कि मकर संक्रांति के दिन तिल से सूर्यदेव और शनिदेव की पूजा की जाती है. तभी से मकर संक्रांति को तिल संक्रांति (Til Sankranti) के नाम से भी जाना जाने लगा.
दूसरी कथा के मुताबिक, मकर संक्रांति के दिन मां गंगा धरती पर आईं थीं. उन्होंने अपने भक्त भागीरथ के पूर्वजों का तर्पण किया था. इसलिए इस पवित्र दिन पर गंगा (Ganga) नदी में स्नान करने का विशेष महत्व होता है.
माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग किया था. उन्होंने अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के मकर राशि में आने का इंतजार किया था. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य के मकर राशि में आने के समय जो मनुष्य प्राण त्यागता है, उसकी आत्मा को देवलोक में जगह मिलती है. इससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.