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नई दिल्ली: जगन्नाथ यात्रा का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है. हर साल इस यात्रा के लिए लाखों लोग ओडिशा के पुरी शहर में इकट्ठा होते हैं. हालांकि कोरोना के चलते पिछले साल की तरह इस बार भी भक्त इस यात्रा में शामिल नहीं हो पाएंगे. यह यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया (12 जुलाई 2021) को शुरू होगी. आज भगवान जगन्नाथ की इस महायात्रा से जुड़ी कुछ रोचक बातें जानते हैं.
- भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath) मूल रुप से भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के दशावतारों में से एक हैं और इनके लिए निकाली जाने वाली रथयात्रा का आयोजन महापर्व की तरह किया जाता है.
- इस रथयात्रा के लिए कई महीने पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं. वसंत पंचमी के दिन लकड़ी चुनते हैं और अक्षय तृतीया (15 मई 2021) से रथनिर्माण शुरू होता है.
- इस रथयात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ (भगवान कृष्ण), उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा के लिए अलग-अलग 3 रथ बनाए जाते हैं. यात्रा में सबसे आगे भाई बलराम, उनके पीछे सुभद्रा और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ रहता है.
- यह रथ नीम के पेड़ की खास किस्म की लकड़ी से बनता है. इसके लिए शुभ पेड़ों का चयन किया जाता है. साथ ही पुराने रथों को तोड़ दिया जाता है. इन रथों का निर्माण भोईसेवायतगण यानि श्रीमंदिर से जुड़े बढ़ई ही करते हैं.
- जिस तरह मानव शरीर पंचतत्वों से मिलकर बना है, वैसे ही पांच तत्वों - लकड़ी, धातु, रंग, परिधान और सजावट के समान से इस भव्य रथ का निर्माण होता है. रथ बनाने में कील या कांटेदार चीज का इस्तेमाल नहीं होता है.
- भगवान जगन्नाथ के पीले और लाल रंग के रथ में 16 पहिए होते हैं और इसे बनाने में 332 टुकडे़ उपयोग में लाए जाते थे. यह रथ बाकी दोनों रथों से बड़ा होता है.
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- भगवान जगन्नाथ (भगवान कृष्ण), उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा की मूर्तियों के हाथ-पैर या पंजे नहीं है. कहते हैं कि प्राचीन काल में जब विश्वकर्मा जी ये मूर्तियां बना रहे थे, तो उन्होंने शर्त रखी थी कि काम पूरा होने तक कोई भी उनके कमरे में नहीं आएगा लेकिन राजा ने किसी कारणवश उनके कक्ष का दरवाजा खोल दिया. लिहाजा मूर्तियां अधूरी ही रह गईं.
- भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) पुरी के मंदिर से शुरू होकर अपनी मौसी के घर यानी कि गुण्डीचा मंदिर पहुंचती है और 7 दिन तक यहीं विश्राम करती है. कहते हैं कि इस दौरान गुण्डिचा मंदिर में सारे तीर्थ आते हैं. इसलिए कहते हैं कि इस रथयात्रा में शामिल होने से 100 यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है.
- मान्यता है कि रथ यात्रा के तीसरे दिन माता लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ जी को ढूढ़ते हुए यहां आती हैं, लेकिन पुजारियों द्वारा दरवजा बंद कर देने से वे नाराज हो जाती है और रथ का पहिया तोड़कर वापस चली जाती हैं. इसके बाद भगवान जगन्नाथ उन्हें मनाने के लिए स्वयं जाते हैं.
(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है.)