Margashirsha Purnima 2023: मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मिलेगी हर पाप से मुक्ति, करें गंगा स्तोत्र का पाठ
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Margashirsha Purnima 2023: मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मिलेगी हर पाप से मुक्ति, करें गंगा स्तोत्र का पाठ

Margashirsha Purnima 2023: हिंदू धर्म में मार्गशीर्ष पूर्णिमा की बहुत महत्ता है. जो व्यक्ति इस दिन गंगा स्नान करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वो मोक्ष को प्राप्त करता है. इस दिन मां गंगा स्तोत्र का पाठ करना भी बेहद फलदायी होता है.

Margashirsha Purnima 2023: मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मिलेगी हर पाप से मुक्ति, करें गंगा स्तोत्र का पाठ

Margashirsha Purnima 2023: सनातन धर्म में मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा बेहद शुभ मानी जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार मार्गशीर्ष पूर्णिमा 26 दिसंबर को मनाई जाने वाली है. इस दिन गंगा पूजन के साथ-साथ गंगा स्नान का भी महत्व है. धार्मिक मान्यतानुसार जो व्यक्ति मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करता है उसके सभी पापों का नाश हो जाता है. साथ ही उसको मोक्ष की भी प्राप्ति होती है. इसलिए जो साधक गंगा स्नान के बाद मां गंगा स्तोत्र का पाठ करता है उसको शुभफल की प्राप्ति होती है. चलिए यहां पढ़ते हैं पूरी देवी गंगा की स्तुति.

॥ देवी गंगा की स्तुति॥

गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम् ।
त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ॥

॥मां गंगा स्तोत्र॥

देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे
त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले
मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥॥
भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव
जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं
पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥॥
हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे
हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं
कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥॥
तव जलममलं येन निपीतं,
परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः
किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥॥
पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे
खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे ।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये,
पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ॥॥
कल्पलतामिव फलदां लोके,
प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गङ्गे
विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे ॥॥
तव चेन्मातः स्रोतःस्नातः
पुनरपि जठरे सोऽपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे
कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ॥॥
पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे
जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे
सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥॥
रोगं शोकं तापं पापं
हर मे भगवति कुमतिकलापम्।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे
त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे॥॥
अलकानन्दे परमानन्दे
कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवासः
खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥॥
वरमिह नीरे कमठो मीनः
किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव
न हि दूरे नृपतिकुलीनः॥॥
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये
देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं
पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥॥
येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां
भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकान्तापज्झटिकाभिः
परमानन्दकलितललिताभिः ॥॥
गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं
वाञ्छितफलदं विमलं सारम् ।
शङ्करसेवकशङ्कररचितं पठति
सुखी स्तव इति च समाप्तः ॥॥
देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे
त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले
मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥

श्री शङ्कराचार्य कृतं

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्‍य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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